मुख्तार अंसारी को यूपी ट्रांसफर करने की याचिका पर SC में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
नई दिल्ली। पंजाब की जेल में बंद बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को यूपी की जेल में शिफ्ट किए जाने की मांग वाली याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर सुनवाई हुई। वकीलों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस दौरान पंजाब सरकार की तरफ से पेश वकील दुष्यंत दवे ने यूपी सरकार की याचिका को खारिज करने की मांग की। मुख्तार अंसारी के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि केस दिल्ली ट्रांसफर करने पर आपत्ति नहीं है। यूपी में मुख्तार सुरक्षित नहीं है। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'मैं मानता हूं कि राज्य के पास मौलिक अधिकार नहीं हैं, लेकिन यह नागरिकों और पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करता है, उनकी ओर से न्याय के लिए मदद करता है, राज्य पीड़ितों को न्याय के दिलाने के में मदद कर सकता है, उस कसौटी पर अमल करने की जरूरत है।'
पंजाब सरकार के वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि मुख्तार अंसारी को लेकर पंजाब सरकार पर कही गई यूपी सरकार की बातें निराधार हैं। उन्होंने कहा कि मुख्तार अंसारी पंजाब सरकार के लिए भी अपराधी है, लेकिन यूपी सरकार इस मामले में पंजाब सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है। हमने डॉक्टर की रिपोर्ट पर बात की है। पंजाब सरकार ने अपने हलफनामे में साफ जिक्र किया है कि मुख्तार के स्वास्थ्य को लेकर स्पेशलिस्ट डॉक्टर के द्वारा ही रिपोर्ट तैयार की गई है। साथ ही यह भी कहा गया है कि जिस अस्पताल के डॉक्टर ने मुख्तार के स्वास्थ्य की रिपोर्ट तैयार की है, वो राज्य सरकार के अधीन नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के अधीन आने वाले अस्पताल की है। पीजीआई के डॉक्टरों ने मुख्तार के स्वास्थ पर रिपोर्ट तैयार की है।
दवे ने कहा कि यूपी सरकार की मांग संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। उन्होंने इसे खारिज करने की मांग करते हुए कोर्ट से कहा कि अगर इसे माना गया तो भविष्य में ऐसे मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी। दवे ने ये भी कहा कि मुख्तार को लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार जिन आधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग कर रही है, वह मांग न्यायपालिका के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। दवे ने आर्टिकल 32 को लेकर संविधान सभा में मंथन का जिक्र करते हुए कहा कि एक राज्य का दूसरे राज्य के खिलाफ कोर्ट का रुख करना असंवैधानिक है। अगर इसे माना गया तो ये एक गलत परंपरा की शुरुआत होगी।
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