अयोध्या में मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को यहां मिल सकती है 5 एकड़ जमीन
बेंगलुरू। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद रामजन्मभूमि विवाद का निपटारा हो चुका है। एक ओर जहां विवादित भूमि पर भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनने का रास्ता आसान हो गया है। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन की तलाश लगभग पूरी हो गई है। सुप्रीम कोर्ट निर्देश के बाद राजस्व विभाग ने मस्जिद के लिए 5 एकड़ भूमि की तलाश शुरू कर दी थी।
सूचना के मुताबिक यूपी राजस्व विभाग ने अयोध्या के 14 कोसी परिक्रमा क्षेत्र से बाहर मस्जिद के लिए 5 एकड़ भूमि तलाश है, जो कि शहनवां ग्रामसभा में स्थित है। हालांकि राजस्व विभाग अभी विकल्पों पर भी विचार कर रही है इसलिए अयोध्या क्षेत्र के तहसील सोहावल, बीकापुर और सदर तहसील में तेजी से मस्जिद के लिए भूमि तलाशने का किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है प्रस्तावित मस्जिद के लिए शहनवां ग्रामसभा में जमीन की चर्चा इसलिए जोरों पर हैं, क्योंकि यहीं पर मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के क्रब मौजूद है। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बाबरी मस्जिद का मुतवल्ली और शहनवां गांव के निवासी शिया बिरादरी के रज्जब अली और उनके बेटे मो. असगर ने अपनी जमीन मस्जिद के लिए देने की घोषणा कर दी है।
माना जाता है इसी परिवार को ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 302 रुपए छह पाई की धनराशि विवादित स्थल पर निर्मित बाबरी मस्जिद के रखरखाव के लिए दी जाती थी। इसका जिक्र सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के दावे में भी किया गया है। यह अलग बात है कि बाबरी मस्जिद पर अधिकार को लेकर शिया वक्फ बोर्ड व सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के बीच विवाद के बाद वर्ष 1946 में कोर्ट ने सुन्नी बोर्ड के पक्ष में सुनाया था।
इतिहास के पन्नों में दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक मुगल शासक बाबर का सिपहसलार रहे मीर बाकी ने वर्ष 1528 में अयोध्या के विवादित परिसर पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। शहनवां ग्राम सभा जहां पर प्रस्तावित मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने की बात की जा रही है, कथित रूप से वहीं पर मीर बाकी की कब्र है।
मीर बाकी की कब्र के आसपास की भूमि प्रस्तावित मस्जिद के लिए उपयुक्त हो सकती है, क्योंकि अयोध्या के विवादित परिसर पर मीर बाकी द्वारा बनवाए गए बाबरी मस्जिद के मतव्वली के वारिसान पहले ही मस्जिद के लिए अपनी जमीन देने की घोषणा कर चुके हैं। इससे संभावना जताई जा रही है कि प्रस्तावित मस्जिद के लिए शहनवां ग्रामसभा की 5 एकड़ भूमि को योगी सरकार द्वारा प्रस्तावित मस्जिद के लिए अधिसूचित की जा सकती है।
गौरतलब है वर्ष 1990-91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में हिन्दू-मुस्लिम पक्ष की वार्ता के दौरान मस्जिद के लिए विहिप की ओर से ही शहनवां गांव में जमीन दिए जाने का प्रस्ताव किया गया था। यह अलग बात है कि मुस्लिम पक्ष ने विवादित परिसर से अपना दावा वापस लेने से इंकार कर दिया था।
विहिप के तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ने इसके बाद ही बाबर के नाम पर देश में कहीं भी मस्जिद नहीं स्वीकारने का ऐलान कर दिया था, लेकिन 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा विवादित परिसर रामलला विराजमान को सौंपे जाने के बाद भी अब अपने पुराने विहिप स्टैंड पर कायम है।
विहिप का कहना है कि अगर मुगल शासक बाबर के सिपहसलार रहे मीर बाकी के कथित कब्र स्थान वाली भूमि अगर प्रस्तावित मस्जिद के लिए अधिगृहित किया जाता है, तो वहां निर्मित मस्जिद का नामकरण मीर बाकी के नाम पर किया जा सकता है। ताशकंद यानी उजबेकिस्तान का निवासी मीर बाकी मंगोल आक्रमणकारी बाबर के आदेश पर ही वर्ष 1528-29 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था।
उस वक्त विवादित स्थल रामकोट के नाम से जाना जाता था, जहां भगवान राम का भव्य मंदिर बना हुआ था। उस वक्त मीर बाकी तक अवध प्रदेश का शासक था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में जनवरी-फरवरी 1526 में बाकी की चर्चा शाघावाल नाम से मिलती है।
हालांकि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की आत्मकथा बाबरनामा में मीर बाकी की कई नामों से चर्चा की गई है। उसे मीर ताशकंदी, बाकी शाघावाल, बाकी बेग और बाकी मिंगबाशी नामों से उसकी चर्चा मिलती है, लेकिन बाबरनामा में कहीं उसके लिए मीर नाम का प्रयोग नहीं किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि इंग्लिश इतिहासकार फ्रांसिस बुकानन ने 1813-14 में बाकी के नाम के आगे मीर लगाया।
वहीं, मस्जिद के शिलालेखों के अनुसार बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने 1528-29 में बाबरी मस्जिद का निर्माण के लिए रामकोट यानी राम के किले को चुना था और मस्जिद बनाने के लिए राम के किले पर पहले से मौजूद भगवान श्री राम के मंदिर को तोड़ा गया था।
गत 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ अब चूंकि विवादित परिसर का रामलला का जन्मस्थान मान लिया है इसलिए अब यह विवाद खत्म हो गया है कि विवादित परिसर रामजन्मभूमि है अथवा नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थिल से इतर मुस्लिमों के लिए मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन वैकल्पिक के तौर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, जिसकी तलाश सरगर्मी से प्रदेश सरकार कर रही है।
माना जा रहा है कि मस्जिद के लिए जमीन का अधिग्रहण होने के बाद भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंप दिया जा सकता है और करीब तीन महीने के भीतर ही राम मंदिर और मस्जिद निर्माण का कार्य शुरू एक साथ शुरू हो सकता है।
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