दिल्ली की स्पेशल कोर्ट ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए दिया निष्पक्ष जांच का मंत्र
नई
दिल्ली।
दिल्ली
की
एक
विशेष
अदालत
ने
भ्रष्टाचार
के
मामले
में
दो
आरोपियों
की
रिहाई
का
आदेश
देते
हुए
कहा
कि
विस्तृत
जांच
प्रक्रिया
से
गुजरते
हुए
की
गई
सिर्फ
निष्पक्ष
व
कुशलता
से
की
गई
जांच
ही
भ्रष्टाचार
पर
लगाम
लगा
सकती
है।
विशेष न्यायाधीश आलोक अग्रवाल ने हालिया फैसले में कहा है कि हालांकि, भ्रष्टाचार की रोकथाम के उद्देश्य को पूरा करने के भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम की क्षमता को एकमात्र तथ्य जो सीधे प्रभावित करता है, वह निष्पक्ष, ईमानदार, कुशल और विस्तृत जांच की जरूरत है।
उन्होंने आगे कहा कि सही तरीके से की जाने वाली जांच वह आधार है, जिस पर सुनवाई टिकी होती है।
न्यायालय का यह बात पिछले सप्ताह भारत के मादक पदार्थ के उप महानियंत्रणक पी.दासगुप्ता और ट्वेंटीफर्स्ट सेंच्युरी फाइनेंस लिमिटेड के अध्यक्ष जे.के.सिंह को रिहा भ्रष्टाचार मामले में रिहाई देते हुए एक सुनवाई के दौरान की। जे.के.सिंह मेस्को लेबोरेटरीज लिमिटेड के भी मालिक हैं।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अनुसार, जे.के.सिंह और दासगुप्ता ने आधिकारिक सौदेबाजी की थी। दासगुप्ता ने 1991-92 के बीच मेस्को लैबोरेटरीज को पश्चिमी जर्मनी से तथा 1992-93 के बीच वियतनाम से कच्चा माल आयात करने का लाइसेंस दिया था।
सीबीआई ने कहा कि जांच के दौरान पाया गया कि दासगुप्ता के पास गुड़गांव में उनकी बेटी के नाम से जमीन है जो कि अंसल प्रापर्टीज एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड से ली गई है। इसके लिए ट्वेंटीफर्स्ट सेंच्युरी फाइनेंस ने 9.90 लाख रुपये की अदायगी की थी।
अदालत ने नवंबर 2007 में दासगुप्ता के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहने और जे.के.सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। दोनों ने खुद को निर्दोष बताया था। सरकारी वकीलों ने 15 गवाहों की सूची अदालत को दी थी।
अदालत कहा था कि गवाहों की जांच में किसी भी तरह के फंसाने वाले तथ्य साबित नहीं हो पाए। इसने कहा कि उस दौरान दासगुप्ता सरकारी कर्मचारी थे और उसी अधिकार के तहत उन्होंने मेस्को लैबोरेटरीज के साथ सौदेबाजी की थी।
अदालत ने कहा कि हालांकि, ऐसा को सबूत नहीं है जिससे यह साबिहत हो दासगुप्ता कंपनी के मालिक से मिले हो य फिर उन्हें जानते हों। उन्होंने मादक पदार्थ के उप नियंत्रक होने के नाते दवाईयों के आयात की मंजूरी देने वाले तकनीकी चीजों के लिए जिम्मेदार थे।"
अदालत ने कहा कि सरकारी वकील यह साबित करने में नाकाम रहे कि दासगुप्ता जे.के.सिंह को जानते थे।