मुम्बई पुलिस को बिहार से है पुरानी खुन्नस, बेकसूर राहुल राज का एनकाउंटर तो याद होगा
नई दिल्ली। मुम्बई पुलिस को बिहार से पुरानी खुन्नस है। मुम्बई के पॉलिटिशियन हों या पुलिस, उनके मन में पहले से बिहार के प्रति दुर्भावना रही है। सुशांत मौत मामले में यह दुर्भावना सारी हदें पार कर गयी है। सुशांत मौत मामले में मुम्बई पुलिस का पक्षपात जगजाहिर है। सुशांत की मौत पर सत्तारुढ़ शिवसेना अब घटिया राजनीति पर उतर आयी है। आज से 12 साल पहले भी महाराष्ट्र पुलिस और वहां के सत्तारुढ़ नेताओं ने बिहार के साथ दुश्मनों जैसा सलूक किया था। मुम्बई पुलिस ने बिहार के 23 साल के एक नौजवान का कुर्ला में एनकाउंटर कर दिया था। मुम्बई पुलिस की यह बर्बरता तब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी थी। उस समय महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने कहा था, गोली का जवाब गोली ही है। बिहार- महाराष्ट्र के इस विवाद पर तब तूफान बरपा था। मामला राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट तक गया था। बिहार में महाराष्ट्र के खिलाफ जनाक्रोश फूट पड़ा। उस समय केन्द्र की मनमोहन सिंह सरकार लालू यादव के समर्थन से चल रही थी। महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा की सरकार थी। बिहार के साथ अन्याय होता देख लालू तब नीतीश के साथ आ गये। मनमोहन सरकार हिलने लगी थी।
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बिहार से पूर्वाग्रह और दुराग्रह क्यों ?
सुशांत मामले में जब मुम्बई के नेता कानूनी दांव पेंच से पार नहीं पा सके तो अब वे सुशांत के पिता के चरित्रहनन पर उतर आये हैं। पत्रकार और सांसद संजय राउत ने अपने पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा। उन्होंने सुशांत के पिता पर अनर्गल आरोप लगा कर इसे पूरे मामले को घृणास्पद स्तर पर पहुंचा दिया है। आखिर बिहार से पूर्वाग्रह और दुराग्रह क्यों ? क्या महाराष्ट्र के नेता बिहार से इस लिए खार खाते हैं क्योंकि वह उनकी दादागिरी का विरोध करता है ? आज से 12 साल पहले बिहार के नौजवान राहुल राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और राज ठाकरे की गुंडागर्दी के खिलाफ आवाज उठायी तो उसे मुम्बई पुलिस ने दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया। क्या महाराष्ट्र कोई विदेश में है जहां बिहारी या उत्तर भारत के लोग नहीं जा सकते हैं? 19 अक्टूबर 2008 को मुम्बई में रेलवे की भर्ती परीक्षा हुई थी। इस परीक्षा में बिहार के भी छात्र शामिल थे। लेकिन जब वे परीक्षा देने सेंटर पर पहुंचे तो राज ठाकरे की पार्टी मनसे के कार्यकर्ताओं ने उन पर हमला कर दिया था। बिहार के कई छात्र गंभीर रूप से घायल हो गये थे। ये मामला संसद में उठा था। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फेल करार दिया था। कोर्ट ने कहा था, राज ठाकरे का उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन संविधान के प्रतिकूल और यह हिंसा महाराष्ट्र सरकार की विफलता है।
क्या है राहुल राज का मामला ?
