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भाजपा से अलग होने के बाद मुश्किल में चंद्रबाबू नायडू, ये हैं बड़ी चुनौती

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नई दिल्ली। कुछ ही दिनों में आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है। लोकसभा चुनाव के साथ ही आंध्र प्रदेश विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। गौर करने वाली बात यह है कि पिछली बार टीडीपी ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार टीडीपी ने भाजपा से गठबंधन खत्म कर दिया है। ऐसे में आंध्र प्रदेश की राजनीति इस बार नए समीकरण देखने को मिलेंगे। चुनाव से ठीक पहले टीडीपी सांसद एम श्रीनावास राव ने वाईएसआर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है, जिसके बाद टीडीपी नेता दसारी जय रमेश ने भी शुक्रवार को वाईएसआर में शामिल हो गए।

साथ छोड़ते नेता

साथ छोड़ते नेता

जिस तरह से एक के बाद एक टीडीपी नेता पार्टी का हाथ छोड़ रहे हैं उससे साफ है कि ये नेता डूबती नाव में सवार नहीं होना चाहते हैं। टीडीपी विधायक अमांची कृष्ण राव मोहन ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है, माना जा रहा है कि वह भी वाईएसआर में शामिल हो सकते हैं। इन तमाम नेताओं को आशंका है कि सरकार विरोधी लहर की वजह से आगामी चुनाव में चंद्रबाबू नायडू का राह मुश्किल हो सकती है। इसकी बड़ी वजह यह है कि 2014 के कई वादों को सरकार पूरा नहीं कर सकी है।

टीडीपी की मुश्किल

टीडीपी की मुश्किल

एक तरफ जहां तमाम नेता टीडीपी का साथ छोड़ रहे हैं जिसने चंद्रबाबू नायडू की मुश्किल को बढ़ा दिया है तो दूसरी तरफ वाईएसआर मुखिया वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने 3648 किलोमीटर की पदयात्रा पूरी की और उनकी पार्टी की स्थिति मजबूत नजर आ रही है। 2014 में टीडीपी, भाजपा और पवन कल्याण की पार्टी ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन बाद में टी़डीपी ने भाजपा पर आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने का आरोप लगाते हुए गठबंधन से अलग होने का फैसला लिया।

कई चुनावी वादे

कई चुनावी वादे

चंद्रबाबू नायडू ने गैर एनडीए दलों के साथ नजदीकी बढ़ा दी है और वह राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल हो गए हैं, लेकिन प्रदेश में उन्होंने किसी भी क्षेत्रीय दल के साथ गठबंधन नहीं किया है। बता दें कि 2004 के बाद यह पहली बार है कि टीडीपी प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसे हालात में नायडू ने कई लोकलुभावन चुनावी वादे किए हैं। उन्होंने कई जातियों और समुदाय के लिए चुनावी वादे किए इसके अलावा किसानों को 10000 रुपए प्रति वर्ष देने का भी ऐलान किया है।

Anger on Naidu

Anger on Naidu

जिस तरह से नायडू ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया है उसके बाद उनके खिलाफ लोगों में नाराजगी है, 2014 में जिस तरह से प्रदेश का बंटवारा हुआ उसके लिए लोग कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हैं। बता दें कि 2014 में कांग्रेस को यहां एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। टीडीपी और कांग्रेस ने साफ किया है कि उनका प्रदेश में किसी तरह का कोई गठबंधन नहीं है, दोनों ही दल राष्ट्रीय स्तर पर साथ हैं। पडोसी राज्य तेलंगाना में पिछले वर्ष दिसंबर माह में चुनाव हुए थे और यहां टीडीपी-कांग्रेस गठबंधन को लोगों ने सिरे से खारिज कर दिया था।

चुनावी वादों पर घिर सकते हैं नायडू

चुनावी वादों पर घिर सकते हैं नायडू

चंद्रबाबू नायडू को बेहतर प्रशासक के तौर पर माना जाता है, ऐसे में विपक्ष उनपर 2014 में किए गए चुनावी वायदे पूरा नहीं करने को लेकर घेरेगा। इसमे सबसे बड़ा वादा महिलाओं द्वारा ग्रामीण इलाकों में महिला एवं बाल विकास के लिए लिया गया 1.50 लाख रुपए कर्ज माफ करना सबसे बड़ा वादा था। इसके अलावा नायडू की सरकार ने विश्व स्तरीय प्रदेश की राजधानी अमरावती का वादा किया था जोकि जिसके निर्माण का काम अभी शुरुआती चरण में है, प्रदेश सरकार अभी भी अस्थायी कार्यालय से चल रही है।

कापू समुदाय की अहम भूमिका

कापू समुदाय की अहम भूमिका

इस बार के चुनाव में टीडीपी की सबसे बड़ी चुनौती 17 फीसदी कापू समुदाय के लोग हैं। पिछले चुनाव में इस समुदाय ने पवन कल्याण के प्रभाव की वजह से टीडीपी का समर्थन किया था। पवन कल्याण की जन सेना पार्टी इस बार चुनाव में टीडीपी से अलग चुनाव लड़ सकती है जिससे टीडीपी को बड़ा नुकसान हो सकता है। दिसंबर 2017 में टीडीपी सरकार ने कापू समुदाय को रोजगार में 5 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया था। लेकिन यह आरक्षण महज कागजों पर है और इसे लागू नहीं किया जा सका, संसद में इसे कानून का रूप नहीं दिया सका। इस बार जब केंद्र सरकार ने जब ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया तो आंध्र सरकार ने कापू समुदाय को 5 फीसदी अतिरिक्त इडब्ल्यूएस आरक्षण देने का ऐलान किया था।

भाजपा-टीडीपी आमने-सामने

भाजपा-टीडीपी आमने-सामने

भाजपा से अलग होने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। नायडू लगातार इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि वह इस मुकाबले को सीधे तौर पर चंद्रबाबू नायडू और नरेंद्र मोदी के तौर पर आगे बढ़ाएं। वह टीआरएस पर आरोप लगा रहे हैं कि वह वाईएसआर और भाजपा की मदद से टीडीपी को हरा रहे हैं। नायडू ने मोदी सरकार के खिलाफ प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने के चलते एक दिन का अनशन किया था।

जगन मोहन रेड्डी की लोकप्रियता

जगन मोहन रेड्डी की लोकप्रियता

टीडीपी लगातार इस बात की कोशिश में जुटी है कि वह प्रदेश में खुद की स्थिति को मजबूत कर सके। टीडीपी और भाजपा के बीच रिश्ते काफी कटु हो गए हैं। लेकि जगन मोहन रेड्डी ने टीआरएस और भाजपा के साथ अपने संबंधों को बेहतर रखा है। भाजपा भी जगन मोहन को बेहतर साथी के तौर पर देख रही है। वहीं केसीआर चाहते हैं कि जगन मोहन गैर कांग्रेस, गैर भाजपा गुट का हिस्सा बनें। 11 महीने तक की अपनी पदयात्रा के दौरान जगन मोहन ने अपनी स्थिति को प्रदेश में काफी मजबूत किया है और वह लोगों में काफी लोकप्रिय हुए हैं।

इसे भी पढ़ें- अमित शाह-उद्धव ठाकरे के बीच बातचीत अंतिम दौर में, जल्द हो सकता है सीटों का ऐलान

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English summary
Split with BJP challenge for Chandrababu Naiduin Andhra Pradesh emergence of jagan Mohan.
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