जानिए, क्यों राहुल गांधी की गठबंधन नीति से नाखुश हैं सोनिया कैंप के लोग?
नई दिल्ली- सोनिया गांधी के करीबी कांग्रेसी नेता और दूसरी सहयोगी पार्टियों के लोग भी टीम राहुल की गठबंधन नीति से खुश नहीं हैं। इनमें से ज्यादा बुजुर्ग नेता हैं, जिन्हें लगता है कि पार्टी को नरेंद्र मोदी और बीजेपी खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह के महागठबंधन का प्रयास करना चाहिए था, वह नहीं किया गया। कई राज्यों में तो कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है, जिसको लेकर ये नेता कांग्रेस बहुत ही ज्यादा परेशान हो गए हैं।
टीम राहुल से नाखुश नेता क्या चाहते हैं?
सोनिया कैंप के वे नेता जो अपने करियर के आखिरी दौर में हैं, वह पार्टी के मौजूदा नेतृत्व के गठबंधन रणनीति से ज्यादा परेशान हैं। इनमें कांग्रेस ही नहीं, दूसरी सहयोगी पार्टियों के कई दिग्गज नेता भी शामिल हैं। इन नेताओं में लालू यादव, शरद यादव, चंद्रबाबू नायडू और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता भी हैं। वन इंडिया को सूत्रों ने बताया है कि सभी विपक्षी दलों में गठजोड़ के सबसे बड़े हिमायती एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार रहे हैं। वो इस नीति पर आगे बढ़ना चाहते थे कि सभी पार्टियां राष्ट्रीय स्तर पर एक महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ें और हर राज्य में वहां के प्रभावशाली क्षेत्रीय नेता उसकी अगुवाई करें। लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं हुए। उनके घर पर दिल्ली में इसको लेकर एक बैठक भी हुई थी, जिसमें ममता के साथ राहुल गांधी भी पहुंचे थे।
क्षेत्रीय दलों की नीति समझ गए राहुल
दरअसल, कई राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी भी शामिल हैं। इनका मानना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अगर कांग्रेस को अपने दम पर सफलता मिली है, तो बाकी राज्यों में भी ऐसी ही लाइन लेनी चाहिए। खासकर उत्तर प्रदेश में जिस तरह से एसपी और बीएसपी ने पार्टी के लिए सिर्फ दो सीटें छोड़ीं और आरएलडी जैसी छोटी पार्टी को तीन सीट देने का फैसला किया, उसने सबसे पुरानी पार्टी के रणनीतिकारों को बहुत ही ज्यादा नाराज कर दिया। इसी के बाद कांग्रेस ने यूपी में सभी सीटों पर लड़ने का ऐलान कर किया। इसी तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य में कांग्रेस को सीटें देने के लिए खुद तो तैयार नहीं थीं, लेकिन दिल्ली में आम आदमी पार्टी से कांग्रेस के गठबंधन का दबाव बना रही थी। जबकि, राहुल गांधी यह सोचकर केजरीवाल से हाथ मिलाने को तैयार नहीं हुए, क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्होंने ही दिल्ली की सत्ता कांग्रेस से छीन ली थी। यही नहीं लंबे वक्त में यह फॉर्मूला पार्टी को और भी ज्यादा नुकसान कर सकता है।
सूत्रों के मुताबिक केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस के साथ समझौता सिर्फ अपने फायदे के लिए करना चाहते थे। क्योंकि, जैसे ही उन्हें लगा कि कांग्रेस से समझौता नहीं हो पाएगा, उन्होंने तुरंत कांग्रेस पर ही हमला करना शुरू कर दिया और बीजेपी के साथ साठगांठ का आरोप लगाने लगे। आम आदमी पार्टी ही नहीं, सारी क्षेत्रीय पार्टियां और उनके लिए बैटिंग करने वाले बुद्धिजीवी भी नरेंद्र मोदी को हराने के नाम पर सिर्फ कांग्रेस से त्याग चाहते थे, लेकिन कांग्रेस को उसकी जगह देने को तैयार नहीं हो रहे थे। यानि, क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के दम पर सिर्फ खुद को मजबूत करना चाहती थीं। इसलिए टीम राहुल ने अपने मुताबिक गठबंधन बनाने की नीति अपनाई और अपने सम्मान के साथ समझौता करने के लिए राजी नहीं हुए।
2019 में 2024 की तैयारी कर रही है कांग्रेस
वन इंडिया के सूत्र ने बताया कि "टीम राहुल को लगा कि बीजेपी या नरेंद्र मोदी की जगह मजबूत क्षेत्रीय पार्टियां ही भविष्य में कांग्रेस के लिए ही बड़ा खतरा बनेंगी।" क्योंकि अगर चुनाव के बाद राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन भी जाते हैं, तो ये क्षेत्रीय दल सरकार का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहेंगे। "टीम राहुल इसके लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस की प्राथमिकता राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बीजेपी की एकमात्र विकल्प बनने की है। अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को जब राहुल सक्रिय राजनीति में उतार रहे थे, तब उनके बयान से भी ये बात स्पष्ट हो जाती है। " दरअसल, जनवरी में राहुल ने अमेठी में कहा था कि प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया को सिर्फ 2019 के लोकसभा की जिम्मेदारी ही नहीं दी जा रही है, बल्कि उन्हें उत्तर प्रदेश में अगली सरकार बनाने का जिम्मा भी सौंपा जा रहा है। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि भले ही कांग्रेस इसबार कई राज्यों में अपने दम पर चुनाव लड़ रही हो, लेकिन असलियत में वह 2024 के आम चुनाव की तैयारियों में जुटी है।