मीडिया रिपोर्ट्स से नाराज जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, हमें भी ब्रेक चाहिए, जजों को टागरेट करने की सीमा होती है
कोर्ट में लंबित केस की सुनवाई में देरी की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा, जजों को निशाना बनाने की भी एक सीमा होती है। supreme court justice dy chandrachud targeting jud
नई दिल्ली, 28 जुलाई : भारत की अदालतों में लंबित करोड़ों मामलों को लेकर कई बार गैर जरूरी आलोचना भी होती है, जैसा इस मामले में हुआ। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने कहा, जजों को टारगेट करने की भी सीमा होती है। आलोचना से सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ क्षुब्ध दिखे। उन्होंने कहा है कि सुनवाई में देरी को लेकर जजों को निशाना बनाना एक प्रचलन हो गया है, लेकिन जजों को निशाना बनाने की भी एक सीमा होती है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मीडिया में अदालतों में लंबित मामलों की सुनवाई ना होने पर जिस तरह की टिप्पणियां की जा रही है वह निराशाजनक हैं।
न्यायाधीशों
को
भी
एक
ब्रेक...
मीडिया
में
न्यायपालिका
की
आलोचना
पर
नाराजगी
व्यक्त
करते
हुए
जस्टिस
चंद्रचूड़
ने
कहा
कि
न्यायाधीशों
को
भी
एक
ब्रेक
मिलना
चाहिए।
उन्होंने
कहा
कि
कोरोना
वायरस
संक्रमण
के
कारण
वे
कोर्ट
नहीं
आ
सके,
इसलिए
मामले
को
टालना
पड़ा।
इसके
बावजूद
समाचार
में
पढ़ा
कि
न्यायाधीश
इस
मामले
की
सुनवाई
नहीं
कर
रहे
हैं।
यह
टारगेट
करने
की
एक
सीमा
है।
15
जुलाई
को
इसलिए
टली
सुनवाई
समाचार
एजेंसी
ANI
की
रिपोर्ट
के
मुताबिक
जस्टिस
डीवाई
चंद्रचूड़
को
ईसाइयों
पर
हिंसा
और
हमलों
से
संबंधित
एक
मामले
में
सुनवाई
करनी
थी।
इस
मामले
में
15
जुलाई
को
सुनवाई
तय
की
गई
थी
लेकिन
न्यायाधीशों
के
उपलब्ध
ना
होने
के
कारण
केस
पर
सुनवाई
नहीं
हो
सकी
थी।
ईसाई
संस्थानों
और
पादरियों
पर
हमले
मामला,
बैंगलोर
डायोसीज
के
आर्कबिशप
डॉ.
पीटर
मचाडो
द्वारा
दायर
याचिका
में
देश
भर
में
ईसाई
संस्थानों
और
पादरियों
पर
हमलों
की
बढ़ती
संख्या
का
है।
याचिका
में
देश
भर
के
विभिन्न
राज्यों
में
ईसाई
समुदाय
के
सदस्यों
के
खिलाफ
हिंसा
और
भीड़
के
हमलों
(Mob
Lynching
/
attack)
को
रोकने
के
लिए
निर्देश
देने
की
मांग
की
गई
है।
याचिकाकर्ता
का
कहना
है
कि
घृणा
अपराधों
(Hate
Crime)
पर
अंकुश
लगाने
के
लिए
शीर्ष
अदालत
के
पहले
के
दिशानिर्देशों
को
लागू
करने
का
निर्देश
दिया
जाए।
झूठी FIR वाले केस में क्लोजर रिपोर्ट !
याचिका में ऐसे अधिकारियों के साथ विशेष जांच दल (SIT) गठन की मांग की गई है, जो दूसरे राज्यों के हों। उन राज्यों के नहीं जहां प्राथमिकी दर्ज करने, आपराधिक जांच करने और कानून के अनुसार आपराधिक अपराधियों पर मुकदमा चलाने की घटनाएं होती हैं। याचिकाकर्ता ने कहा, एसआईटी कानून के अनुसार ऐसे मामलों में क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल करे। जिसमें पीड़ितों के खिलाफ हमलावरों द्वारा झूठी काउंटर प्राथमिकी दर्ज की गई है।
क्या
है
2018
का
फैसला
याचिका
में
कहा
गया
है
कि
तहसीन
पूनावाला
फैसले
में
जारी
दिशा-निर्देशों
को
लागू
कराया
जाए।
इस
फैसले
के
मुताबिक
में
देश
भर
में
घृणा
अपराधों
पर
ध्यान
देने
और
प्राथमिकी
दर्ज
करने
के
लिए
नोडल
अधिकारी
नियुक्त
किए
जाने
थे।
बता
दें
कि
सुप्रीम
कोर्ट
2018
ने
भीड़
हिंसा
और
लिंचिंग
सहित
घृणा
अपराधों
की
बढ़ती
संख्या
को
नियंत्रित
करने
और
रोकने
के
लिए
केंद्र
और
राज्य
सरकारों
के
लिए
कई
दिशानिर्देश
जारी
किए
थे।
दिशा-निर्देशों
में
फास्ट-ट्रैक
ट्रायल,
पीड़ित
मुआवजा,
निवारक
सजा
और
ढीले
कानून
लागू
करने
वाले
अधिकारियों
के
खिलाफ
अनुशासनात्मक
कार्रवाई
शामिल
थी।
शीर्ष
अदालत
ने
कहा
था
कि
घृणा
अपराध,
गौरक्षकता
और
लिंचिंग
जैसे
अपराधों
को
शुरू
में
ही
समाप्त
कर
देना
(nipped
in
the
bud)
चाहिए।
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