महिला को कॉल गर्ल कहना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के मामले में बड़ा फैसला देते हुए 15 वर्षों के बाद युवक को राहत दी है। दरअसल युवक और उसके माता-पिता पर आरोप था कि उन्होंने लड़की के खिलाफ अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया था, जिसकी वजह से लड़की ने आत्महत्या कर ली। यह लड़की युवक की गर्लफ्रैंड थी। लेकिन कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि लड़की ने कॉल गर्ल कहने की वजह से आत्महत्या कर ली, यह कहना ठीक नहीं है।
गुस्से
में
कहा,
मकसद
उकसाना
नहीं
बता
दें
कि
युवक
और
उसके
माता-पिता
पर
लड़की
को
आत्महत्या
के
लिए
उकसाने
का
आरोप
था।
लेकिन
सुप्रीम
कोर्ट
ने
उन्हें
इस
आरोप
से
बरी
कर
दिया
और
कहा
कि
सिर्फ
कॉल
गर्ल
कहना
लड़की
को
आत्महत्या
के
लिए
उकसाना,
यह
कहना
सही
नहीं
होगा।
जस्टिस
इंदु
मल्होत्रा
और
आर
सुभाष
रेड्डी
ने
कहा
कि
ऐसा
नहीं
कहा
जा
सकता
है
कि
गाली-गलौज
आत्महत्या
की
वजह
था।
कोर्ट
ने
कहा
कि
जो
शब्द
गुस्से
में
कहे
गए
उसका
मकसद
यह
नहीं
था
कि
लड़की
आत्महत्या
करे।
कोर्ट
ने
दिया
पुराने
केस
का
हवाला
सुप्रीम
कोर्ट
ने
यह
फैसला
अपने
पूर्व
के
फैसले
के
आधार
पर
दिया।
इससे
पहले
एक
व्यक्ति
को
उसकी
पत्नी
की
आत्महत्या
के
बाद
बरी
कर
दिया
गया
था।
दोनों
के
बीच
किसी
बात
को
लेकर
झगड़ा
हुआ
था,
जिसके
बाद
आदमी
ने
कहा
था
कि
जाओ
मर
जाओ।
इसी
फैसले
का
हवाला
देते
हुए
कोर्ट
ने
कहा
कि
हमारा
मानना
है
कि
आईपीसी
की
धारा
306/34
के
तहत
आरोपी
को
इस
मामले
में
दोषी
ठहराने
के
लिए
पर्याप्त
सबूत
नहीं
हैं।
बता
दें
कि
इस
मामले
में
लड़की
कोलकाता
की
रहने
वाली
थी
और
वह
युवक
से
अंग्रेजी
की
ट्यूशन
पढ़ने
के
लिए
आती
थी।
ट्यूशन
पढ़ती
थी
युवती
आरोप
है
कि
दोनों
के
बीच
जब
नजदीकी
बढ़ी
तो
दोनों
ने
शादी
करने
का
फैसला
लिया।
लेकिन
जब
लड़की
लड़के
के
घर
पहुंची
तो
लड़के
के
नाराज
मामता-पिता
लड़की
पर
चिल्लाने
लगे
और
उसे
कॉल
गर्ल
कह
दिया।
लड़की
के
पिता
ने
इसके
बाद
लड़के
माता-पिता
के
खिलाफ
शिकायत
दर्ज
कराई,
जिसमे
कहा
गया
कि
उनके
अपशब्दों
से
क्षुब्ध
लड़की
ने
आत्महत्या
कर
ली।
यह
मामला
2004
का
है।
लड़की
ने
अपने
सुसाइड
नोट
में
लिखा
था
कि
उसे
कॉल
गर्ल
कहा
गया
और
जिस
लड़के
से
वह
प्यार
करती
थी
उसने
इसका
विरोध
नहीं
किया।
ट्रायल
कोर्ट
ने
खारिज
कर
दी
थी
याचिका
पुलिस
ने
तीनों
ही
आरोपियों
के
खिलाफ
चार्जशीट
दायर
कर
दी,
जिसके
बाद
आरोपी
परिवार
ने
इसे
चुनौती
दी।
लेकिन
ट्रायल
कोर्ट
ने
उनकी
याचिका
को
खारिज
कर
दिया।
जुलाई
में
कोलकाता
कोर्ट
ने
उनकी
याचिका
को
स्वीकार
कर
लिया।
जिसके
बाद
हाई
कोर्ट
के
फैसले
के
खिलाफ
राज्य
सरकार
ने
सुप्रीम
कोर्ट
का
दरवाजा
खटखटाया
था।
तमाम
दस्तावेजों
की
जांच
के
बाद
कोर्ट
ने
फैसला
दिया
कि
महज
कॉल
गर्ल
कहने
की
वजह
से
आरोपियों
को
आत्महत्या
के
लिए
उकसाने
का
जिम्मेदार
नहीं
कहा
जा
सकता
है।
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