सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 63 सालों में देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं किए गए, जबकि अदालत इस संबंध में कई बार कह चुकी है। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि गोवा भारतीय राज्य का एक चमचमाता उदाहरण है जिसमें समान नागरिक संहिता लागू है, जहां सभी धर्मों की परवाह किए बिना ये लागू है, वो भी कुछ सीमित अधिकारों को छोड़कर।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत द्वारा बार-बार कहे जाने के बावजूद यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर अभी तक कोई कोशिश नहीं गई। उन्होंने कहा कि गोवा में पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 लागू है, जो उत्तराधिकार और विरासत के अधिकारों को भी संचालित करती है। गोवा के बाहर देश के किसी भी कोने में रहने वाले उन लोगों के संपत्ति के अधिकार पुर्तगाली सिविल कोड के तहत निर्धारित होते हैं, जो गोवा के रहने वाले हैं। जबकि गोवा के बाहर इस तरह का कानून लागू नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में लागू प्रावधानों की तारीफ की जिसके तहत, यहां मुसलमानों को बहुविवाह और बोलकर तलाक देने की इजाजत नहीं है। इसका मतलब ये है कि मुसलमान अपनी पत्नी को खुद तलाक नहीं दे सकता है। अगर उसको अपनी पत्नी को तलाक देना है तो उसे कोर्ट जाना होगा। केवल कोर्ट के आदेश पर ही तलाक होता है।
अदालत ने कहा कि देखने वाली बात है कि संविधान के नीति निर्देशक तत्व में समान नागरिक संहिता को डील किया गया है और उम्मीद की गई थी कि राज्य इसे लागू करने का प्रयास करेगा पर अभी तक इसको लेकर कोई प्रयास नहीं किए गए। हिंदू लॉ 1956 में बनाया गया लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कोई प्रयास नहीं किए गए। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी गोवा के एक संपत्ति विवाद मामले में सुनवाई करने के दौरान की।