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5 महीने बाद सोनिया गांधी ने क्यों और किसके कहने पर बुलाई कांग्रेस के असंतुष्टों की बैठक

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नई दिल्ली- कांग्रेस में फुलटाइम अध्यक्ष और पार्टी के भीतर सांगठनिक चुनाव की मांग करने वाले 23 असंतुष्ट नेताओं को सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने शनिवार को पहली बार चर्चा के लिए बुलाया है। इन नेताओं ने इस साल अगस्त में ही उन्हें खत लिखकर इसकी जरूरत पर जोर दिया था, लेकिन तब इनमें से कई नेताओं ने या तो किसी कार्रवाई की आशंका से हथियार डाल दिए थे या फिर उन्हें धीरे-धीरे किनारा किया जाने लगा था। लेकिन, उनमें से ज्यादातर वरिष्ठ नेता अपने सुझावों पर अड़े रहे और पार्टी की खामियों को कई बार सार्वजनिक मंचों पर भी उठाते रहे। लेकिन, अब जब लगातार हर चुनाव में पार्टी की मिट्टी पलीद हुई है तो लगता है कि एक नेता ने आलाकमान को किसी तरह से असंतुष्टों के सुझावों पर गौर फरमाने के लिए राजी कर लिया है।

कमलनाथ ने की मध्यस्थता तो सोनिया हुईं तैयार!

कमलनाथ ने की मध्यस्थता तो सोनिया हुईं तैयार!

बीते कुछ समय से कांग्रेस के कुछ नेता गांधी परिवार और खत लिखने वाले वरिष्ठ नेताओं के बीच पूर्णकालिक और सक्रिय पार्टी अध्यक्ष और आतंरिक चुनाव और संगठन में सुधार जैसे मुद्दों पर मध्यस्थता कर रहे थे। जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ (Kamal Nath) ने दोनों पक्षों को हर मुद्दे का हल तलाशने के लिए चर्चा के लिए तैयार किया है। कमलनाथ हमेशा से गांधी परिवार के पक्के वफादार रहे हैं और उनका बदलाव की मांग करने वाले वरिष्ठ नेताओं के साथ भी बहुत ही अच्छे ताल्लुकात रहे हैं। कहा जा रहा है कि पिछले कुछ दिनों में उन्होंने गांधी परिवार और गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) समेत ग्रुप-23 के नेताओं के साथ अलग-अलग चर्चा की है।

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गांधी परिवार के वफादार, लेकिन सुधारों के विरोधी नहीं

गांधी परिवार के वफादार, लेकिन सुधारों के विरोधी नहीं

दरअसल, सोनिया गांधी (Sonia Gandhi)के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की मौत के चलते वह कड़ी भी टूट चुकी थी, जो सोनिया-राहुल गांधी (Rahul Gandhi)-प्रियंका गांधी वाड्रा और बदलाव की आवाज उठाने वालों के बीच थी। कमलनाथ को कांग्रेस में उन नेताओं के तौर पर देखा जाता है, जो संगठनात्मक सुधारों के विरोधी नहीं हैं। सोनिया के साथ सुधारों की मांग करने वाले नेताओं की बैठक के बारे में एक नेता ने कहा है कि उन्होंने ही पार्टी अध्यक्ष से मुलाकात की मांग की थी और यह मुलाकात जल्द हो सकती है। इस बैठक में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के मौजूद रहने की भी पूरी संभावना है। वैसे एआईसीसी ने आधिकारिक तौर पर सोनिया और असंतुष्टों की मुलाकात को आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों, सरकार की ओर से संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाए जाने जैसे मुद्दों पर चर्चा का हिस्सा बताने की कोशिश की है।

राहुल समर्थक चाहते हैं बिना चुनाव के बनें अध्यक्ष

राहुल समर्थक चाहते हैं बिना चुनाव के बनें अध्यक्ष

अब तक कांग्रेस में राहुल गांधी के समर्थकों की ओर से यह स्पष्ट संकेत मिलते रहें कि वह चाहते हैं कि वह बिना चुनाव लड़े फिर से पार्टी अध्यक्ष बन जाएं। अब एआईसीसी के अगले सत्र का समय इसी पर निर्भर करेगा कि सोनिया और ग्रुप-23 के सदस्यों के बीच होने वाली बैठक का क्या नतीजा निकलता है। क्योंकि, सोनिया गांधी से राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष पद के ट्रांसफर के विरोध की हिम्मत तो कोई नहीं करेगा, लेकिन अगर इसे लोकतांत्रिक तरीके से करने पर किसी ने जोर दे दिया तो उसका परिणाम दिलचस्प हो सकता है। वैसे सार्वजनिक तौर पर राहुल गांधी ने अभी तक यह इच्छा जाहिर नहीं की है कि वह एक बार फिर से सामने से कांग्रेस की कमान संभालने का मन बना चुके हैं।

सोनिया क्यों हुईं मंथन पर मजबूर?

