Bihar Elections: स्टार प्रचारक होकर भी कन्हैया सीन से गायब, कहीं तेजस्वी तो वजह नहीं ?
पटना। बिहार विधानसभा का चुनाव प्रचार अपने पूरे उफान पर है। सभी दलों के प्रमुख नेता मैदान में पूरी ताकत झोंक रहे हैं वहीं सीपीआई (CPI) के स्टार प्रचारक कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) चुनाव प्रचार में अब तक कम ही नजर आए हैं या यूं कहिए कि सीन से गायब ही हैं। ये हालत तब है जब पहले चरण का चुनाव होने में सिर्फ सात दिन ही बचे हैं।
सिर्फ चुनावी रैली ही नहीं कन्हैया कुमार सोशल मीडिया पर भी इस समय कम ही एक्टिव हैं। उन्होंने आखिरी ट्वीट 11 अक्टूबर को किया था जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए लिखा था "जहाँ के मज़दूर हज़ारों किलोमीटर पैदल चलते हों और उनके प्रधानसेवक आठ हज़ार करोड़ के विमान से उड़ते हों, ये गर्व का नहीं शर्म का विषय है।"
8
दिनों
में
3
जनसभा
खास
बात
है
कि
11
अक्टूबर
को
ही
सीपीआई
ने
अपने
स्टार
प्रचारकों
की
सूची
जारी
की
थी
जिसमें
उनका
नाम
ऊपर
था।
वहीं
अगर
12
अक्टूबर
से
20
अक्टूबर
तक
कन्हैया
कुमार
ने
केवल
तीन
जनसभाओं
को
संबोधित
किया
है
जिनमें
बेगूसराय
की
तेघड़ा
व
बखरी
विधानसभा
सीट
और
मधुबनी
की
बेनीपट्टी
सीट
शामिल
हैं।
अगर
अमित
शाह
के
शब्दों
में
इसकी
क्रोनोलॉजी
समझेंगे
तो
पता
चल
जाएगा
कि
11
अक्टूबर
के
बाद
से
ही
कन्हैया
सोशल
मीडिया
और
जमीन
दोनों
जगह
पर
कम
नजर
आ
रहे
हैं।
ये
तो
सिर्फ
पहले
चरण
की
बात
है
दूसरे
और
तीसरे
चरण
के
लिए
अभी
तक
शेड्यूल
तय
नहीं
हो
पाया
है।
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में देश भर में चर्चा में आए कन्हैया कुमार ने 2019 का लोकसभा चुनाव बिहार के बेगूसराय से लड़ा था। कन्हैया का मुकाबला भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह से था। हालांकि कन्हैया कुमार चार लाख वोटों के भारी अंतर से चुनाव हार गए थे लेकिन इस चुनाव ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं। यही नहीं कन्हैया कुमार के प्रचार और बोलने का स्टाइल भी चर्चा में बना रहता है। ऐसे में चुनाव प्रचार के पीक टाइम में कन्हैया के परिदृश्य से गायब होने को लेकर कई सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण और दमदार सवाल ये उठ रहा है कि क्या कन्हैया कुमार को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को चुनावी चर्चा में टॉप पर रखने के लिए कन्हैया को साइड लाइन किया गया है।
दरअसल बिहार के विधानसभा चुनाव में इस बार महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस के साथ ही लेफ्ट पार्टियां भी शामिल हैं। इन्हीं लेफ्ट पार्टियों में से एक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (CPI) के नेता कन्हैया कुमार हैं। सीपीआई को गठबंधन के तहत छह सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली हैं।
तेजस्वी
के
लिए
कन्हैया
साइडलाइन
?
