तीन तलाक कानून पर सुनवाई को राजी सुप्रीम कोर्ट, केंद्र से मांगा जवाब
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नई दिल्ली। हाल ही में संसद से पास हुए मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून में त्वरित तीन तलाक को दंडात्मक अपराध बनाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और चार हफ्ते में जवाब देने को कहा है। इस मामले में तीन याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की गई हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से भी याचिका दी गई है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से कहा गया है कि नए कानून में त्वरित तीन तलाक को गैर जमानती और एक दंडात्मक अपराध बनाया है। इसके तहत तीन साल की जेल हो सकती है जबकि देश में किसी दूसेरे समुदाय में इसे क्रिमिनल नहीं बल्कि दीवानी का मामला माना जाता है। ऐसे में कानून के तहत तीन साल की सजा का प्रावधान पूरी तरह से गलत है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करे।
याचिकाकर्ता के वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि इस कानून की वैधता को परखा जाए। इसमें मुस्लिम पुरुषों को तीन साल तक की सजा समेत अन्य प्रावधान सही नहीं हैं। इस पर जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने सरकार को नोटिस जारी किया है।
तीन तलाक को लेकर बीते महीने जुलाई में संसद के दोनों सदनों ने बिल पास किया था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 1 अगस्त को तीन-तलाक विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसके बाद एक साथ तीन बार तलाक अपराध की श्रेणी में आ गया है। ऐसा करने पर तीन साल तक की सजा का प्रावधान है।
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