राम जन्मभूमि पर फास्ट ट्रैक सुनवाई जारी, जानें पिछले तीन दिन में क्या-क्या हुआ?
अयोध्या विवादित भूमि मामले में मध्यस्थता समिति के असफल होने के बाद मंगलवार, 6 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट लगातार सुनवाई कर रही है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है. इनमें जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर शामिल हैं.
पहले दिन शुरू हुई फास्ट ट्रैक सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने सबसे पहले निर्मोही अखाड़े को अपना पक्ष रखने का मौका दिया. चीफ जस्टिस ने बहस शुरू होते ही कहा कि सबसे पहले स्टेटस और लोकस पर दलीलें रखी जाएं. जिसके बाद निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने अपनी बात कहनी शुरू की।
पहला दिन-निर्मोही अखाड़े के दावे पर सुप्रीम कोर्ट ने किए सवाल-जवाब
अपना पक्ष रखते हुए निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वर्ष 1850 से ही हिंदू पक्ष विवादित स्थान पर पूजा करता आ रहा है, लेकिन ब्रिटिश काल में ऐसा लागू नहीं रह सका था। हालांकि, ब्रिटिश काल में भी रामलला के दर्शन की सुविधा जारी रही थी। इस पर टोकते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि कोर्ट किसी जल्दबाजी में नहीं है।
इस पर निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा था कि पहले उनका पक्ष बताएंगे फिर अपनी बात को आगे रखेंगे. दरअसल, निर्मोही अखाड़ा द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ जवाबों को रखा जा रहा था, जिस पर चीफ जस्टिस ने उन्हें टोकते हुए कहा कि कोर्ट किसी जल्दबाजी में नहीं है और निर्मोही अखाड़ा अपनी बातें विस्तार से रख सकती है।
निर्मोही अखाड़ें ने अपने मालिकाना हक का दावा किया
बहस की शुरूआत करते हुए निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने विवादित स्थल के आंतरिक कोर्ट यार्ड पर अपने मालिकाना हक का दावा किया। उन्होंने दलील देते हुए कहा कि सैकड़ों वर्षों से उक्त जमीन और मन्दिर पर अखाड़े का कब्ज़ा रहा है और यह कब्जा अखाड़े के रजिस्ट्रेशन से पहले भी रहा है। निर्मोही अखाड़े ने सदियों पुराने रामलला की सेवा पूजा व मन्दिर प्रबंधन के अधिकार को छीने जाने और विवादित स्थल पर मुस्लिम पक्ष के दावे को गलत बताया।
अखाड़े के मुताबिक पूरी जमीन अखाड़े के पास ही है और गत 6 दिसंबर 1949 को आखिरी बार जन्मभूमि पर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ पढ़ी गई थी और वर्ष 1961 में वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर अपना दावा दाखिल किया। उन्होंने कोर्ट से कहा कि मुस्लिम कानून के तहत कोई भी व्यक्ति जमीन पर कब्जे की वैध अनुमति के बिना दूसरे की जमीन पर मस्जिद निर्माण नहीं कर सकता है। ऐसे में जबरन कब्जाई गई जमीन पर बनाई गई मस्जिद गैर इस्लामिक है और वहां पर अदा की गई नमाज़ कबूल नहीं होती है।
चीफ जस्टिस ने राम जन्मभूमि से जुड़े साक्ष्य पेश करने को कहा
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने निर्मोही अखाड़े से कहा कि ट्रायल कोर्ट में जज ने कहा है कि मस्जिद से पहले किसी तरह के ढांचे का कोई सबूत नहीं मिला है, जिस पर दलील देते हुए वकील सुशील जैन के कहा कि अगर मंदिर ढहा दिया तो इसका मतलब यह नहीं है कि वहां पर कोई निर्माण नहीं था.
