खतना प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, आखिर कैसे किसी को लड़की के निजी अंग छूने का अधिकार है?
नई दिल्ली। खतना जैसी प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि आखिर क्यों महिला के शरीर के अंगों को धर्म से जोड़ा जा रहा है। महिलाओं में खतना जैसी प्रथा के खिलाफ सुनीता तिवारी ने कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसपर वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रही हैं। याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिसडीवाई चंद्रचूड़ सिंह की बेंच ने कहा कि इस तरह की धार्मिक मान्यता के खिलाफ पॉस्को एक्ट है, जिसमे 18 साल की कम उम्र की लड़कियों के निजी अंग को छूना अपराध है।
अभिषेक
मनु
सिंघवी
ने
किया
बचाव
वहीं
इस
मामले
में
दाउदी
बोहरा
वीमेंस
एसोसिएशन
फॉर
रिलिजिएस
फ्रीडम
की
ओर
से
कोर्ट
में
पेश
हुए
वरिष्ठ
वकील
और
कांग्रेस
नेता
अभिषेक
मनु
सिंघवी
ने
कहा
कि
खफ्द
और
खतना
जैसी
प्रथा
इस्लाम
धर्म
में
हजारों
वर्ष
से
हैं,
जिसमे
निजी
अंग
का
बहुत
ही
छोटा
से
हिस्सा
काटा
जाता
है
जोकि
नुकसानदेय
नहीं
है,
यह
पुरुषों
की
ही
तरह
की
परंपरा
है।
यह
संविधान
में
मौलिक
अधिकार
के
तहत
आता
है,
जिसमे
धार्मिक
मान्यता
का
पालन
करने
की
आजादी
दी
गई
है।
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कई
देशों
में
है
प्रतिबंधित
लेकिन
सिंघवी
के
तर्क
के
खिलाफ
एटॉर्नी
जनरल
केके
वेणुगोपाल
ने
तर्क
देते
हुए
कहा
कि
पुरुषों
में
निजी
अंगों
का
खतना
करने
के
कुछ
लाभ
हैं,
जिसमें
एचआईवी
फैलने
का
खतरा
कम
होना
शामिल
है,
लेकिन
महिलाओं
का
खतना
हर
हाल
में
बंद
होना
चाहिए,
क्योंकि
इसके
काफी
दुष्परिणाम
हैं।
यूके,
अमेरिका,
फ्रांस
और
27
अफ्रीकी
देशों
में
यह
पूरी
तरह
से
प्रतिबंधित
है।
इंदिरा
जयसिंह
ने
कहा
कि
जिस
लड़की
का
खतना
होता
है
वह
हमेशा
सदमे
में
रहती
है
और
बड़ी
होने
तक
वह
इस
सदमे
के
साथ
जीती
है।
मौलिक अधिकार का दिया हवाला
सिंघवी ने कहा कि तीन तलाक, निकाह हलाला, बहुविवाद जैसे मुद्दे पांच जजों की बेंच को भेजा चाहिए ताकि वह इसकी संवैधानिक वैद्यता पर अपना फैसला दे सके क्योंकि यह सभी प्रथाएं इस्लाम धर्म का हिस्सा हैं। लेकिन सिंघवी की इस मांग का विरोध करते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि पुरुषों के खतना की ही तरह महिलाओं का खतना किए जाने से महिलाओं योनि से संबंधित बीमारी होती है। यही नहीं धर्म से जुड़े मौलिक अधिकार लोगों के स्वास्थ्य और नैतिकता पर निर्भर हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि आखिर क्यों किसी को इस बात का अधिकार होना चाहिए कि वह धार्मिक प्रथा के नाम पर किसी लड़की के निजी अंगों को छुए। इस मामले की सुनवाई को 16 जुलाई तक के लिए टाल दिया गया है।
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