क्या है दो कूबड़ वाले ऊंटों की खासियत, लद्दाख में भारतीय सेना में शामिल करने की है तैयारी
नई दिल्ली- बहुत ही जल्द लद्दाख के मुश्किल इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त करना भारतीय जवानों के लिए काफी आसान हो सकता है। इसके लिए भारतीय सेना में दो कूबड़ वाले प्रसिद्ध ऊंटों की भर्ती की तैयारी शुरू कर दी गई है। इस दुर्गम इलाके में यह स्थानीय जानवर सेना की किस तरह से सहायता कर सकते हैं, इसपर खुद डीआरडीओ ने रिसर्च किया है और उसने सेना के इस्तेमाल के लिए इन ऊंटों को पूरी तरह से माकूल पाया है। अभी तक इन इलाकों में अपनी सेना खच्चरों और टट्टुओं का ही उपयोग करती रही है, लेकिन रिसर्च से पता चला है कि दो कूबड़ वाले ऊंट ताकत और सहनशीलता में इन छोटे जानवरों से कहीं ज्यादा उपयुक्त साबित हो सकते हैं।
दो कूबड़ वाले ऊंटों पर डीआरडीओ ने किया है रिसर्च
प्रसिद्ध दो कूबड़ वाले ऊंटों को जल्द ही लद्दाख में भारतीय सेना में शामिल किया जाएगा। उम्मीद है कि इससे भारतीय सेना के जवानों को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर काफी मदद मिलेगी। लेह में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने दोहरे कूबड़ या बक्ट्रियन ऊंटों पर काफी रिसर्च किया है, उसके बाद यह फैसला लिया गया है। डीआरडीओ के वैज्ञानिक प्रभु प्रसाद सारंगी ने बताया कि, 'हम दोहरे कूबड़े वाले ऊंटों पर रिसर्च कर रहे हैं। यह स्थानीय जानवर है। हमने इन ऊंटों की सहनशीलता और भार ढोने की क्षमता पर शोध किया है।' वैसे परंपरागत तौर पर भारतीय सेना इस इलाके में खच्चरों और टट्टुओं का इस्तेमाल करती रही है, जो कि लगभग 40 किलो तक का भार आसानी से ढोल लेते हैं।
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दोहरे कूबड़ वाले ऊंटों की विशेषता
दरअसल, डीआरडीओ की रिसर्च में पाया गया है कि दोहरे कूबड़ वाले ये ऊंट पूर्वी लद्दाख के इलाके में भी 170 किलो वजन लेकर 17,000 फीट तक भार ढोने में सक्षम हैं। सारंगी ने कहा है, 'हमने पूर्वी लद्दाख के इलाके में चीन सीमा के पास 17,000 फीट की ऊंचाई पर रिसर्च किया है और पाया है कि यह 170 किलो तक वजन ले जा सकते हैं और इतनी भार के साथ ये 12 किलोमीटर तक के इलाके में पेट्रोलिंग भी कर सकते हैं।' इन ऊंटों की तुलना राजस्थान से एक कूबड़ वाला ऊंट मंगाकर भी कई गई है और उनकी सहसनशीलता परखी गई है। ये ऊंट खाने और पानी की किल्लत में भी तीन दिनों तक जिंदा रह सकते हैं।
दोहरे कूबड़ वाले ऊंटों की जनसख्या बढ़ाने पर जोर
अब डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई अल्टीट्यूड रिसर्च (DIHAR) इस बात पर जोर लगा रहा है कि कैसे दोहरे कूबड़ वाले ऊंटों की जनसंख्या में इजाफा किया जा सके। सारंगी ने ये भी बताया है कि 'इन ऊंटों के साथ ट्रायल किया गया है और जल्द ही इसे सेना में शामिल कर लिया जाएगा। हालांकि, अभी इनकी जनसंख्या बहुत ही कम है, लेकिन सही तरह से ब्रीडिंग के बाद इनकी जरूरी संख्या प्राप्त कर ली जाएगी और उसके बाद इन्हें सेना में शामिल कर लिया जाएगा।' अभी तक स्थानीय उपलब्धता के बावजूद सेना ने पेट्रोलिंग के लिए इनका इस्तेमाल नहीं किया था।
लद्दाख में कई महीनों से है भारत-चीन में तनाव
बता दें कि लद्दाख में पिछले पांच-छह महीनों से भारत और चीन के बीच टकराव की स्थिति है। सबसे पहले 15-16 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक झड़प भी हो चुकी है, जिसमें भारत के 20 बहादुर सैनिक शहीद हो चुके हैं। जबकि, अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक पीएलए के कम से कम 60 जवान और कमांडर भी ढेर हुए हैं। उसके बाद 29-30 अगस्त को चीन की सेना ने एक बार फिर से पैंगोंग लेक के दक्षिणी किनारे की चोटियों पर कब्जे की कोशिश की, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया और आज इलाके की तमाम महत्वपूर्ण चोटियों पर भारतीय जवान बैठ चुके हैं। इस महीने की 7 तारीख को चीन ने फिर से उसी इलाके में घुसपैठ की कोशिश की और 45 साल बाद एलएसी पर फायरिंग भी की गई। लेकिन, भारतीय सेना के हौसले को डिगा पाने में चीनी सैनिक लगातार नाकाम हुए हैं और हर बार उन्हें मुंह की खानी पड़ी है।
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