491 साल पुराना है अयोध्या विवाद, जानिए तब से लेकर अब तक क्या हुआ
नई दिल्ली। दशकों से लंबित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने फैसला सुना दिया है। दशकों से चला आ रहा ये मामला आज समाप्त हो गया है। इस मामले पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया। अयोध्या से जुड़ा ये विवाद 491 साल पुराना है।
चलिए जानते हैं 491 साल पुराने इस विवाद में कब क्या हुआ-
1528:
अयोध्या
में
बाबर
ने
एक
ऐसी
जगह
मस्जिद
का
निर्माण
कराया
जिसे
हिंदू
राम
जन्म
भूमि
मानते
हैं।
1853:
हिंदुओं
का
आरोप-
मंदिर
तोड़कर
मस्जिद
बनाई
गई।
पहला
हिंदू-मुस्लिम
संघर्ष
हुआ।
1859:
ब्रिटिश
सरकार
ने
विवादित
भूमि
को
बांटकर
आंतरिक
और
बाहरी
परिसर
बनाए।
1885:
राम
के
नाम
पर
इस
साल
कानूनी
लड़ाई
शुरू
हुई।
महंत
रघुबर
दास
ने
राम
मंदिर
निर्माण
के
लिए
इजाजत
मांगी।
1949:
23
दिसंबर
को
लगभग
50
हिंदुओं
ने
मस्जिद
के
केंद्रीय
स्थल
में
भगवान
राम
की
मूर्ति
रखी।
1950 के बाद क्या हुआ
1950:
16
जनवरी
को
एक
अपील
में
मूर्ति
को
विवादित
स्थल
से
हटाने
से
न्यायिक
रोक
की
मांग।
1950:
5
दिसंबर
को
मस्जिद
को
ढांचा
नाम
दिया
गया
और
राममूर्ति
रखने
के
लिए
केस
किया।
1959:
17
दिसंबर
को
निर्मोही
अखाड़ा
विवाद
में
कूदा,
विवादित
स्थल
के
लिए
मुकदमा
दायर।
1961:
18
दिसंबर
को
सुन्नी
सुन्नी
वक्फ
बोर्ड
ने
मालिकाना
हक
के
लिए
केस
किया।
1984:
विश्व
हिंदू
परिषद
विशाल
मंदिर
निर्माण
और
मंदिर
के
ताले
खोलने
के
लिए
अभियान
शुरू।
1986:
1
फरवरी
फैजावाद
जिला
अदालत
ने
विवादित
स्थल
में
हिंदुओं
को
पूजा
की
अनुमति
दे
दी।
1989:
जून
में
भारतीय
जनता
पार्टी
ने
मंदिर
आंदोलन
में
वीएचपी
का
समर्थन
किया।
1989:
1
जुलाई
को
मामले
में
पांचवा
मुकदमा
दाखिल
हुआ।
1989:
नवंबर
9
को
बाबरी
के
नजदीक
शिलान्यास
की
परमीशन
दी
गई।
1990 के बाद क्या हुआ
1990:
25
सितंबर
को
लालकृष्ण
आडवाणी
ने
सोमनाथ
से
अयोध्या
तक
रथ
यात्रा
की।
जिसके
बाद
साम्प्रदायिक
दंगे
हुए।
1990:
नवंबर
में
आडवाणी
गिरफ्तार।
भाजपा
ने
वीपी
सिंह
की
सरकार
से
समर्थन
वापस
ले
लिया।
1991:
अक्टूबर
में
कल्याण
सिंह
सरकार
ने
विवादित
क्षेत्र
को
कब्जे
में
ले
लिया।
1992:
6
दिसंबर
को
कारसेवकों
ने
बाबरी
मस्जिद
को
ढहा
दिया।
एक
अस्थाई
मंदिर
बनाया
गया।
1992:
16
दिसंबर
को
तोड़फोड़
की
जांज
के
लिए
एस.एस.
लिब्रहान
आयोग
का
गठन
हुआ।
2002:
तत्कालीन
पीएम
अटल
बिहारी
बाजपेई
ने
विवाद
सुलझाने
के
लिए
अयोध्या
विभाग
शुरू
किया।
2002:
अप्रैल
में
विवादित
स्थल
पर
मालिकाना
हक
के
लिए
हाईकोर्ट
में
सुनवाई
शुरू
हुई।
2003:
मार्च
से
अगस्त
में
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
के
आदेश
के
बाद
विवादित
स्थल
पर
खुदाई
हुई
और
मस्जिद
के
नीचे
मंदिर
के
अवशेष
के
प्रमाण
मिले।
2003:
सितंबर
में
सात
हिंदू
नेताओं
को
सुनवाई
के
लिए
बुलाने
का
फैसला
दिया
गया।
2005:
जुलाई
में
विवादित
क्षेत्र
पर
इस्लामिक
आतंकवादियों
का
हमला,
पांच
आतंकी
मारे
गए।
2009:
जुलाई
में
पीएम
मनमोहन
सिंह
को
को
लिब्रहान
आयोग
ने
रिपोर्ट
सौंपी।
2010:
28
सितंबर
को
विवादित
मामले
में
फैसला
देने
से
रोकने
वाली
याचिका
सुप्रीम
कोर्ट
ने
खारिज
की।
2010:
30
सितंबर
को
इलाहाबाद
उच्च
न्यायालय
की
लखनऊ
पीठ
ने
मामले
में
ऐतिहासिक
फैसला
दिया।
2010 के बाद क्या हुआ
2017:
21
मार्च
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मामले
में
मध्यस्थता
की
पेशकश
की।
2017-
19
अप्रैल
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
बाबरी
मस्जिद
गिराए
जाने
के
मामले
में
भाजपा
और
आरएसएस
के
कई
नेताओं
के
खिलाफ
आपराधिक
केस
चलाने
का
आदेश
दिया।
