सर्जिकल स्ट्राइक डे: जानिए इंडियन आर्मी के उन कमांडोज के बारे में जो शामिल थे सर्जिकल स्ट्राइक में
नई दिल्ली। 29 सितंबर 2016 को इंडियन आर्मी ने पीओके में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। 18 सितंबर को जम्मू कश्मीर के उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले में 19 जवान शहीद हो गए थे। सर्जिकल स्ट्राइक इसी हमले का बदला लेने के लिए अंजाम दिया गया था। सर्जिकल स्ट्राइक में इंडियन आर्मी के स्पेशल कमांडोज, पाकिस्तान के हिस्से वाले कश्मीर के अंदर तक दाखिल हुए थे। इन कमांडोज ने आतंकवादियों के सात कैंप्स को तबाह कर दिया था। करीब 250 किलोमीटर के क्षेत्र में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था। इस सर्जिकल स्ट्राइक में पाकिस्तान मिलिट्री के भी कुछ स्थानों को तबाह कर दिया था। आज जानिए उन कमांडोज के बारे में जिन्होंने इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। ये भी पढ़ें- Video: सामने आया सर्जिकल स्ट्राइक का दूसरा वीडियो और कुछ तस्वीरें
65 की जंग में पाकिस्तान को दिया मुहंतोड़ जवाब
इंडियन आर्मी के स्पेशल पैरा कमांडोज ने एलओसी पार जाकर आतंकी कैंपों पर हमला किया था और 40 आतंकियों को मार गिराया है। इस सर्जिकल स्ट्राइक के साथ ही एक बार फिर इन कमांडोज ने अपनी श्रेष्ठता और बहादुरी साबित की। इंडियन आर्मी ने वर्ष 1966 में इसका गठन किया। वर्ष 1965 में जब भारत और पाकिस्तान जंग छिड़ी तो उत्तर भारत से इंफेंट्री यूनिट्स के जवानों को गार्ड्स की ब्रिगेट के मेजर मेघ सिंह की अगुवाई में खास तौर पर भेजा गया। इस ग्रुप की परफॉर्मेस को देखकर फैसला किया गया कि स्पेशल फोर्स का गठन अलग से किया जाएगा। इसके बाद एक खास बटालियन का गठन हुआ लेकिन पैराट्रूपिंग को कमांडो रणनीति का आंतरिक हिस्सा रख गया। इसके बाद इसे पैराशूट रेजीमेंट में ट्रांसफर कर दिया गया।
पहली स्पेशल ऑपरेशन रेजीमेंट
जुलाई 1966 में पैराशूट रेजीमेट देश की पहली स्पेशल ऑपरेशन यूनिट बनी। पैरा कमांडो को 30,000 फीट की ऊंचाई से छलांग लगाने से लेकर 15 दिन की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। अलग-अलग स्टेज में होने वाली ट्रेनिंग का मकसद कमांडोज को शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत बनाना होता है। पैरा कमांडो के लिए उसका पैराशूट सबसे बड़ा हथियार होता है। इसका वजन करीब 15 किलोग्राम होता और एक रिजर्व पैराशूट का वजन पांच किलोग्राम होता है। इन पैराशूट की कीमत एक लाख से लेकर दो लाख तक होती है। इन कमांडोज को रात में जागने की ट्रेनिंग से लेकर भूखे रहने तक की ट्रेनिंग दी जाती है।
कमांडोज के कुछ खास ऑपरेशन
इन जांबांज कमांडोज ने वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के अलावा, 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार, 1980 में श्रीलंका में ऑपरेशन पवन, 1988 में मालद्वीव ऑपरेशन कैक्टस और फिर 1999 में कारगिल की जंग में हिस्सा लिया था। इन कमांडोज के पास खास किस्म के हथियार होते हैं। पैरा-कमांडोज के पास 9 एमएमऑाटो पिस्टल, 1ए सेमी-ऑटोमैटिक पिस्टल, ग्लॉक 17 9एमएम सेमी-ऑटोमैटिक पिस्टल, बेराट्टा 92 9एमएम सेमी ऑटोमैटिक पिस्टल, हेक्लर एंड कॉच एमपी5 सब मशीन गन, 1एसएमजी सब मशीन गन, टीएआर-21 टेवॉर असॉल्ट राइफल एम4ए1 कार्बाइन, एमपीआई केएमएस-72 असॉल्ट राइफल, 58 असॉल्ट राइफल, आईएमआई गालिल स्नाइपर सेमी-ऑटोमैटिक स्नाइपर राइफल, लाइट मशीन गन, 2ए1 जनरल मशीन गन, एजीएस ऑटोमैटिक ग्रेनेड लांचर, सी90-सीआर, डिस्पोजल रॉकेट लांचर, 82एमएम रॉकेट लांचर से लैस होते हैं।