अयोध्या केस: बाबर के वंशज किसी इमारत के मालिक हो सकते हैं लेकिन मस्जिद के नहीं
नई दिल्ली: अयोध्या केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को भी जारी रही। कोर्ट में सुनवाई के दौरान श्रीरामजन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने हदीस का हवाला देते हुए इस्लामी कानून के जरिए जमीन के खरीद और इस्तेमाल के नियमों का जिक्र किया। पीएन मिश्रा ने कहा कि बाबर के वंशज किसी इमारत के मालिक हो सकते हैं लेकिन वह इमारत मस्जिद नहीं हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में क्या हुआ
पीएम मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए हजरत मोहम्मद साहब, उनके अनुयायियों हजरत उमर, सईद बुखारी और यहूदियों के बीच हुए वाकयों का बयान किया। उन्होंने आगे कहा कि मस्जिद के लिए कई कायदे नियम और बुनियादी चीजे होती हैं। मस्जिद की जमीन और इमारत की शर्तें, वक्फ करने वाला जमीन का वाजिब मालिक होना चाहिए। अजान की जगह, वजूखाना जरूरी है। कम से कम रोजाना दो बार अजान और नमाज हो। वजू के लिए पानी का स्रोत हो। मस्जिद में घंटी, प्राणी, या मूर्तियों का चित्र ना हों। जिस भूखंड पर मस्जिद हो वहां किसी दूसरे धर्म का उपासना स्थल ना हो। मस्जिद में कोई रिहायश, खाना बनाने की जगह यानी चूल्हा वगैरह ना हो। मस्जिद का रखरखाव का ज़िम्मा किसी और धर्म के लोग नहीं कर सकते हैं।
'इमारत मस्जिद नहीं हो सकती'
उन्होंने अपनी बात रखते हुए आगे कहा कि बाबर के वंशज किसी इमारत के मालिक हो सकते हैं लेकिन वह इमारत मस्जिद नहीं हो सकती। हिंदू सदियों से वहां पूजा करते रहे हैं लेकिन मुसलमानों का अकेले कब्जा कभी नहीं रहा। वह इमारत हमारे कब्जे में थी। मुसलमान शासक होने की वजह से जबरन वहां नमाज अदा करते थे। साल 1856 से पहले वहां कोई नमाज नहीं होती थी। वहीं साल 1934 तक वहां सिर्फ जुमे की नमाज होती रही।
'शुरू से हिंदुंओं की जगह'
हिंदू महासभा की ओर से हरिशंकर जैन ने दलील देते हुए कहा कि ये जगह शुरू से हिदुओं के अधिकार में रही। आजादी के बाद भी हमारे अधिकार सीमित क्यों रहें? क्योंकि यह तो 1528 से 1885 तक कहीं भी और कभी भी मुसलमानों का यहां कोई दावा नहीं था। मार्टिन ने बुकानन के रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए उसी हवाले से 1838 में इस जगह का ज़िक्र किया है। उस किताब में भी हिन्दू पूजा परिक्रमा की जाती थी.। तब किसी मस्जिद का ज़िक्र नहीं था। ट्रैफन थैलर ने भी किसी मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया है. ऐसे में हैरत है कि तब के मुस्लिम इतिहासकारों ने भी मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया।
शिया बोर्ड ने क्या कहा?
शिया बोर्ड के वकील एमसी धींगरा ने कहा कि 1936 में शिया, सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाने की बात तय हुई और दोनों की वक्फ सम्पत्तियों की सूची बनाई जाने लगी। साल1944 में बोर्ड के लिए अधिसूचना जारी हुई, वो मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति थी। हमारा मुतवल्ली तो शिया था लेकिन गलती से इमाम सुन्नी रख दिया। हम इसी वजह से मुकदमा हारे। कोर्ट ने कहा कि आप हिन्दू पक्ष का विरोध नहीं कर रहे हैं ना, बस इतना ही काफी है। सोमवार से सुन्नी वक्फ बोर्ड दलील शुरू करेगा।