सुब्रमण्यम स्वामी ने जीती IIT-Delhi से वेतन की लड़ाई, मिलेंगे करीब 40 लाख रुपये
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (IIT Delhi) के साथ अपने वेतन को लेकर चल रही लड़ाई का एक राउंड जीत लिया है। सोमवार को दिल्ली की स्थानीय अदालत ने आईआईटी दिल्ली को सुब्रमण्यम स्वामी के 1972 और 1991 के बीच की अवधि के वेतन भुगतान का आदेश दिया है। अदालत ने संस्थान को 8 फीसदी प्रति वर्ष के ब्याज पर बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया। ThePrint से बातचीत में सुब्रमण्यम स्वामी के वकील ने बताया कि ये बकाया राशि लगभग 40 से 45 लाख रुपये होगी।
|
सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट कर दी जानकारी
दिल्ली की साकेत कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सोमवार को एक ट्वीट किया। स्वामी ने इस ट्वीट ने लिखा, '47 वर्षों के बाद IIT दिल्ली को साकेत कोर्ट में मेरे खिलाफ हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें मुझे सालाना 8 फीसदी ब्याज की दर पर मेरे वेतन का भुगतान करना है। इससे पहले उन्हें इकोनॉमिक्स के प्रोफेसरशिप के लिए मुझे बहाल करना पड़ा था, जहां मैंने एक दिन बाद इस्तीफा दे दिया। अकादमिक जगत के सभी प्रसंगों के लिए ये एक उदाहरण की तरह हैं।'
इसे भी पढ़ें:- जानिए कौन है वो भाजपा सांसद जिसकी संपत्ति पांच साल में 106 करोड़ घट गई
दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सुनाया फैसला
इस संबंध में IIT-दिल्ली के अधिकारियों ने बताया कि मामला अब संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के पास जाएगा, वहीं इस पर आगे फैसला करेंगे। आईआईटी-दिल्ली के निदेशक वी. रामगोपाल राव ने ThePrint को बताया, "हम इस संबंध में बोर्ड को सूचित करेंगे और फिर उन्हें निर्णय लेने देंगे कि इस पर आगे क्या किया जाना चाहिए।"
स्वामी ने तीन साल तक IIT दिल्ली में पढ़ाया था अर्थशास्त्र
राजनीति में आने से पहले, सुब्रमण्यम स्वामी ने 1969 से 1972 तक तीन साल IIT में अर्थशास्त्र पढ़ाया था। हालांकि 1972 में, उन्हें एडमिनिस्ट्रेशन के साथ कई टकरावों के बाद संस्थान द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद उन्हें 1991 में दिल्ली की एक अदालत द्वारा उन्हें फिर बहाल किया गया था। इस बीच स्वामी लगातार दावा करते रहे हैं कि उनका निष्कासन राजनीति से प्रेरित था, और अपनी बकाया राशि की मांग कर रहे थे।
इसे भी पढ़ें:- लोकसभा चुनाव 2019: बीजेपी के 'संकल्प पत्र' में आडवाणी को क्यों नहीं मिली जगह?