पीरियड्स में अचार पर क्या बोलीं सोनम कपूर?
अगर मेरे जैसी महिला भी ऐसा महसूस करती हैं तो उन महिलाओं के बारे में क्या कहेंगे?
तीन साल पहले, ट्विंकल खन्ना एक किताब लिख रही थीं. उन्होंने अरुणाचलम मुरुगनाथम के बारे में सुना था जो एक उद्यमी हैं और जिन्होंने ग्रामीण भारत की महिलाओं के लिए कम लागत वाले सैनिटरी पैड्स बनाने वाली मशीन का आविष्कार किया था.
ट्विंकल ने उनसे मुलाक़ात की, उनके बारे में लिखा और अब उन्होंने मुरुगनाथम के किए काम पर फ़िल्म पैडमैन बनाई हैं.
ट्विंकल और सोनम कपूर ने हाल ही में बीबीसी से पीरियड्स, महिलाओं के मुद्दे, पीरियड्स के दौरान दर्द और साथ ही इस फ़िल्म पर बातें कीं.
पढ़ें ट्विंकल और सोनम का इंटरव्यू?
पीरियड्स को लेकर भारत और कई देशों में आज भी कुछ मान्यताएं हैं. जब आप इस फ़िल्म पर रिसर्च कर रही थीं या फ़िल्म बनाने के दौरानआप इसके बारे क्या में सोचती थीं?
सोनमः मैं इस आदमी की कहानी से बहुत प्रभावित हूं. वो एक रूढ़िवादी पृष्ठभूमि से आते हैं फिर भी इतनी बड़ी सोच लेकर आए. भारत में, भले ही आप मुंबई में क्यों न रहते हों या फिर किसी बड़े शहर में, इससे जुड़ी कुछ तर्कहीन मान्यताएं हैं.
जैसे- हमारे दादा-दादी कहते हैं कि पूजा में मत आओ क्योंकि तुम्हारा पीरियड चल रहा है. लेकिन मेरे माता-पिता का कहना इसके उलट है. लेकिन अगर नानी अचार बना रही है तो वो कहेंगी, "अगर पीरियड्स के दौरान अचार बनाओगी तो वो ख़राब हो जाएंगे."
इसलिए जब मैंने इस आदमी की कहानी सुनी तो मैं इनकी कहानी और जो वो करना चाहते थे उससे बहुत प्रभावित हुई. मैं सोचा यह बहुत अच्छा है और मुझे इसका हिस्सा बनना चाहिए.
ट्विंकलः मैं अपनी दूसरी किताब लिख रही थी जब मुझे इस कहानी का पता चला. मैंने 10 चैप्टर लिख लिए थे, फिर मैंने उसे लिखना छोड़ दिया. मैंने कहा कि मैं इसके बारे में लिखना चाहती हूं. मैंने मुरुगनाथम के बारे में पहले से ही बहुत रिसर्च किया था और उससे मिलने से पहले मैंने उनकी कहानी लिखनी शुरू भी कर दी थी. फिर मैंने उन्हें बहुत मनाने की कोशिश की. तब तक मैंने इस प्रोजेक्ट में बहुत पैसे लगा दिए थे.
आप लगभग उनका पीछा कर रही थीं, क्या ये सच है?
ट्विंकलः हां, मैं कर रही थी. अगर मैं एक पुरुष होती और वो महिला तो मुझे लगता है कि शायद मैं जेल में होती. मैंने कभी किसी पुरुष का इस तरह पीछा नहीं किया है जैसा मैंने उनका किया. और वो हाथ नहीं आने वालों में से थे, मैंने उनसे मुलाक़ात की और उन्हें मनाने की कोशिश की. मैंने उनसे कहा कि वो बहुत स्वार्थी होंगे अगर इस कहानी को ख़ुद तक या बीबीसी और गार्जियन तक ही रहने देंगे. उन्हें इसे पूरे भारत को बताना चाहिए और फिर वो राजी हो गए.
वो एक आकर्षक आदमी हैं. उनके विषय में सब कुछ विलक्षण है, कुछ भी सीधा सादा नहीं है. उनके पास सब कुछ के लिए एक तर्क है. हम अलग अलग भाषा बोलते हैं और अलग अलग पृष्ठभूमि से आते हैं, इसके बावजूद हमारे बीच एक केमेस्ट्री बन गई है.
