MP उपचुनाव: सुरखी में मुकाबला दिलचस्प, क्या पाला बदलकर गढ़ बचा पाएंगे गोविंद सिंह राजपूत ?
भोपाल। मध्य प्रदेश के उपचुनाव में सुरखी (Surkhi) विधानसभा सीट पर चुनाव की जंग दिलचस्प हो गई है। सुरखी सीट पर 2013 के बाद एक बार फिर गोविंद सिंह राजपूत और पारुल साहू के बीच मुकाबला होगा लेकिन इस बार दोनों ने पार्टियां बदल ली हैं। 2018 में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधायक बने गोविंद सिंह राजपूत इस बार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। वहीं पारुल साहू इस बार कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा रही हैं। पिछले 5 चुनाव को देखें तो सुरखी में गोविंद सिंह राजपूत की स्थिति मजबूत है लेकिन इस बार बदली परिस्थतियों में समीकरण भी बदले होंगे।
राजपूत की जीत ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए जहां नाक का सवाल है क्योंकि सिंधिया के कहने पर ही वह कांग्रेस और विधायकी छोड़कर भाजपा में आए हैं। हालांकि उनके लिए मुश्किल है कि वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हैं और भाजपा कार्यकर्ता उन्हें मन से स्वीकार करेंगे या नहीं ये चुनाव में ही पता चल पाएगा। बता दें कि गोविंद सिंह राजपूत के भाजपा में आने की वजह से ही पारुल साहू ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। 2013 में पारुल ने भाजपा के टिकट पर अपने पहले चुनाव में ही गोविंद सिंह राजपूत को 141 वोटों से हरा चुकी हैं।
राजपूत
को
मिलेगा
इनका
साथ
वहीं
गोविंद
सिंह
राजपूत
का
जहां
ज्योतिरादित्य
सिंधिया
का
समर्थन
है
तो
दूसरी
तरफ
भाजपा
नेता
भी
उनके
लिए
वोट
मांगते
नजर
आएंगे।
यही
नहीं
भाजपा
के
वोटर
का
भी
साथ
मिलने
की
उन्हें
उम्मीद
है।
अयोध्या
में
भव्य
राम
मंदिर
के
लिए
उन्होंने
सबसे
पहले
शिला
पूजन
की
शुरुआत
की
थी।
उनके
निर्वाचन
क्षेत्र
में
जगह-जगह
शिला
यात्राएं
निकाली
गईं।
कभी
गोविंद
सिंह
की
वजह
से
ही
कांग्रेस
छोड़कर
भाजपा
का
दामन
थामने
वाले
राजेंद्र
सिंह
मोकलपुर
भी
अब
उनके
साथ
हैं।
कभी राजपूत के राजनीतिक प्रतिद्वंदी और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र सिंह भी अब राजपूत के साथ हैं। राजपूत ने 2003 में भूपेंद्र सिंह को हराया था लेकिन अब भूपेंद्र सिंह ने अपना चुनाव क्षेत्र बदल लिया है तो राजनीतिक समीकरण भी बदल गए हैं। इस बार भूपेंद्र सिंह राजपूत के समर्थन में हैं।
पारुल
साहू
के
पक्ष
में
ये
समीकरण
वहीं
पारुल
साहू
पहली
बार
कांग्रेस
के
टिकट
पर
मैदान
में
हैं।
हालांकि
उनके
पिता
संतोष
साहू
क्षेत्र
में
कांग्रेस
के
कद्दावर
नेता
रहे
हैं।
पारुल
साहू
को
जहां
कांग्रेस
कार्यकर्ताओं
के
समर्थन
का
भरोसा
है
तो
वहीं
गोविंद
सिंह
राजपूत
से
नाराज
चल
रहे
उनके
पुराने
साथियों
का
साथ
मिलने
की
भी
उम्मीद
है।
पारुल
को
एक
बार
फिर
2013
का
अपना
प्रदर्शन
दोहराने
की
उम्मीद
है।
पारूल जहां विधायक रहते हुए अपने द्वारा कराए गए विकास कार्यों को लेकर वोट मांग रही हैं तो राजपूत का कहना है कि क्षेत्र के विकास की खातिर वे भाजपा के साथ आए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 5 महीने में 500 करोड़ के विकास कार्यों को मंजूरी दी है।
क्या
रहे
हैं
पिछले
नतीजे
?
सुरखी
सीट
पर
1998
में
भाजपा
के
भूपेंद्र
सिंह
ने
गोविंद
सिंह
राजपूत
को
193
वोटों
से
शिकस्त
दी
थी।
वहीं
2003
में
समीकरण
बदल
गए
जब
गोविंद
सिंह
राजपूत
ने
भूपेंद्र
सिंह
को
13865
वोट
से
हरा
दिया।
2008
में
राजपूत
ने
भाजपा
के
राजेंद्र
सिंह
मोकलपुर
को
12438
वोटों
से
मात
दे
दी।
2013
में
भाजपा
ने
पारुल
साहू
पर
दांव
लगाया।
पारुल
ने
अपने
पहले
ही
चुनाव
में
कांग्रेस
के
टिकट
पर
मैदान
में
उतरे
राजपूत
को
141
वोटों
से
पटकनी
दे
दी।
2018
में
भाजपा
ने
सुधीर
यादव
को
मैदान
में
उतारा।
इस
बार
परिणाम
राजपूत
के
पक्ष
में
गया।
राजपूत
ने
सुधीर
यादव
को
27
हजार
वोटों
के
बड़े
अंतर
से
हरा
दिया।