सोनिया क्यों हुईं मंथन पर मजबूर?

सवाल है कि ग्रुप-23 ने अगस्त में जो मुद्दे उठाए थे, उसपर पार्टी अध्यक्ष ने उनसे सीधी चर्चा में इतना वक्त क्यों लगा दिया। इसका असर ये हुआ है कि पार्टी दिन पर दिन कमजोर होती गई है। बिहार विधानसभा चुनाव, यूपी विधानसभा उपचुनाव, हैदराबाद नगर निकाय चुनावों में पार्टी का लगभग सफाया सवाल है कि ग्रुप-23 ने अगस्त में जो मुद्दे उठाए थे, उसपर पार्टी अध्यक्ष ने उनसे सीधी चर्चा में इतना वक्त क्यों लगा दिया। इसका असर ये हुआ है कि पार्टी दिन पर दिन कमजोर होती गई है। बिहार विधानसभा चुनाव, यूपी विधानसभा उपचुनाव, हैदराबाद नगर निकाय चुनावों में पार्टी का लगभग सफाया हुआ है। राजस्थान में जहां पार्टी सत्ता में है वहां भी ग्राम पंचायत चुनावों में भाजपा हावी हुई है। केरल निकाय चुनाव के परिणाम ने तो अगले विधानसभा चुनाव में भी मिट्टी पलीद होने की आशंका जाहिर कर दी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद निकाय चुनावों में एलडीएफ ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बाजी पलट दी है। क्योंकि, केरल विधानसभा चुनावों में यह कई बार से देखा जा रहा है कि एलडीएफ और यूडीएफ के बीच आपस में सत्ता की अदला-बदली होती रही है। अभी वहां एलडीएफ सत्ता में है और पिछले लोकसभा चुनावों में यूडीएफ ने धमाकेदर प्रदर्शन किया था। ऐसे में माना जा रहा था कि 2021 के केरल विधानसभा चुनावों में यूडीएफ की वापसी तय है। लेकिन, निकाय चुनाव से लगता है कि वोटरों का एलडीएफ से मोहभंग नहीं हुआ है।
हुआ है। राजस्थान में जहां पार्टी सत्ता में है वहां भी ग्राम पंचायत चुनावों में भाजपा हावी हुई है। केरल निकाय चुनाव के परिणाम ने तो अगले विधानसभा चुनाव में भी मिट्टी पलीद होने की आशंका जाहिर कर दी है। 2019 के लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद निकाय चुनावों में एलडीएफ ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद बाजी पलट दी है।

केरल चुनाव ने ग्रुप-23 के नजरिए की पुष्टि की

केरल चुनाव ने ग्रुप-23 के नजरिए की पुष्टि की

जानकारी के मुताबिक पार्टी के जिन वरिष्ठ नेताओं ने राहुल के काम करने के तरीके को लेकर आपत्ति जताई थी, वह अब केरल(Kerala) पंचायत चुनाव के परिणामों को अपने स्टैंड की तस्दीक मान रहे हैं। वह अब इस बात पर जोर दे सकते हैं कि उन्होंने पांच महीने पहले जो आशंकाएं जाहिर की थीं, वह आखिर सही साबित हो रही हैं। माना जा रहा है कि आलाकमान के साथ बैठक में वह पार्टी अध्यक्ष और वर्किंग कमिटी के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया के बारे में जानकारी मांग सकते हैं। जानकारी के मुताबिक असंतुष्ट गांधी परिवार के सदस्य की ताजपोशी का विरोध करने की स्थिति में तो नहीं हैं, लेकिन वह गांधी परिवार के आशीर्वाद वाले किसी दिखावे वाले चेहरे को कमान सौंपने के लिए तैयार नहीं होंगे।

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English summary
Congress interim president Sonia Gandhi has called 23 disgruntled leaders of the party for talks on Saturday, in which Rahul Gandhi will also be present
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