सोनिया ने 4 'असंतुष्टों' को दी कांग्रेस के पैनल में जगह, सिब्बल ने उठाए थे पार्टी पर सवाल
नई दिल्ली- कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी डॉक्टरों की सलाह पर बेहतर आबोहवा के लिए दिल्ली के प्रदूषण से निजात पाने के लिए गोवा पहुंच चुकी हैं। लेकिन, उससे पहले उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश मामले और अर्थव्यवस्था पर उन्हें जानकारी देने के लिए जो तीन कमिटियां बनाई हैं, उनमें अबकी बार 4 असंतुष्टों को भी जगह दे गई हैं। सोनिया ने यह कदम कपिल सिब्बल की हाल की उन टिप्पणियों के बाद उठाया है, जिसको लेकर पार्टी में घमासान मचा हुआ है। माना जा रहा है कि सोनिया ने ऐसा इसलिए किया है, ताकि वो जब गोवा के सुकून भरे वातावरण में आराम करें तो उन्हें पार्टी की किचकिच की वजह से और सार्वजनिक फजीहत ना झेलनी पड़े। कपिल सिब्बल की ओर से बिहार चुनाव में पार्टी की हार के बाद की गई टिप्पणियों और उससे पहले 23 असंतुष्ट नेताओं की चिट्टी की वजह से वैसे ही पार्टी की भारी किरकिरी हो चुकी है।
सोनिया ने जो तीन कमिटियां बनाई हैं, उनमें आर्थिक मामलों की समिति में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी शामिल हैं। विदेश मामलों पर उन्हें अपडेट रखने के लिए जो दूसरे समिति बनाई है, उसमें आनंद शर्मा और शशि थरूर जैसे नेता शामिल हैं; और तीसरी समिति में गुलाम नबी आजाद और वीरप्पा मोइली शामिल हैं। चिट्ठी लिखने वाले 23 असंतुष्टों में महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद पी चिदंबरम तो शामिल नहीं थे, लेकिन इस बार कपिल सिब्बल का समर्थन करके उन्होंने पाला बदलने की कोशिश की है। उन्होंने बिहार चुनाव और दूसरे राज्यों के उपचुनावों में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस की आलोचना की थी। हर बार की तरह कांग्रेस अध्यक्ष के वफादार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तीनों समितियों का सदस्य बनाया गया है।
दरअसल, कांग्रेस का आंतरिक मतभेद सिर्फ पार्टी की सांगठनिक कमजोरी और नेतृत्व विहीनता को ही लेकर नहीं दिखा है। देश के आर्थिक नीतियों और कूटनीति पर भी पार्टी की विचारधारा में भारी अंतर महसूस किया गया है। मसलन, पार्टी नेता और पूर्व वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने चीन की अगुवाई वाले रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनर्शिप (आरसीईपी) से भारत के अलग रहने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना की है। जबकि, वह कांग्रेस ही थी, जिसने पहले इसकी संभावित सदस्यता को जोरदार तरीके से नकार दिया था। जयराम रमेश जैसे नेता इसके पक्ष में कतई नहीं थे। मोदी सरकार ने छोटे निर्माताओं पर असर पड़ने की चिंताओं की वजह से इससे अलग रहने का निर्णय किया है।
आरसीईपी पर आनंद शर्मा ने पार्टी के पुराने रवैए पर कपिल सिब्बल की टिप्पणियों के बाद उलटबयानी की है। सिब्बल ने बिहार के नतीजों को देखने के बाद पार्टी में 'अनुभवी दिमाग....और उन लोगों का आह्वान किया था, जो राजनीतिक सच्चाई की समझ रखते हों।' इस पर गांधी परिवार के वफादार माने जाने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वरिष्ठ कांग्रेसी सलमान खुर्शीद ने उनपर पलटवार कर दिया था। आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल दोनों अगस्त वाली 'असंतुष्टों की चिट्ठी' वाले कांग्रेस के 23 नेताओं की जमात के ही हिस्सा हैं। उस चिट्ठी पर बवाल तो खूब हुआ था, लेकिन तब असंतुष्टों पर ही पार्टी आलाकमान की नाराजगी महसूस की गई थी। मानसून सत्र में संसद की गतिविधियों के संचालन के लिए जिम्मेदारियां बांटने भी इसका असर महसूस किया गया था।
गौरतलब है कि 23 असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं ने अगस्त में अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में व्यापक सुधार, आत्मनिरीक्षण और पूर्ण-कालिक, दिखाई देने वाले नेतृत्व को जिम्मेदारी सौंपनी की वकालत की थी। इसके बाद पार्टी की सबसे बड़ी निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में खूब बहसबाजी हो गई। सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद से इस्तीफे का दांव चला तो उन्हें इस बात के लिए राजी किया गया कि 6 महीने के अंदर ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की बैठक बुलाई जाएगी। असंष्टों के मुद्दों पर विचार करने के लिए भी एक कमिटी बनाई गई थी, लेकिन सोमवार को सिब्बल ने कहा कि उन्होंने जो मुद्दे उठाए थे उस दिशा में बहुत ही कम प्रगति हुई है। सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा है, 'तब से लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है और लीडरशिप की ओर से बातचीत की कोई कोशिश भी नहीं हुई है और जब मेरे सामने अपने विचारों को जाहिर करने का कोई मंच ही नहीं है, मैं सार्वजनिक रूप से उन्हें व्यक्त करने के लिए विवश हूं। '