सुप्रीम कोर्ट से मांग, Minorities की घोषणा जिला स्तर पर की जाए, अदालत का इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान और इसकी घोषणा की अपील वाली याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती। supreme court on Plea To Declare Minorities At District Level
नई दिल्ली, 08 अगस्त : भारत की सबसे बड़ी अदालत- सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को Declare Minorities At District Level मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि वह जिला स्तर पर धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की पहचान करने की अपील पर विचार नहीं कर सकता है, क्योंकि यह उन उदाहरणों के विपरीत है जो मानते हैं कि इस तरह की पहचान राज्य स्तर पर की जानी चाहिए।
केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यूयू ललित और रवींद्र भट की खंडपीठ ने देवकीन ठाकुर की रिट याचिका पर उक्त टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार की 1993 की एक अधिसूचना को चुनौती दी गई। अधिसूचना में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित किया गया था। याचिकाकर्ता ने जस्टिस ललित और भट की पीठ से कहा कि जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के निर्देश दिए जाएं।
पहले भी खारिज हो चुकी है मांग
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में माना था कि राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान की जानी चाहिए। कानूनी मामलों के जानकार सुप्रीम कोर्ट के इस केस को टीएमए पाई और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य टाइटल से भी जानते हैं। शीर्ष अदालत की पीठ ने 1958 के इन रे केरल शिक्षा विधेयक (In Re Kerala Education Bill) मामले में भी इस तर्क को खारिज कर दिया था कि अल्पसंख्यकों की पहचान ब्लॉक स्तर या जिला स्तर पर की जानी चाहिए।
हिंदुओं को मिले माइनॉरिटी का फायदा !
कानूनी मामलों की वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ललित और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ ने कहा, पिछली सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को ऐसे ठोस उदाहरण पेश करने के लिए कहा था, जिससे साबित होता हो कि ऐसे राज्यों में जहां हिंदुओं की संख्या कम है या वे अल्पसंख्यक हैं, उन्हें माइनॉरिटी के दर्जे के लाभों से वंचित किया जा रहा है। दातार याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए थे। जब कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार किया, उस समय दातार मौजूद नहीं रहे। उनकी गैरहाजिरी में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने मामले को इसी तरह की एक अन्य याचिका के साथ सूचीबद्ध करने की मांग की। दूसरी याचिका पर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ सुनवाई कर रही है।
NCM अधिनियम को भी चुनौती
अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरी याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि कुछ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (NCM) 1992 और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान अधिनियम 2004 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। कुछ राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक का दर्जा भी मांगा है। न्यायमूर्ति यूयू ललित ने उपाध्याय से कहा, "सैद्धांतिक रूप से आप सही हैं, लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसे राज्यवार होना चाहिए, तो हमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए?"
30 साल पुराने TMA Pai Judgement का जिक्र
इस पर उपाध्याय ने टीएमए पई केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (TMA Pai judgement) का जिक्र किया। इस पर पीठ ने कहा कि अल्पसंख्यकों की पहचान सामान्य आधार पर नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा, "आप एक ऐसा मामला बनाना चाहते हैं जहां कोई मामला है ही नहीं।" पीठ ने कहा, केरल में तर्क दिया गया यह था कि अल्पसंख्यकों की पहचान ब्लॉक स्तर या जिला स्तर पर होनी चाहिए। कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया और स्पष्ट किया कि माइनॉरिटी की पहचान राज्य-वार होनी चाहिए। टीएमए पाई केस के फैसले में भी केरल और सेंट जेवियर्स के फैसलों को दोहराया गया है।
माइनॉरिटी की घोषणा करना अदालत का काम नहीं
न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने कहा, जब आप अल्पसंख्यकों के बारे में बात कर रहे हैं, तो एक माइनॉरिटी अखिल भारतीय अल्पसंख्यक हैं, उदाहरण के लिए, आपके पास पारसी, कोंकणी भाषी लोग हैं। ऐसे लोग हैं जो एक छोटी सी जगह में अल्पसंख्यक हैं, तो आप कैसे घोषित कर सकते हैं? कोर्ट ने स्पष्ट किया कि माइनॉरिटी की घोषणा करना अदालत का काम नहीं है।
