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स्वाति सिंह Vs दयाशंकर सिंह: वो सीट, जहाँ से टिकट के लिए पति-पत्नी दावा कर रहे हैं

स्वाति सिंह के बारे में कहा जाता है कि दयाशंकर सिंह ने ही राजनीति में उनकी एंट्री कराई थी. लेकिन मंत्री बनने के बाद दोनों टिकट के लिए एक ही सीट से, एक ही पार्टी से, एक ही राज्य से चुनाव का टिकट माँग रहे हैं.

By BBC News हिन्दी
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भारतीय राजनीति में एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग पार्टी का झंडा लेकर चलते हैं, इसमें कोई नई बात नहीं है.

राहुल गांधी और वरुण गांधी, जयंत सिन्हा और यशवंत सिन्हा, शिवपाल यादव और अखिलेश यादव और अब स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी का नाम भी इस फ़ेहरिस्त में शामिल हो गया है.

वैसे लिस्ट लंबी है लेकिन उदाहरण के लिए ये कुछ नाम हैं. ऐसे मामलों में अक्सर देखा जाता है कि परिवार के दोनों सदस्यों की दावेदारी अलग-अलग सीट पर होती है.

लेकिन इस बार के उत्तर प्रदेश चुनाव में एक दंपति ऐसे हैं जो एक ही सीट से, एक ही पार्टी से दावेदारी ठोक रहे हैं.

story of sarojini nagar seat and about swati singh daya shankar up election

ये मामला इसलिए भी दिलचस्प हो गया है क्योंकि आम धारणा ये है कि पति की वजह से ही पत्नी की राजनीति में एंट्री हुई और अब पत्नी पति के सामने चुनौती बन कर खड़ी हैं.

हम जिस दंपति की बात कर रहे हैं - वो हैं स्वाति सिंह और दयाशंकर सिंह. दोनों पति पत्नी जिस सीट पर अपना दावा ठोक रहे हैं वो सीट है - लखनऊ की सरोजनीनगर सीट.

स्वाति सिंह की राजनीति में एंट्री पर बात बाद में, पहले बात दोनों की दावेदारी की.

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दयाशंकर सिंह, क्यों ठोक रहे हैं दावेदारी ?

दोनों की दावेदारी के बारे में बीबीसी ने दोनों से सवाल किया. स्वाति सिंह, फ़िलहाल इस सीट से विधायक हैं और महिला कल्याण एवं बाल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं. दयाशंकर सिंह उत्तर प्रदेश भाजपा में प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

बीबीसी से बातचीत में दयाशंकर सिंह ने कहा कि वो भी सरोजनीनगर सीट से टिकट चाहते हैं. लेकिन साथ में ये भी जोड़ते हैं, " मैं जानता हूँ कि ऐसा भी नहीं है कि मैं जो चाहूंगा पार्टी वही करेगी. पार्टी जिसको मज़बूत समझती है, उचित समझती है, उसी को लड़ा दे."

सरोजनीनगर सीट से उनकी दावेदारी क्यों बनती है? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "पिछली बार भी मेरी दावेदारी थी. लेकिन पार्टी ने कहा आप मत लड़ें, स्वाति सिंह को चुनाव लड़वाने में मदद करें. तो मैंने लड़वाया. दावेदारी तो हर समय रहती है. बाक़ी निर्णय पार्टी का है."

सरोजनीनगर इलाके में हाल फ़िलहाल में दयाशंकर सिंह ने अपने नाम के पोस्टर बैनर भी लगवाए हैं और विधानसभा क्षेत्र में लोगों से मिल रहे हैं.

https://www.facebook.com/dayashankar4bjp/photos/pcb.3121119534835263/3121114204835796/

आख़िर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसके जवाब में दयाशंकर सिंह हमसे ही सवाल पूछते हैं, "स्वाति सिंह जब लड़ी थीं, तो क्या तब मेरे पोस्टर नहीं लगे थे. जब वो राजनीति में आई थीं, तब उनके साथ पोस्टर नहीं लगते थे?"

ये पूछते समय उनकी आवाज़ में एक अलग तरह के गर्व का एहसास था.