क्या आपको लगता है कि युवा लड़कियां और महिलाएं आपकी फ़िल्म देखने के बाद घर में इस विषय पर बोलने में सक्षम होंगी, आमतौर पर हमारे घरों या फ़िल्मों में यह टॉपिक नहीं होता है?
ट्विंकलः आप भारतीय फ़िल्मों के बारे में बोल रहे हैं, लेकिन क्या आपने कोई ऐसी हॉलीवुड फ़िल्म देखी है जिसमें कोई महिला कहती हो कि उसका पीरियड हो रहा है. उसे सैनिटरी पैड्स बदलने जाना है. या आपने सैनिटरी पैड्ट ही देखें हों- मुझे नहीं पता, मैंने ऐसा नहीं देखा है.
सोनमः मुझे लगता है इस पर कुछ टीवी शो होने चाहिए. क्योंकि इसे आम तौर पर एक अपमानजनक तरीक़े से दिखाया जाता है.
और क्या आपको लगता है कि यह पुरुषों के नज़रिये के अनुसार होता है?
सोनमः फ़िल्म उद्योग में अधिकांश चीज़ें पुरुषों के दृष्टिकोण से होता है.
ट्विंकलः लेकिन यह बदल रहा है.
और क्या आपको लगता है कि इस तरह की फ़िल्म के साथ आप एक हद से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं?
ट्विंकलः महिलाएं खुद शर्मिंदा होती हैं. हम ग्रामीण महिलाओं की बातें कर रहे हैं. और मैं आपसे यह कहना चाहती हूं कि पीरियड्स पर इतने रिसर्च करने, किताब लिखने, फ़िल्म बनाने के बाद भी आज जब मैं मंदिर में जाती हूं तो मुझे ख़ुद से लड़ना होता है क्योंकि यह अब भी मेरे दिमाग़ में होता है.
मुझे लगता है कि यह ईश निंदा है, मैं पाप कर रही हूं, मैं फिर भी आगे बढ़ती हूं और अंदर जाती हूं लेकिन हां क्या अब मैं इस पर बोल सकती हूं, तो इसका जवाब है हां. अगर मेरी जैसी महिला भी ऐसा महसूस करती है तो उन महिलाओं के बारे में क्या कहेंगे जिन्होंने इस विषय पर उतनी पढ़ाई भी नहीं की है.
सोनमः ईमानदारी से, यह कुछ ऐसी चीज़ है जिससे हर महिलाओं महीने में एक बार गुजरती है. बहुत कम महिलाओं के लिए यह आसान होता है, लेकिन ज़्यादातर महिलाओं को इससे बहुत परेशानी होती है. आप फूली हुई होती हैं, आपके पायजामे अच्छी तरह फिट नहीं होते, मेरा बटन झटके से खुल जाता है, पीरियड्स में पेट की मरोड़ से गुजरना पड़ता है, सही बता रही हूं.
हर बार टॉइलेट जाने में ये होता है. आप जब भी इसके बारे में बात कर रहे हैं, आपको यह याद रखने की ज़रूरत है कि आपके साथ कुछ भी ग़लत नहीं है. बल्कि यह वो है जिस पर आपको गर्व होना चाहिए, क्योंकि अगर आपको पीरिड्यस नहीं होते हैं तो आप बच्चे पैदा नहीं कर सकतीं.
ट्विंकलः ऑफिस जाने वाली महिलाओं को पीरिड्यस के दौरान अपने समूचे हैंडबैग को बाथरूम में ले जाना पड़ता है. आप केवल एक सैनिटरी पैड नहीं लेती हैं. मुझे लगता है कि (इस फ़िल्म को देखने और इस विषय पर बात करे के बाद) हमारे दिमाग़ में यह ख्याल तो आएगा कि हमें इसे छुपाना नहीं चाहिए.
जैसे कि हमें कोई दाग़ लग गया है, अगर आपके कपड़े पर कोई दाग़ लगता है, और हर महिला के साथ ऐसा होता है. लेकिन इसमें बहुत शर्मिंदगी होती है. यह हमारी शारीरिक संरचना के अनुरूप सामान्य बात है. अगर हम इस पर खुल कर बातें करेंगे तो यह होगा कि दाग़ को देखने के बाद प्रतिक्रिया देंगे कि "ठीक है जाकर चेंज कर लेती हूं."
ट्विंकल आपने सैनिटरी पैड्स पर जीएसटी लगाने का विरोध किया था. क्या आपको लगता है कि सरकार आपकी बात सुनेगी?
