सबरीमाला: SC में समीक्षा याचिका नहीं बल्कि पीठ द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सुनवाई, पक्षकारों को मिला 3 हफ्ते का समय
नई दिल्ली। केरल के सबरीमाला मंदिर और अन्य मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ ने सुनवाई तीन हफ्तों के लिए टाल दी है। कोर्ट ने सभी पक्षकारों को तीन हफ्ते का समय दिया है, ये तय करने के लिए कि किन किन मुद्दों पर सुनवाई होगी। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि यह सुनवाई सबरीमाला मामले में कोर्ट के फैसले के पुनर्विचार पर नहीं हो रही है। सबरीमाला मामले में 5 जजों की बेंच ने जिन मुद्दों को सुनवाई के लिए भेजा था, उस पर सुनवाई हो रही है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हम नहीं चाहते कि इस मामले की सुनवाई में अधिक समय खराब हो, इसलिए टाइम लाइन तय करना चाहते हैं। सभी वकील आपस में तय करके बताएं कि दलीलों में कितना समय लगेगा। बता दें 5 जजों की बेंच ने कहा था कि अलग-अलग धर्मों में धार्मिक रीति रिवाजों पर महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के मामले में कोर्ट दखल दे सकता है या नहीं, इसपर विचार करने की जरूरत है।
कोर्ट ने नवंबर जजमेन्ट के सवाल पर सुनवाई करने की बात कही, जिसमें पूजा के अधिकार का सवाल है। 6 जनवरी को कोर्ट ने एक नोटिस जारी करते हुए उन याचिकाओं की लिस्टिंग की थी, जिसमें 2018 के फैसले पर पुनर्विचार करने की बात कही गई है। ये बड़ी पीठ केवल सबरीमाला ही नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश, गैर पारसी से शादी करने पर पारसी महिलाओं पर लगने वाली पाबंदियां और दाउदी बोहरा समुदाय में खतना जैसे मुद्दों पर भी सुनवाई करेगी।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ 60 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। पीठ में शामिल अन्य जजों में आर बनुमाति, अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एम शांतानागौदर, एसए नजीर, आर सुभाष रेड्डी, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने बीते साल नवंबर माह में केरल के सबरीमाला मंदिर का मामला नौ जजों की पीठ को सौंप दिया था। 3-2 के बहुमत से ये आदेश देते हुए संवैधानिक पीठ ने मामले का दायरा भी बढ़ा दिया था। जिसके तहत अन्य मुद्दे भी शामिल किए गए।
इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि केवल सबरीमाला ही नहीं, बल्कि अन्य कई जगहों पर भी महिलाओं पर प्रतिबंध लगा है। हालांकि अदालत ने इस दौरान ना तो अपने सितंबर, 2018 में दिए फैसले पर रोक लगाई थी और ना ही उसके विरोध में कुछ कहा था। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी थी। इससे पहले 10 से 50 साल की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा हुआ था। हालांकि कोर्ट के फैसले का कुछ लोगों ने विरोध किया तो कुछ ने समर्थन भी किया।
कोर्ट ने महिलाओं पर लगे प्रतिबंध को असंवैधानिक करार दिया था। कई महिलाओं ने फैसले के बाद मंदिर में प्रवेश करने की भी कोशिश की थी, लेकिन उन्हें रोक दिया जाता था। कोर्ट के इसी फैसले के विरोध में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थीं, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ये मामला अब नौ जजों की बड़ी पीठ देखेगी। कोर्ट ने सबसे अहम बात जो कही, वो ये थी, 'यहां बहस संवैधानिक मान्याताओं, परंपराओं को लेकर है। यह मुद्दा केवल सबरीमाला में रोक का ही नहीं है। बल्कि ऐसे कई प्रतिबंध मुस्लिम और पारसी महिलाओं पर भी हैं। बड़ी पीठ इन पर न्यायिक नीति तय करेगी ताकि पूरा न्याय हो सके।'