इस पर चीफ जस्टिस ने निर्मोही अखाड़ा से अगले दो घंटों में रामजन्मभूमि से जुड़े साक्ष्य पेश करने की बात कही. इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने निर्मोही अखाड़े से रामजन्म भूमि से जुड़े असली दस्तावेज दिखाने की अपील की, तो अखाड़े ने कोर्ट को बताया कि सभी दस्तावेज इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट में दर्ज हैं।
मंगलवार दोपहर 2 बजे के बाद शुरू हुई सुनवाई के पहले दिन निर्मोही अखाड़े ने संविधान पीठ के सामने रखीं जा सकी और दूसरे दिन भी निर्मोही अखाड़ा सुबह से अपनी दलीलें कोर्ट के सामने रखेगा. हालांकि इस दौरान कोर्ट की सुनवाई के बीच लाइव टेलीकास्ट की मांग उठी, जिसे चीफ जस्टिस ने तुंरत नकार दिया।
दूसरा दिन-जब रामलला विराजमान को बगले झांकना पड़ गया
दूसरे दिन भी निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने संविधान पीठ से विवादित भूमि पर ओनरशिप और कब्जे की मांग की. निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि ओनरशिप का मतलब मालिकाना हक नहीं बल्कि कब्जे से है। इसलिए उन्हें रामजन्मभूमि पर क़ब्ज़ा दिया जाए। इस पर कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि वो किस आधार पर जमीन पर अपना हक जता रहे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप बिना मालिकाना हक के पूजा-अर्चना कर सकते हैं, लेकिन पूजा करना और मालिकाना हक जताना अलग-अलग बात है।
विवादित भूमि पर निर्मोही अखाड़े कब्जा मांगने पर जजों ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि क्या उनके पास इस बात का कोई सबूत हैं,जिससे आप साबित कर सके कि राम जन्मभूमि की जमीन पर उनका कब्जा है। इसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि 1982 में एक डकैती हुई थी, जिसमें उनके कागजात खो गए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा को अन्य सबूत पेश करने को कहा, जिसके बाद और निर्मोही अखाड़ा की दलील खत्म हो गई।
दूसरे दिन दोपहर बाद रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के सामने वकील के.परासरन ने अपना पक्ष रखना शुरू किया और विवादित स्थल पर राम की जन्म भूमि होने के पक्ष में कई तर्क दिए। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब इस स्थान का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह को राम जन्म स्थान का मंदिर माना। उन्होंने कोर्ट से कहा कि जब कोर्ट किसी संपत्ति को जब्त करता है तो कब्जाधारी के अधिकार को मामले के निपटारे तक छीना नहीं जाता।
जज ने पूछा, क्या जीसस क्राइस्ट बेथलहम में पैदा हुए थे?
वकील परासरण ने कोर्ट को बताया कि तीन जगह रामायण में यह लिखा है कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए थे।सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या जीसस क्राइस्ट बेथलहम में पैदा हुए थे और ऐसा सवाल कभी कोर्ट में आया है क्या? इस पर बगले झांकते हुए वकील परासरण ने कहा कि उन्हें यह चेक करनी पड़ेगी। इस दौरान उन्होंने बताया कि विवादित स्थल के विषय में इतिहास में कई लोगों ने अपने अनुभव लिखे हैं. वर्ष 1858 में निगम सिंह नामक व्यक्ति ने वहां पूजा की थी, जिसके बाद वहां फसाद जैसी स्थिति पैदा हो हुई थी।
परासरण ने इसके अलावा ऐतिहासिक साक्ष्य देते हुए कोर्ट से कहा कि अंग्रेजों के ज़माने में भी तब की अदालतों ने एक फैसले में वहां बाबर की बनाई मस्जिद और जन्मस्थान मन्दिर का ज़िक्र किया था। परासरण ने कहा कि ब्रिटिश राज में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना। अपनी दलील में वकील परासरण ने वाल्मिकी की रामायण का उदाहरण भी दिया।
