मोदी लहर पर कहर बनकर टूट पड़ी SP-BSP की जोड़ी
गोरखपुर में दूसरे राउंड की मतगणना के बाद 24 वोट से एसपी का आगे होना ही आश्चर्यजनक था। इसके साथ ही यह विवाद भी इसमें चस्पां हो गया कि प्रशासन की दिलचस्पी मतगणना के परिणाम को रोके रखने में क्यों रही।
Recommended Video
नई दिल्ली। 1993 में जब एसपी-बीएसपी ने हाथ मिलाया था तो बीजेपी हारी थी। एक बार फिर 25 साल बाद एसपी-बीएसपी ने हाथ मिलाया है तो बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। तब अयोध्या के उन्माद से पैदा हुई लहर थी, आज मोदी लहर है। तब भी बीजेपी की अयोध्या लहर पर यह गठबंधन भारी पड़ा था, इस बार भी मोदी लहर पर यह कहर बनकर टूटा है।
बीजेपी: फूलपुर में निश्चित हार, गोरखपुर रहा अप्रत्याशित
फूलपुर बीजेपी हार रही है यह राजनीतिक विश्लेषक महसूस कर रहे थे, लेकिन गोरखपुर में बीजेपी हारेगी ऐसा दावा कोई नहीं कर रहा था, ना किसी ने सोचा था। गोरखपुर में दूसरे राउंड की मतगणना के बाद 24 वोट से एसपी का आगे होना ही आश्चर्यजनक था। इसके साथ ही यह विवाद भी इसमें चस्पां हो गया कि प्रशासन की दिलचस्पी मतगणना के परिणाम को रोके रखने में क्यों रही।
SP-BSP की बाछें खिलीं
अगर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार प्रवीण निषाद की मानें तो साढ़े ग्यारह बजे सुबह तक ही 8 से 9 राउंड की मतगणना पूरीहो चुकी थी और उनके दावे के मुताबिक वे कम से कम 18 से 20 हज़ार वोटों से आगे चल रहे थे। गोरखपुर के चुनाव नतीजे ने सबको चौंकाया है। गोरखपुर और फूलपुर के चुनाव नतीजे को मिलाकर देखें तो जो बातें साबित हुई हैं उन्हें बिन्दुवार तरीके से ऐसे कहा जा सकता है।
:-
यूपी
के
सीएम
और
डिप्टी
सीएम
की
सीधे
तौर
पर
हार
हुई
है।
:-
दोनों
अपनी-अपनी
सीटें
लाख
कोशिशें
के
बावजूद
नहीं
बचा
सके।
:-
योगी-केशव
ही
नहीं
यह
सीधे
तौर
पर
बीजेपी
की
हार
है।
:-
यह
अमित
शाह
की
रणनीति
की
हार
जिन्होंने
यूपी
से
बीजेपी
को
71
सीटें
दिलायी
थी।
:-
मोदी
लहर
पर
कहर
बनकर
टूटा
है
एसपी-बीएसपी
का
गठबंधन
:-
2019
के
आम
चुनाव
पर
होगा
असर
2019 पर होगा उपचुनाव नतीजे का असर
2019 के आम चुनाव में मोदी विरोधी राजनीति को एक रास्ता दिख गया है। यह राजनीति अब कम से कम यूपी में तो आजमायी जाएगी ही, अब राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे आजमाया जाएगा। जब राहुल गांधी बिहार में महागठबंधन का प्रयोग किया था, तब भी सफलता मिली थी और अब भी यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन को सफलता मिली है।
कांग्रेस को भी दिखा रास्ता
कांग्रेस के लिए इस उपचुनाव का सबक यही है कि वे एसपी-बीएसपी या क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर राजनीति की रूप रेखा तय करें। कांग्रेस इसके लिए तैयार दिखती है। सोनिया गांधी की डिनर डिप्लोमैसी इसका उदाहरण है। पार्टी हर उस सम्भावना को जोड़ने में लगी है जिससे मोदी विरोध की राजनीति को मंच दिया जा सके।
बीजेपी के पास समय कम
बीजेपी के पास अब अवसर नहीं है। अब राजनीतिक खेल उनके ही पाले में होना है। केरल, कर्नाटक में चुनाव के बाद जब राजस्थान, मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे, तो बीजेपी को अपने राज्य को बचा पाना मुश्किल होगा। क्योंकि इन राज्यों में भी उपचुनाव की कहानी वही है। बीजेपी को वहां नुकसान झेलना पड़ा है।
मोदी लहर पर कहर बना एसपी-बीएसपी गठबंधन
उपचुनाव के नतीजे को अगर समेट कर कहा जाए तो बीजेपी की सफलता चोटी पर पहुंचने के बाद अब ढलान की ओर शुरू होने लगी है। इसकी गति को रोकना थामना बीजेपी नेतृत्व के लिए जरूरी है। वहीं, बारम्बार हार से हताश मोदी विरोधियों के लिए यह उत्साहजनक मुकाम है। आगे अपने मतभेदों को भुलाकर मोदी विरोधी दल किस तरह इकट्ठा हो पाते हैं उस पर भारतीय राजनीति और खासकर मोदी विरोधी राजनीति की दिशा तय होगी।