लेकिन एक ही परिवार के दो लोग एक ही सीट पर दावा ठोक कर दूसरे की दावेदारी कमज़ोर क्यों कर रहे हैं, इस सवाल पर वो तुरंत सॉफ़्ट हो जाते हैं और कहते हैं, "निर्णय पार्टी को करना है. यही सीट नहीं, राज्य में ऐसी कई सीटें हैं जहाँ एक से ज़्यादा लोग अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. किसी मंत्री के ख़िलाफ़ कोई दूसरा टिकट नहीं माँगेगा, ये तो नहीं होता. एक परिवार के दो लोग भी टिकट माँगते ही हैं. पिछली बार भी मैंने माँगा था, पार्टी ने दिया था क्या? "

स्वाति सिंह के बारे में वो कहते हैं, " पाँच साल पहले जब वो राजनीति में आई थीं, तो नई थीं. लेकिन आज वो राज्य में मंत्री हैं. मंत्री के रूप में उन्होंने काम किया है. अब वो राजनीति में नई नहीं हैं. वो सरकार में हैं, मैं संगठन में काम करता हूं, इसलिए उनकी राजनीति पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता.

साथ ही उन्होंने ये साफ़ भी कर दिया कि इस सीट या किसी दूसरी सीट के लिए भी पार्टी का जो भी निर्णय होगा, वो उन्हें कबूल होगा. निर्दलीय या किसी दूसरी पार्टी से इस सीट पर चुनाव लड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता.

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परिवारवाद पर बीजेपी

वैसे बीजेपी हमेशा से परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टी के तौर पर जानी जाती है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पार्टी एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट नहीं देती. बीजेपी के अंदर ऐसे उदाहरण हैं, जब एक ही परिवार में कोई सदस्य बीजेपी का सांसद है और दूसरा सदस्य विधायक. राजनाथ सिंह सांसद हैं और उनके बेटे पंकज सिंह विधायक हैं, जिन्हें इस बार भी टिकट मिला है.

अब तक स्वामी प्रसाद मौर्य का भी मामला कुछ ऐसा ही था. बेटी बीजेपी से सांसद हैं और वो पार्टी के विधायक और राज्य में मंत्री भी थे.

लेकिन एक ही परिवार के दो विधायक एक ही राज्य से हों, ऐसा उदाहरण बीजेपी में नहीं, ये ख़ुद दयाशंकर सिंह भी मानते हैं.

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स्वाति सिंह ने क्या कहा?

स्वाति सिंह ने बीबीसी से बात तो की, लेकिन किसी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया. पर विधानसभा क्षेत्र में लगे पोस्ट और बैनर इस बात की गवाही देते हैं कि वो सरोजनीनगर से इस बार भी अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं. उनकी ट्विटर टाइमलाइन इसकी तस्दीक करते हैं, जहाँ विधानसभा में लोगों से मिलते-जुलते प्रचार करते हुए उन्होंने कई वीडियो पोस्ट किए हैं.

दिसंबर के अंत में समाचार चैनल आजतक से बात करते हुए उन्होंने सरोजनीनगर विधानसभा सीट के लिए किए गए काम के बूते पर टिकट की दावेदारी पेश की. उन्होंने कहा, 2017 में इस इलाके में बिजली एक बहुत बड़ी समस्या थी. आज एक भी घर ऐसा नहीं जिसमें बिजली नहीं है. डिफ़ेंस कॉरिडॉर मेरे ही क्षेत्र में बनेगा. पाँच साल बाद मेरे क्षेत्र में एक भी बेटा या बेटी बेरोजग़ार नहीं रहेगा."

सरोजनीनगर से दावेदारी पर उन्होंने एक दूसरे समाचार पत्र को इंटरव्यू में कहा, "मुझे नहीं लगता कि बीजेपी का कोई कार्यकर्ता पार्टी लाइन से अलग जाते हुए कोई बयानबाज़ी कर सकता है. मैं बीजेपी की अनुशासित कार्यकर्ता हूँ. ऐसे में किसी की भी दावेदारी को लेकर टिप्पणी नहीं कर सकती. मैं अपनी दावेदारी को लेकर कोई टिप्पणी नहीं कर सकती."

कौन हैं दया शंकर सिंह?

दया शंकर सिंह ने जुलाई 2016 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती के ख़िलाफ़ अभद्र टिप्पणी की थी. उन पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए दयाशंकर ने कहा था, "मायावती टिकट बेचती हैं और बेचने के बाद यदि कोई ज़्यादा क़ीमत देता है तो फिर टिकट ज़्यादा क़ीमत लगाने वाले को दे देती हैं. यही नहीं, यदि उससे भी ज़्यादा क़ीमत टिकट की लगती है तो फिर सबसे ज़्यादा बोली लगाने वाले को ही टिकट मिलता है."

