सुप्रीम कोर्ट की प्रशांत भूषण, अरुण शौरी को अवमानना कानून पर याचिका वापस लेने की इजाजत
सुप्रीम कोर्ट की प्रशांत भूषण को अवमानना कानून पर याचिका वापस लेने की इजाजत
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अरुण शौरी, एन राम और प्रशांत भूषण ने अदालत को आपराधिक अवमानना से संबंधित कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अपनी याचिका को वापस ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को याचिका वापस लेने की अनुमति दी। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर वकील राजीव धवन ने जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ से कहा कि वे याचिका वापस लेना चाहते हैं, क्योंकि इसी मामले पर कोर्ट में कई याचिकाएं पहले से लंबित है और वे नहीं चाहते कि यह याचिका उनके साथ अटके। जिस पर बेंच ने उन्हें याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी।
धवन ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता इस चरण पर इस छूट के साथ याचिका वापस लेना चाहते हैं कि उन्हें संभवत: दो महीने बाद फिर से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी जाए। बेंच ने याचिकाकर्ताओं को इस छूट के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति दी कि वे शीर्ष अदालत के अलावा उचित न्यायिक मंच पर जा सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार एन राम, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका में आपराधिक अवमानना से निपटने वाले कानूनी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के कुछ प्रावधानों को शीर्ष अदालत रद्द कर दे। इसमें तर्क दिया गया है कि लागू उप-धारा असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के प्रस्तावना मूल्यों और बुनियादी विशेषताओं के साथ असंगत है। यह अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन करता है। असंवैधानिक, अस्पष्ट है और मनमाना है। शीर्ष अदालत को अवमानना अधिनियम की धारा 2 (सी) (i) को संविधान के अनुच्छेद 19 और 14 का उल्लंघन करने वाली घोषित करना चाहिए।
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