धर्म विशेष के आंकड़े नहीं
पीठ ने वकील से उन राज्यों के मामलों के ठोस उदाहरण देने को कहा जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं और उन्हें अनुच्छेद 30 के संरक्षण से वंचित किया जाता है। न्यायमूर्ति ललित ने कहा, "आप आम तौर पर कह रहे हैं कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जाना चाहिए, हम सिर्फ घोषणा नहीं कर सकते।" न्यायमूर्ति भट ने कहा, घोषित इसलिए भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि हमारे पास राज्य विशेष और हर धर्म विशेष के आंकड़े नहीं हैं।"
सितंबर में सुनवाई का निर्देश
न्यायमूर्ति ललित ने याचिकाकर्ता से पूछा, "हम इसे दूसरे मामले के साथ सूचीबद्ध करेंगे। इस पर याचिकाकर्ता के वकील उपाध्याय ने सहमति जताई। जस्टिस ललित और जस्टिस भट की पीठ ने आदेश में कहा, वर्तमान मामले में शामिल मुद्दे 2020 की सिविल रिट याचिका संख्या 836 के साथ सूचीबद्ध करें। मामले को सितंबर के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए।
11 जजों की बेंच का आदेश
आदेश के बाद न्यायमूर्ति भट ने कहा, "आप प्रार्थना का दावा नहीं कर सकते, यह कानून के विपरीत है। आप कह रहे हैं कि माइनॉरिटी को जिला स्तर पर घोषित किया जाना चाहिए। हम इस पर विचार नहीं कर सकते। यह टीएमए पाई केस में 11 जजों की बेंच के विपरीत होगा।
सुप्रीम कोर्ट में Hindu Population का डेटा
पिछली सुनवाई में भी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार किया जा रहा है, इस संबंध में अदालत को स्पष्ट और ठोस प्रमाण दिखाएं। देवकीन ठाकुर की याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। इस धारा के तहत केंद्र सरकार को अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति मिलती है। याचिकाकर्ता ठाकुर ने कुछ राज्यों और क्षेत्रों में हिंदुओं की कम संख्या के आंकड़े पेश कर कहा, लद्दाख में 1%, मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4%, नागालैंड में 8.74%, मेघालय में 11.52%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49 फीसदी, मणिपुर में 41.29 फीसदी हिंदु पॉपुलेशन है, लेकिन केंद्र ने उन्हें 'अल्पसंख्यक' घोषित नहीं किया है। दूसरी ओर, केंद्र ने मुसलमानों को अल्पसंख्यक घोषित किया है, जो लक्षद्वीप में 96.58%, कश्मीर में 95%, लद्दाख में 46% हैं। इसी तरह, केंद्र ने ईसाइयों को अल्पसंख्यक घोषित किया है। नगालैंड में 88.10 फीसदी, मिजोरम में 87.16 फीसदी और मेघालय में 74.59 फीसदी ईसाई हैं।
क्या केंद्र सरकार को मनमानी के अधिकार ?
संविधान के अनुच्छेद 30 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ठाकुर ने दलील दी कि अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन कर सकते हैं। याचिकाकर्ता का तर्क है कि नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी अधिनियम 1992 की धारा 2 (सी), अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने के लिए "केंद्र को बेलगाम शक्ति" देती है। यह स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29, 30 के विपरीत है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से ये भी कहा कि केंद्र सरकार को 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित करने और 'जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश' निर्धारित करने का निर्देश दिए जाएं।
राज्यों को अधिकार, बाद में पलट गई केंद्र सरकार
अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर जवाब में केंद्र सरकार ने विगत 28 मार्च को दायर हलफनामे में कहा था कि जिन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, वहां संबंधित राज्य सरकार संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 तहत उन्हें अल्पसंख्यक अधिसूचित कर सकती है। हालांकि, बाद में, केंद्र ने अपना रुख बदल दिया। पहला हलफनामा वापस लेकर नए जवाब / हलफनामे में, केंद्र सरकार ने कहा कि अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति उसके पास है, लेकिन इस संबंध में "भविष्य में अनपेक्षित जटिलताओं" से बचने के लिए "राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श" के बाद ही कोई फैसला लिया जा सकता है।
केंद्स सरकार के जवाब से सुप्रीम कोर्ट निराश
अल्पसंख्यकों के मामले में विगत 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अलग-अलग रुख अपनाने पर निराशा भी व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि हलफनामे को अंतिम रूप देने से पहले उचित विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र को इस संबंध में 3 महीने के भीतर राज्य सरकारों के साथ परामर्श प्रक्रिया पर एक रिपोर्ट दाखिल करने को भी कहा था।