मरने के बाद पूरा हुआ श्रीदेवी का पुराना सपना
श्रीदेवी को फिल्म 'मॉम' के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार मिलने पर उनका वह सपना पूरा हो गया, जिसे वह बरसों से देखा करती थीं. दुख बस यही है कि उनका यह बरसों पुराना सपना उनके मरने के बाद पूरा हुआ है.
श्रीदेवी ने अपने क़रीब 50 साल के करियर में बाल कलाकार से लेकर बच्चों की 'मॉम' तक की विभिन्न भूमिकाओं में एक से एक शानदार फिल्म दी.
श्रीदेवी को फिल्म 'मॉम' के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार मिलने पर उनका वह सपना पूरा हो गया, जिसे वह बरसों से देखा करती थीं. दुख बस यही है कि उनका यह बरसों पुराना सपना उनके मरने के बाद पूरा हुआ है.
श्रीदेवी ने अपने क़रीब 50 साल के करियर में बाल कलाकार से लेकर बच्चों की 'मॉम' तक की विभिन्न भूमिकाओं में एक से एक शानदार फिल्म दी. लेकिन उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार उनकी 300वीं और अंतिम फिल्म 'मॉम' के लिए मिला. जबकि उनके फिल्मी जीवन में कई ऐसे मौक़े आए जब श्रीदेवी सहित हमको भी लगा कि श्रीदेवी को इस बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका और जब पुरस्कारों की घोषणा हुई तो वह पुरस्कार श्रीदेवी की जगह किसी और अभिनेत्री की झोली में चला गया.
लेकिन अब जब श्रीदेवी इस दुनिया में नहीं रहीं तो उनके निधन के 48 दिन बाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने से श्रीदेवी की आत्मा के साथ उनके आत्मजनों को भी संतुष्टि मिलेगी कि आख़िर आज उन्हें वह सम्मान मिल ही गया जो उन्हें बरसों पहले मिल जाना चाहिए था. हालांकि यह पहला मौक़ा होगा जब किसी अभिनेत्री को मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेगा.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की चाहत हल कलाकार को होती है, भले ही इससे उनके जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन आए या नहीं. यह पुरस्कार अच्छे अभिनय पर सरकारी मुहर लगाकर उस कलाकार को विशिष्ट पहचान और मान्यता प्रदान करता है.
'सारी इच्छाएं पूरी नहीं होतीं'
श्रीदेवी से साल 1991 में मैंने राष्ट्रीय पुरस्कार को लेकर बातचीत की थी. वो तब जयपुर में एक फिल्म की शूटिंग कर रही थीं. मैंने उनसे पूछा था कि आपको इतनी लोकप्रियता और सफलता मिल चुकी है लेकिन आपको अभी तक सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिला, क्या इस बात का अफ़सोस रहता है आपको? इस पर श्रीदेवी ने जवाब दिया था, "मैं भी चाहती हूं मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. यह तो हर एक कलाकार का सपना होता है. मेरा भी यह सपना है. अभी तक नहीं मिला, इसका दुख तो रहता है. लेकिन क्या कह सकते हैं, इंसान की सारी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकतीं."
श्रीदेवी ने 1967 में दक्षिण भारतीय फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया था. लेकिन जब 1978 में बतौर नायिका फिल्म 'सोलहवां सावन' से वह हिंदी फिल्मों में आईं तो उन्हें सफलता नहीं मिली. लेकिन जब 1983 में उनकी फिल्म 'सदमा' और 'हिम्मतवाला' आई तो वह देखते देखते हिंदी फिल्मों की भी स्टार बन गईं.
बार बार टलता रहा मौक़ा
'हिम्मतवाला' ने जहां व्यावसायिक रूप से ज़बरदस्त सफलता पाई वहां 'सदमा' ने दिखा दिया कि वह एक शानदार अभिनेत्री हैं.
मैं एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में यही सोचकर 'सदमा' देखने गया था कि इसमें कमल हासन जैसे अभिनेता हैं. लेकिन जब मैं फिल्म देखकर बाहर निकला तो श्रीदेवी का दिलकश अभिनय मेरे साथ हो चला था. तभी लगा था कि श्रीदेवी को इस बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेगा. लेकिन 1983 का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार उस साल श्रीदेवी को न मिलकर, फिल्म 'खंडहर' के लिए शबाना आज़मी को मिल गया.