अब
आते
हैं
तेजस्वी
यादव
पर।
तेजस्वी
यादव
न
सिर्फ
आरजेडी
के
नेता
हैं
बल्कि
महागठबंधन
का
सीएम
चेहरा
भी
हैं।
शुरुआत
में
मुकाबले
में
काफी
पीछे
माने
जा
रहे
आरजेडी
नेता
अब
चर्चा
में
हैं।
उनकी
रैलियों
में
उमड़
रही
भारी
भीड़
भी
खूब
चर्चा
बटोर
रही
है।
साथ
ही
10
लाख
नौकरियों
के
वादे
ने
एनडीए
की
एकतरफा
जीत
के
माहौल
को
चुनौती
दी
है।
आरजेडी
को
डर
है
कि
कन्हैया
के
चुनाव
प्रचार
में
अधिक
सक्रिय
होने
से
तेजस्वी
की
छवि
पर
असर
पड़
सकता
है।
कन्हैया
के
प्रचार
में
आने
से
तेजस्वी
से
उनकी
तुलना
भी
शुरू
हो
सकती
है।
ऐसा
माना
जा
रहा
है
कि
आरजेडी
और
सीपीआई
में
एक
सहमति
बनी
है
कि
कन्हैया
कुमार
को
चुनाव
प्रचार
में
कम
भेजा
जाये।
आरजेडी पहले से ही तेजस्वी के अलावा दूसरे नेता की मौजूदगी से असहज महसूस करती रही है। महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के पहले ही आरजेडी ने कहना शुरू कर दिया था कि जो तेजस्वी को नेता मानेगा वही महागठबंधन का हिस्सा होगा। वहीं कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव में तनाव पुराना है। कहा जाता है कि कन्हैया तेजस्वी को नेता मानने में असहज रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में ही इसके बीज पड़े थे जब तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार की पार्टी सीपीआई को एक जाति और जिले की पार्टी कहा था। कन्हैया के खिलाफ आरजेडी ने उम्मीदवार भी उतारा था।
हालांकि सीपीआई नेता ऐसी किसी बात से इनकार करते हैं कि तेजस्वी को चर्चा में प्रमुखता से रहने के लिए कन्हैया को पीछे किया गया है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि आरजेडी और महागठबंधन में कन्हैया को बार-बार जनसभा के लिए बुलाया जा रहा है लेकिन इसका फैसला पार्टी करती है कि कन्हैया कहां प्रचार करेंगे। वहीं कब कन्हैया और तेजस्वी एक साथ मंच पर आएंगे इस पर अभी तक कुछ पता नहीं है।
पुराने
नेताओं
से
भी
है
जंग
आरजेडी
के
साथ
ही
कन्हैया
कुमार
को
अपनी
ही
पार्टी
में
भी
पुराने
नेतृत्व
से
भी
जूझना
पड़ता
है।
जिस
तेजी
से
कन्हैया
छात्र
संघ
की
राजनीति
से
देश
की
राजनीति
में
चमके
हैं
इससे
पार्टी
के
पुराने
नेता
भी
खास
खुश
नहीं
हैं।
कन्हैया
को
अपने
बढ़ते
कद
के
कारण
पार्टी
के
भीतर
भी
विरोधों
का
सामना
करना
पड़
रहा
है।
माना
जा
रहा
है
कि
ये
भी
एक
वजह
है
कि
कन्हैया
खुद
को
चुनाव
में
पूरी
तरह
से
सक्रिय
नहीं
कर
रहे
हैं।
कन्हैया
को
बिहार
सीपीआई
के
प्रमुख
सत्यनारायण
सिंह
का
समर्थन
मिला
था।
एक
रैली
में
कहा
था
कि
अगर
आरजेडी
के
पास
तेजस्वी
हैं
तो
सीपीआई
के
पास
कन्हैया
है।
लेकिन
सत्यनारायण
सिंह
का
कोरोना
से
निधन
हो
गया
और
बिहार
में
पार्टी
की
कमान
युवा
की
जगह
राम
नरेश
पाण्डेय
को
मिली।
बिहार में कन्हैया कुमार ने सीएए-एनआरसी के विरोध में जन-गण-मन यात्रा निकाली थी। वाम दलों और विपक्ष द्वारा समर्थित इस यात्रा को उतनी सफलता नहीं मिली जितनी उम्मीद की जा रही थी। यही वजह है कि सीपीआई ने एक बार फिर से पुराने नेताओं की तरफ लौटने का मन बनाया। कन्हैया कुमार चुनाव प्रचार जब प्रचार जब चरम पर है ऐसे में क्यों प्रचार से खुद को दूर रखे हुए इससे सवाल तो खड़े ही हुए हैं कि कहीं न कहीं सब ठीक नहीं है।
Bihar Elections: पहले चरण में महागठबंधन की अग्निपरीक्षा, RJD की सबसे अधिक सीटें दांव पर