इस दौरान उन्होंने आपत्तिजनक तरीक़े से मायावती की तुलना वेश्या से की और कहा कि 'उनसे अच्छी तो वेश्या है जो कम से कम अपने वायदे पर तो खरी उतरती है.'

दयाशंकर सिंह कि इस टिप्पणी का वीडियो सार्वजनिक होने के बाद उनकी चारों ओर आलोचना होने लगी जिसे देखते हुए उन्होंने कुछ ही देर बाद बलिया में प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी भी मांगी. लेकिन मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि यूपी पुलिस ने दयाशंकर सिंह पर एससी/एसटी एक्ट के तहत एफ़आईआर दर्ज़ किया.

जुलाई 2016 में उन्हें गिरफ़्तार करके जेल भेजा और बीजेपी ने जुलाई 2016 में उन्हें छह साल तक के लिए निलंबित कर दिया. लेकिन मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उनका निलंबन वापस ले लिया गया. अब वो संगठन में ही काम कर रहे हैं और लखनऊ के सरोजनीनगर सीट से अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं.

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स्वाति सिंह की राजनीति में एंट्री?

वहीं जुलाई, 2016 से पहले स्वाति सिंह कभी राजनीति में आएंगी, ऐसा ख़ुद स्वाति सिंह ने भी नहीं सोचा था. लेकिन परिस्थितियों ने स्वाति सिंह को ना केवल राजनीति में ला दिया, बल्कि उस स्थिति में पहुंचा दिया जहां वो बीजेपी की टिकट पर चुनाव जीत कर पहली बार में ही विधायक बन गईं और राज्य में मंत्री भी.

उनका राजनीतिक करियर केवल पांच साल का है.

दरअसल, दयाशंकर सिंह ने जब बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की, उसके बाद बहुजन समाज पार्टी के कुछ नेताओं ने उनके घर के बाहर प्रदर्शन किया और उनकी पत्नी, मां और बेटी के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां कीं.

तब स्वाति सिंह ने मायावती से सवाल किया था कि 'उनके पति ने ग़लती की है तो कानून उन्हें सज़ा देगा, लेकिन उनके परिवार और उनकी बेटियों को लेकर जो भद्दी टिप्पणियां की जा रही हैं, उनका जवाब कौन देगा?'

उनका यही बयान उनकी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट बना. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को उनमें संभावना नज़र आई और उन्हें पार्टी के राज्य महिला विंग का अध्यक्ष बना दिया गया. बाद में चुनाव में उन्हें सरोजनीनगर विधानसभा सीट से टिकट मिला. इस सीट पर स्वाति सिंह ने 30 हजार के ज़्यादा मतों के अंतर से जीत दर्ज़ की और पहली बार में मंत्री बन गईं.

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सरोजनीनगर के चुनावी समीकरण

2017 के पहले भारतीय जनता पार्टी को इस सीट पर कभी जीत नहीं मिली थी.

2002 और 2007 में बसपा के इरशाद ख़ान इस सीट से विधानसभा पहुँचे थे. वहीं 2012 में सपा के शारदा प्रसाद शुक्ला विजयी रहे. 2017 में समाजवादी पार्टी ने अनुराग यादव को टिकट दिया था.

सरोजनीनगर विधानसभा क्षेत्र में क़रीब पांच लाख वोटर हैं. सरोजनी नगर विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. ठाकुर और ब्राह्मण के साथ-साथ मुसलमान आबादी भी यहाँ अच्छी ख़ासी है. इस सीट का ज़्यादातर इलाका ग्रामीण है.

हालांकि टिकट बंटवारे को लेकर कुछ जानकारों का कहना है कि परिवार में एक का टिकट कटा और दूसरे को टिकट मिला तो टिकट परिवार में ही रह जाएगा. लेकिन कुछ जानकार कहते हैं कि पति-पत्नी की लड़ाई में कहीं फ़ायदा तीसरे उम्मीदवार को ना हो जाए.

23 फ़रवरी को इस विधानसभा सीट के लिए वोट पड़ना है. ख़बर लिखे जाने तक इस सीट से बीजेपी ने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की थी.

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