ऐसे ही साल 1987 में जब श्रीदेवी की फिल्म 'मिस्टर इंडिया' आई तो भी लगा कि इस बार का राष्ट्रीय पुरस्कार यह 'हवा हवाई गर्ल' ही ले उड़ेगी. लेकिन उस बरस भी यह श्रीदेवी को न मिलकर तमिल फिल्म 'विडू' के लिए अभिनेत्री अर्चना की झोली में चला गया. लेकिन जब 1989 में श्रीदेवी की एक नहीं दो दो शानदार फ़िल्में आईं 'चांदनी' और 'चालबाज़' तो एक लहर सी थी कि इस बार यह बेमिसाल अभिनेत्री राष्ट्रीय पुरस्कार ज़रूर जीतेंगी. पर तब भी सभी धारणाएं धरी की धरी रह गईं और उस बरस यह पुरस्कार बांग्ला अभिनेत्री श्रीलेखा मुखर्जी के खाते में चला गया.
ऐसा एक और मौका तब आया जब 1991 में श्रीदेवी की एक और यादगार फिल्म 'लम्हे' प्रदर्शित हुई. लेकिन तब भी बाज़ी श्रीदेवी के हाथ न लगकर असमिया अभिनेत्री मोलोया गोस्वामी के हाथ लगी. 1997 में जब फिल्म 'जुदाई' आई तो फिर लगा कि श्रीदेवी का अरमान पबरा होगा. लेकिन उस बरस भी यह पुरस्कार बांग्ला फिल्म 'दहन' के लिए संयुक्त रूप से दो अभिनेत्रियों इंद्राणी हलधर और ऋतुपर्णो सेनगुप्ता के पास चला गया.
'मॉम' ने दिलाया पुरस्कार
इस दौरान श्रीदेवी को 'चालबाज़' और 'लम्हे' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस के फिल्मफेयर अवार्ड तो मिले. दक्षिण की फिल्मों के लिए भी उन्हें फिल्मफेयर सहित कुछ और अवॉर्ड्स भी मिलते रहे. साल 2013 में सरकार ने श्रीदेवी को पद्मश्री भी दिया. लेकिन तब भी उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार न मिलना कई लोगों को खटकता था.
श्रीदेवी के पति बोनी कपूर से हमने बात की तो उन्होंने इस पुरस्कार पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा, "श्रीदेवी को इससे पहले साल 1970 में बाल कलाकार के रूप में फिल्म 'कोमबाटा' के लिए केरल सरकार का स्टेट अवॉर्ड तो मिला लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें पहली बार मिला है."
जिस फिल्म 'मॉम' के लिए श्रीदेवी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला है, उसके मुख्य निर्माता बोनी कपूर ही हैं. यह फिल्म 7 जुलाई 2017 को हिंदी सहित तमिल, तेलुगु और मलयालम यानी कुल चार भाषाओं में प्रदर्शित हुई थी. इस फिल्म में श्रीदेवी ने एक ऐसी स्कूल टीचर देवकी का किरदार निभाया है जो अपनी सौतेली बेटी के साथ बलात्कार होने पर उसे इंसाफ दिलाने की लंबी जंग लड़ती है. फिल्म में श्रीदेवी का सशक्त अभिनय अभिनय झकझोर कर रख देता है.
यह नियति का खेल है या संयोग कि जीते जी श्रीदेवी जैसी लाजवाब अभिनेत्री कोई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाने के सपने देखती रहीं. लेकिन मरणोपरांत उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों सम्मान मिल रहे हैं. बीती 24 फरवरी को दुबई में हुए श्रीदेवी के निधन के बाद जब 28 फरवरी को मुंबई के विले पार्ले में उनका अंतिम संस्कार किया गया तो उनके शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटकर उन्हें विशेष सम्मान दिया गया. वह पहली भारतीय अभिनेत्री थीं जिन्हें ऐसा सम्मान मिला.
साथ ही पिछले दिनों ऑस्कर फिल्म समारोह में पहली बार किसी भारतीय फिल्म अभिनेत्री को श्रद्धांजलि देकर श्रीदेवी को बड़ा सम्मान दिया गया. अब उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना इन बड़े सम्मानों की अगली बड़ी कड़ी है.