रामलला की तरफ से दलील रखते हुए अंत में वकील परासरण ने कोर्ट से कहा कि मामले के साथ देश के हिंदुओं की भावनाएं जुड़ी हैं. लोग रामजन्म भूमि को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं, जिसका जिक्र पुराणों में भी मौजूद हैं और ऐतिहासिक दस्तावेज में भी इसके सबूत हैं। बकौल परासरण, ब्रिटिश राज में जज वैसे तो अच्छे थे, लेकिन वो भी अपने राज के उपनिवेशिक हित के खिलाफ नहीं जाते थे, लेकिन उन्होंने भी विवादित स्थल को राम जन्म स्थान का मंदिर मानने से कभी गुरेज नहीं किया।
तीसरा दिन-टूटी परंपरा, हफ्ते में 5 दिन तक होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने तीसरे दिन भी रामलला विराजमान के वकील के.परासरण ने अपनी दलीलें जारी रखनी शुरू की, लेकिन इससे पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि निर्मोही अखाड़ा-सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अलग-अलग शूट दाखिल किए हैं, इसलिए दोनों की बातें सुनी जानी चाहिए. दरअसल, निर्मोही अखाड़ा की दलीलें संविधान पीठ के सामने लगातार दो दिन तक सुनी गईं।
दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के सामने रामलला विराजमान ने रामलला जन्मस्थान को लेकर सटीक स्थान की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आसपास के क्षेत्रों में भी इसका मतलब हो सकता है। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों ही विवादित क्षेत्र को जन्मस्थान कहते हैं। इसलिए इसमें विवाद नहीं है कि ये भगवान राम का जन्मस्थान है।
उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस मुकदमे में रामलला को पक्षकार तब बनाया गया जब मजिस्ट्रेट ने CRPC की धारा 145 के तहत इनकी सम्पत्ति अटैच कर दी थी. इसके बाद सिविल कोर्ट ने वहां कुछ भी करने से रोक लगा दी और रामजन्म भूमि को मुद्दई मानने से इनकार कर दिया था। उन्होंने बताया चूंकि रामलला नाबालिग हैं, इसलिए उनके दोस्त मुकदमा लड़ रहे हैं।
जस्टिस भूषण ने पूछा, क्या जन्मस्थान को व्यक्ति माना जा सकता है?
सुनवाई कर रहे जस्टिस भूषण ने रामलला के वकील से पूछा कि क्या जन्मस्थान को व्यक्ति माना जा सकता है, जिस तरह उत्तराखंड की हाईकोर्ट ने गंगा को व्यक्ति माना था. इस पर परासरण ने कहा कि हां, रामजन्म भूमि व्यक्ति हो सकता है और रामलला भी, क्योंकि वो एक मूर्ति नहीं, बल्कि एक देवता हैं, हम उन्हें सजीव मानते हैं।
परासरण ने कहा कि देवता की उपस्थिति एक न्यायिक व्यक्ति होने के परीक्षण की एकमात्र कसौटी नहीं है, यहां नदियों की पूजा की जाती है, ऋग्वेद के अनुसार सूर्य एक देवता है। सूर्य एक मूर्ति नहीं है, लेकिन वह सर्वकालिक देवता हैं, इसलिए हम कह सकते हैं कि सूर्य एक न्यायिक व्यक्ति हैं।
फास्ट ट्रैक कोर्ट हफ्ते में पांच दिन करेगा सुनवाई
रामलला के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट ने जारी निर्मोही अखाड़ा के सूट नंबर 3 और मुस्लिम पक्ष के सूट नंबर 4 को खारिज कर दिया था, जिसके बाद 2.77 एकड़ जमीन पर फैसला होना है, किसी ने भी बंटवारे की मांग नहीं की है। रामलला की दलील के बाद सुप्रीम कोर्ट चौथे दिन यानी शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रखेगा।
गौरतलब है अमूमन रोजाना सुनवाई के तहत मंगल-बुध-गुरुवार को ही सुनवाई होती है, लेकिन वेबसाइट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ विवादित स्थल की सुनवाई शुक्रवार को भी करेगी। हालांकि सुन्नी वक्फ बोर्ड लगातार पांच दिन सुनवाई का विरोध किया है।
यह भी पढ़ें-अयोध्या विवाद: सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई पर उठाए सवाल