2017-
1
दिसंबर
को
लगभग
32
नागरिक
अधिकार
कार्यकर्ताओं
ने
इलाहाबाद
हाई
कोर्ट
के
साल
2010
के
फैसले
को
चुनौती
दी।
2018-
8
फरवरी
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
सिविल
अपील
पर
सुनवाई
शुरू
कर
दी।
2018-
20
जुलाई
को
मामले
पर
सुप्रीम
कोर्ट
ने
अपना
फैसला
सुरक्षित
रख
लिया।
2018-
29
अक्टूबर
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मामले
की
जल्द
सुनाई
पर
इनकार
करते
हुए
केस
जनवरी
2019
तक
के
लिए
टाल
दिया।
2018-
25
नवंबर
को
अयोध्या
में
विश्व
हिंदू
परिषद
की
अगुवाई
में
धर्म
सभा
हुई।
कहा
गया
कि
बहुत
जल्द
ही
भव्य
राम
मंदिर
का
निर्माण
करना
होगा
और
भाजपा
पर
आरोप
लगाया
कि
पांच
राज्यों
में
विधानसभा
चुनाव
की
वजह
से
तारीख
का
एलान
नहीं
किया
जा
रहा
है।
2019 में आया ऐतिहासिक फैसला
2019-
1
जनवरी
को
पीएम
नरेंद्र
मोदी
ने
2019
के
अपने
पहले
साक्षात्कार
में
कहा
कि
अयोध्या
में
राम
मंदिर
के
निर्माण
के
लिए
अध्यादेश
पर
फैसला
कानूनी
प्रक्रिया
पूरी
होने
के
बाद
ही
लिया
जा
सकता
है।
राम
मंदिर
पर
अध्यादेश
लाने
के
बारे
उन्होंने
कहा
कि
यह
मामला
सुप्रीम
कोर्ट
में
है,
कानूनी
प्रक्रिया
पूरी
होने
दीजिए,
इसके
बाद
जो
भी
सरकार
की
जिम्मेदारी
होगी
उसे
पूरा
किया
जाएगा।
2019:
8
जनवरी
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
चीफ
जस्टिस
रंजन
गोगोई
की
अध्यक्षता
और
जस्टिस
एसए
बोबडे,
जस्टिस
एनवी
रमना,
यूयू
ललित
और
डी
वाई
चंद्रचूड़
की
अध्यक्षता
में
मामले
की
सुनवाई
के
लिए
पांच
जजों
की
संविधान
पीठ
गठित
की।
2019:
25
जनवरी
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मामले
की
सुनवाई
के
लिए
संविधान
पीठ
का
पुनर्गठन
किया।
इसमें
चीफ
जस्टिस
गोगोई
और
जस्टिस
बोबड़े,
चंद्रचूड़,
अशोक
भूषण
और
एसए
नाजेर
शामिल
थे।
2019:
29
जनवरी
को
केंद्र
ने
सुप्रीम
कोर्ट
का
रुख
करते
हुए
विवादित
स्थल
के
आसपास
की
छह
एकड़
अधिग्रहित
जमीन
को
मूल
मालिकों
को
लौटाने
की
अनुमति
मांगी।
2019:
26
फरवरी
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मध्यस्थता
की
और
मामले
को
सुलझाने
के
लिए
पांच
मार्च
की
तारीख
तय
की।
2019:
8
मार्च
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
पूर्व
शीर्ष
अदालत
के
न्यायाधीश
एफएमआई
कलीफुल्ला
की
अध्यक्षता
वाले
पैनल
द्वारा
मध्यस्थता
के
लिए
तय
किया।
2019:
1
अगस्त
को
तीन-सदस्यीय
मध्यस्थता
पैनल
ने
सीलबंद
लिफाफे
में
शीर्ष
अदालत
को
अपनी
रिपोर्ट
सौंपी
2019:
2
अगस्त
को
रिपोर्ट
पढ़ने
के
बाद
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मध्यस्थता
को
बेनतीजा
बताया
और
छह
अगस्त
से
नियमित
सुनवाई
करने
का
फैसला
सुनाया।
मुख्य
न्यायाधीश
रंजन
गोगोई
ने
कहा
कि
जब
तक
सुनवाई
पूरी
नहीं
हो
जाती
तब
तक
रोजाना
इसकी
सुनवाई
की
जाएगी।
2019:
16
अक्टूबर
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
40
दिनों
तक
चली
सुनवाई
के
बाद
अपना
फैसला
सुरक्षित
रख
लिया।
2019:
9
नवंबर
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
रामलला
विराजमान
के
पक्ष
में
फैसला
सुनाया
है।
निर्मोही
अखाड़े
के
दावे
को
खारिज
करते
हुए
सुप्रीम
कोर्ट
ने
रामलला
विराजमान
और
सुन्नी
वक्फ
बोर्ड
को
ही
पक्षकार
माना
है।
कोर्ट
ने
इलाहाबाद
हाई
कोर्ट
के
फैसले
को
अतार्किक
करार
दिया।
कोर्ट
ने
कहा
कि
सुन्नी
वक्फ
बोर्ड
को
कहीं
और
5
एकड़
की
जमीन
दी
जाए।
इसके
साथ
ही
कोर्ट
ने
केंद्र
सरकार
को
आदेश
दिया
है
कि
वह
मंदिर
निर्माण
के
लिए
3
महीने
में
ट्रस्ट
बनाए।
इसमें
निर्मोही
अखाड़े
को
भी
प्रतिनिधित्व
देने
का
आदेश
दिया
गया
है।
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