Ram Mandir सुनवाई : खुदाई में मिले मंदिर अवशेष को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया गया
बंगलुरू। रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट की फास्ट ट्रैक कोर्ट में 8वें दिन रामलला विराजमान ने पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिला अह्म सबूत पेश किया। 12 मार्च, 2003 से 7 अगस्त, 2003 तक भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले सबूत मंदिर का अवशेष मंगलवार को रामलला विराजमान के वकील सी एस. वैद्यनाथन द्वारा कोर्ट के सामने पेश किया गया। सोमवार को जस्टिस बोबड़े की अनुपस्थित के चलते हफ्ते में 5 दिन होने वाली सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में नहीं हो सकी थी। कोर्ट 6 अगस्त से लगातार मामले की सुनवाई कर रही है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान रामलला के वकील सीएस. वैद्यनाथन ने कोर्ट को बताया कि मुस्लिम पक्ष ने पहले कहा था कि जमीन के नीचे कुछ नहीं था, लेकिन बाद में कहती है कि जो ढांचा मिला है वह इस्लामिक ढांचा है जबकि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि के नीचे मंदिर था, जिस पर भरोसा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खुदाई वाली जगह को मंदिर को देने का फैसला सुनाया था। इसके बाद रामलला विराजमान के वकील बीएस वैद्यनाथन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ को दिखाए गए पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिले सबूत पेश किया।
रामलला के वकील की तरफ से अभी तक के दलीलों में पौराणिक, ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला दिया गया है। रिपोर्ट के साथ पुरातत्व विभाग की तस्वीरें भी साझा की गई हैं। सीएस. वैद्यनाथन ने कोर्ट को बताया कि जन्मभूमि स्थान पर बाबरी मस्जिद से पहले मंदिर था और उसके कई साक्ष्य भी थे और इस दौरान उन्होंने कुछ स्तंभों का उल्लेख किया जिनपर भगवान के चित्र थे और कोर्ट को कुछ नक्शे भी दिखाए।
गत 6 अगस्त से शुरू हुई सुप्रीम कोर्ट की फास्ट ट्रैक कोर्ट रोजाना सुनवाई कर रही है। शुरुआत में निर्मोही अखाड़ा की तरफ से कोर्ट में अपनी दलीलों को पेश की, जिसके बाद रामलला विराजमान अपनी बातें रखीं। इस दौरान मामले की सुनवाई कर रहे जजों ने विवादित भूमि के पक्षकारों कई सवाल पूछे और रामलला के वकीलों से जवाब मांगे। कोर्ट ने 11 दिनों के अंतराल में रामजन्म भूमि पर दावा करने का सबूत पेश करने के साथ-साथ मंदिर गिराने का आदेश जारी करने वाले के बारे में भी साक्ष्य पेश करने को कहा।
कोर्ट की सुनवाई शुर होने के पहले ही दिन दौरान सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी पक्षकारों को कहा गया है कि कोई भी वकील कोर्ट में अपनी दलील रखने के लिए जितना भी वक्त लेना चाहे वो निःसंदेह ले सकता है और इसकी कोई सीमा नहीं निर्धारित की गई है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है। इसमें जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।
उल्लेखनीय है वर्ष 2010 में विवादित भूमि मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ विवादित भूमि को रामजन्म भूमि घोषित किया था. हाईकोर्ट ने बहुमत से निर्णय दिया था कि विवादित भूमि जिसे रामजन्म भूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वहां से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। इसके अलावा दो जजों ने यह निर्णय भी दिया कि उक्त भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन तब हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने हाईकोर्ट के निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उधर, राम मंदिर मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बीच विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की हलचल तेज कर दी है। कहा जा रहा है विहिप ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थर तराशने की कार्यशाला में कारीगरों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है और तराशे गए पत्थरों पर लगी काई को भी छुड़ाने का कार्य किया जा रहा है। यही नहीं, संगठन द्वारा राजस्थान के भरतपुर से पत्थर भी मंगाए जाने की भी सूचना है। यही नहीं, जल्द ही श्री राम जन्मभूमि न्यास अयोध्या में एक बैठक भी करने जा रही है।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रति आश्वस्त श्रीराम जन्म भूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य व पूर्व सांसद डॉ राम विलास वेदाती का कहना है कि जहां राम लला विराजमान हैं वह उनकी जन्म भूमि के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि मस्जिदों के शिफ्ट करने की भी कई नजीरें मिलती है पर जन्म स्थान को शिफ्ट नहीं किया जा सकता।
वेदांती ने सवाल खड़ा किया कि जब त्रेता युग में प्रभु राम का जन्म अयोध्या में हुआ तो क्या बाबर या सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड वजूद में थे? ऐसे में बाबरी मस्जिद का अस्तित्व का सवाल नहीं उठता। बकौल वेदांती, विवादित स्थल पर मौजूद मंदिर को तोड़कर आक्रांताओं ने मंदिर के ढांचे को मस्जिद का रूप देने की साजिश रची थी।
गत 9 अगस्त को कोर्ट की सुनवाई के दौरान एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या राम का कोई वंशज है, जवाब में राम जन्म भूमि की ओर से वकील ने कहा था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन जैसे ही यह खबर फैली, जयपुर राजघराने की वंशज और पूर्व राजकुमारी दीया सिंह ने दस्तावेजों के साथ जयपुर राजघराने को भगवान श्री राम के बेटे कुश का वंशज घोषित कर दिया।
फिर क्या था भगवान राम के वंशजों की फौज खड़ी हो गई। उनके बाद मेवाड़ राजघराने के महेंद्र सिंह मेवाड़ ने भी दावा किया कि मेवाड़ राजपरिवार भगवान राम के पुत्र लव का वंशज है। उन्होंने बताया था कि कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान' में भी इसका जिक्र है।
यही नहीं, कांग्रेस नेता सत्येंद्र सिंह राघव ने भी भगवान राम के वंशज होने पर अपनी दावेदारी ठोक दी. सत्येंद्र सिंह राघव ने दावा किया कि भगवान राम के जुड़वा बेटे कुश का दक्षिण कौशल यानी छत्तीसगढ़ में और लव का उत्तर कौशल में अभिषेक किया गया था। उन्होंने इसकी पुष्टि के लिए वाल्मीकि रामायण के पेज नंबर-1671 का उल्लेख भी किया।
इस बीच एक सर्वे में दावा किया गया है कि देश के 61 फीसदी लोग विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के पक्ष में वोट दिया है जबकि 32 फीसदी लोग मंदिर निर्माण के पक्ष में नहीं दिखे। सर्वे की मानें तो देश में करीब दो तिहाई लोग अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के पक्ष में हैं। दावा किया गया है कि सर्व में कुल12,126 लोगों को शामिल किया, जिसमें 67 फीसदी ग्रामीण और 33 फीसदी शहरी लोग शामिल थे। इस सर्वे में देश के 19 राज्यों के 97 संसदीय क्षेत्रों और 194 विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया था।
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