ट्विंकलः वित्त मंत्री ने जीएसटी से चीज़ें सस्ती होंगी इस पर लंबा भाषण दिया था. लेकिन मैंने मुरुगनाथम के साथ बैठ कर हिसाब किया. हमने खुद हल निकालने की कोशिश की. हमे महसूस हुआ कि अगर आप पैड्स पर लगने वाले इनपुट क्रेडिट को हटा भी दें तो भी जीएसटी लगाए जाने के बावजूद यह उपभोक्ताओं के लिए सस्ते हैं.
और यह जो वित्त मंत्री ने कहा उसके विपरीत है. बेशक, वो अपने तरीक़े से सही हैं. लेकिन यह मुरुगनाथान के हिसाब करने के बाद हमने पाया. इसिलिए मुझे लगता है कि अगर आप इसे एक लग्जरी आइटम के रूप में लेते हैं तो यह एक समस्या है, क्योंकि यह लग्जरी आइटम नहीं है. क्योंकि हम सैनिटरी पैड्स के बिना काम पर या पढ़ाई करने नहीं जा सकते, तो यह लग्जरी आइटम कैसे हुआ.
क्या आपको लगता है कि हम आज उस जगह पर हैं जहां महिलाएं यौन शोषण के बारे में बात करना शुरू कर रही हैं जो पर्दे के पीछे होता है. क्या अब भी यह छुपा ही रहेगा और कोई इसके बारे में बात नहीं करना चाहता है?
सोनम: भारत इस मामले में बहुत पीछे है, क्योंकि हमारा समाज पुरुष प्रधान है. यहां वेतन को लेकर ही बहुत विसंगतियां हैं.
क्या सोनम और अक्षय कुमार को इस फ़िल्म में एक समान रक़म मिल रही है?
सोनमः यह अंतर इसलिए है क्योंकि अगर अक्षय की अकेले फ़िल्म रिलीज़ होती तो वो भी कहीं अधिक कमाती है, यहां तुलना करने वाली बात ही नहीं है. लेकिन अगर कोई मेरे समकालीन और मेरे ही लेवल का हो और उसे मुझसे ज़्यादा मिले तो वह मेरे साथ अनुचित होगा. अगर मैं आयुष्मान खुराना के साथ फिल्म कर रही हूं तो मुझे उससे अधिक पैसे मिलने चाहिए. अगर मैं सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ फिल्म कर रही हूं तो मुझे उसके बराबर मिलने चाहिए.
ट्विंकलः यह अर्थशास्त्र है, अगर आप यह सुनिश्चित करते हैं कि आपको ये नंबर आएंगे तो आपको निश्चित ही अधिक रुपए मिलेंगे.
लेकिन इसमें काफ़ी अंतर है.
ट्विंकलः क्योंकि हम पुरुष प्रधान समाज हैं जहां अभिनेता अंत में अभिनेत्रियों की तुलना में ज़्यादा करते हैं. वो वितरकों से ख़ुद बात करते हैं. वो फ़िल्म की बिज़नेस को लेकर बहुत कुछ करते हैं, जैसे प्रदर्शकों से बातें करना कि कितने स्क्रीन पर फ़िल्म दिखाई जाएगी... वगैरह. लेकिन बड़े अभिनेता बहुत अधिक कर रहे हैं और इसीलिए उन्हें अधिक पैसे दिए जाते हैं.
चलिए बातें करते हैं कि भारत में एक फ़िल्म निर्माता को कितनी कलात्मक आज़ादी है. पद्मावत को देखें. फ़िल्म निर्माता अपनी फ़िल्मों को लेकर कुछ परेशान हैं या इसके उलट वो एक हद से आगे बढ़ कर चुप नहीं रहना चाहते. आपको क्या लगता है?
सोनमः आपको कभी भी कुछ करने से डरना नहीं चाहिए. जो कुछ भी कर सकता है वो करना ठीक है...
ट्विंकलः मुझे लगता है कि यह भय उत्पन्न करने वाला है. लोग जो बनाना चाहते हैं उन्हें वो बनाने की आज़ादी होनी चाहिए. यह चिंताजनक है कि उन्हें इस तरह की बाधाओं से गुजरना पड़ता है.
सोनमः मुझे पूरी तरह से सेंसरशिप में विश्वास नहीं है. मेरी मां ने मुझे कुछ सिखाया है, मैं आपको जितना रोकूंगी, आप उतना ही अधिक वो करेंगे. दर्शक समझदार हैं और अपने फ़ैसले लेने के लिए समुचित स्मार्ट भी.