पटना के रहने वाले राहुल राज रेडियोलॉजी में डिप्लोमा के बाद नौकरी की तलाश में थे। वे मुम्बई जा कर किसी अच्छे अस्पताल में नौकरी करना चाहते थे। 23 साल के राहुल राज ने जब 19 अक्टूबर की घटना के बारे में पढ़ा और देखा तो उनके मन में राज ठाकरे के प्रति गुस्सा भर गया। 27 अक्टूबर 2008 को राहुल राज मुम्बई पहुंचे। दिन के करीब 10 बजे उन्होंने साकीनाका बस स्टॉप पर कुर्ला से अंधेरी जाने वाली एक डबलडेकर बस पकड़ी। उस बस के कंडक्टर के मुताबिक, राहुल बस की ऊपरी डेक पर चले गये। किराया मांगा तो जेब से देसी पिस्तौल निकाल कर लहराने लगे। वे जोर जोर से चिल्लना लगे कि रेलवे परीक्षा देने आये बिहारी छात्रों से क्यों मारपीट की ? मैं किसा यात्री को कोई नुकसान नहीं पहुचाऊंगा, मेरी मीडिया से बात करा दो, मुम्बई पुलिस कमिश्नर से बात करा दो। राहुल जोर जोर से बोलते रहे कि ठाकरे को सबक सिखाऊंगा। तब तक ड्राइवर, बस को नजदीक के पुलिस स्टेशन तक ले आ चुका था। मुम्बई पुलिस को इस बात की सूचना मिली। फिर कई थानों की पुलिस ने मिल कर बस को घेर लिया। पुलिस का कहना था कि राहुल राज को सरेंडर करने के लिए कहा गया लेकिन उसने पिस्तौल से फायरिंग शुरू कर दी। उसके बाद पुलिस ने भी बचाव में फायरिंग की जिसके दौरान वह मारा गया।
मुम्बई पुलिस पर सवाल
मुम्बई पुलिस पर आरोप लगा था कि उसने राहुल राज को पकड़ कर नजदीक से गोली मारी थी और उसे एनकाउंटर प्लांट कर दिया था। राहुल राज के सिर में दो और दिल में दो गोलियां दागी गयीं थीं। मुम्बई पुलिस पर सवाल उठा कि उसने राहुल को पकड़ने के लिए उसके पैर या हाथ में गोली क्यों नहीं मारी ? वह कोई अपराधी या आतंकी नहीं था फिर पुलिस ने उसके सिर और दिल का निशान क्यों बनाया ? इस घटना पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि मुम्बई पुलिस ने तो मुर्गी पर तोप चली दी। उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा (शरद पवार) की सरकार थी। कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री थे तो राकांपा के आर आर पाटिल उप मुख्यमंत्री। आर आर पाटिल के पास ही गृह विभाग था। राकांपा के इस नेता ने उस समय मुम्बई पुलिस की कार्रवाई का न केवल समर्थन किया बल्कि यह तक कहा था कि गोली का जवाब तो गोली ही है। राहुल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी संदिग्ध थी। पहले एक डॉक्टर ने कहा कि गोली नजदीक मारी गयी। फिर बाद में कहा गया कि गोली चार मीटर दूर से लगी। इस घटना के विरुद्ध बिहार में आक्रोश पैदा हो गया। उस समय भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे। जनभावना को देखते हुए नीतीश ने तुरंत सीआइडी के आइजी राजेश रंजन को घटना का आधिकारिक ब्यौरा लाने के लिए मुम्बई भेज दिया। दो दिन बाद राहुल का शव विमान से पटना लाया गया। उसके अंतिम संस्कार में लोगों की विशाल भीड़ जुटी। बिहार सरकार के प्रतिनिधि के रूप में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी राहुल के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। राहुल राज का एनकाउंटर बिहार बनाम महाराष्ट्र की लड़ाई बन गया।
जब बिहार- महाराष्ट्र की लड़ाई में हिलने लगी सरकार
राहुल राज के अनकाउंटर पर बिहार उबल रहा था। उस समय केन्द्र की यूपीए सरकार लालू यादव के समर्थन से चल रही थी। लालू यादव रेल मंत्री थे। उन्होंने गठबंधन धर्म की परवाह नहीं कि और बिहार की प्रतिष्ठा की लड़ाई में नीतीश के साथ शामिल हो गये। बिहार के लोगों का आरोप था कि मुम्बई पुलिस ने राहुल राज की हत्या की है। लालू ने इस अमानवीय घटना की निंदा की और कहा कि महाराष्ट्र में अगर ऐसी ही गतिविधियां जारी रहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है। लालू के इस तेवर से मनमोहन सरकार हिलने लगी। लालू के दवाब में केन्द्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब तलब किया। नीतीश कुमार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की। इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में रेल मंत्री लालू यादव भी नीतीश के साथ थे। जब कि उस समय नीतीश और लालू में 36 का आंकड़ा था। राहुल राज के पिता कुंदन प्रसाद सिंह ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से इस मामले में न्याय दिलाने की गुहार लगायी। पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गयी। मुम्बई पुलिस की इस बर्बरता से पूरे देश में हलचल मची हुई थी। जब महाराष्ट्र सरकार पर चौतरफा दबाव बढ़ गया तो उसने राहुल राज के पिता कुंदन प्रसाद सिंह को 2 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की। लेकिन राहुल के पिता ने यह मुआवजा लेने से इंकार कर दिया था।
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