सोनाली विष्णु शिंगेट: कबड्डी खेलना शुरू किया तो जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे
भारतीय महिला कबड्डी टीम की खिलाड़ी सोनाली विष्णु शिंगेट महाराष्ट्र के एक बेहद आम पृष्ठभूमि वाले परिवार से आती हैं.
भारतीय कबड्डी खिलाड़ी सोनाली विष्णु शिंगेट ने जब अपनी ट्रेनिंग शुरू की थी तब उनके पास जूते तक नहीं थे. उनके परिवार के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो उनके लिए जूते खरीद कर दे सके.
यह अकेली ऐसी चुनौती नहीं थी जिसका सामना उन्हें करना पड़ा था. उन्हें सिर्फ़ 100 मीटर तक दौड़ने में भी बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी. उन्हें इसके लिए अपने पैरों और पेट की मांसपेशियों को और मज़बूत करने की जरूरत थी. इसके लिए वो अपने पैरों में वजन बांधकर दौड़ती और कसरत करती थी.
सुबह में कड़ी मेहनत और शाम में मैच खेलने के बाद उन्हें देर रात पढ़ाई करने के लिए उठना पड़ता था. अगली सुबह उन्हें परीक्षा देने के लिए जाना होता था.
उनके परिवार ने साफ तौर पर उन्हें कह रखा था कि पढ़ाई की क़ीमत पर स्पोर्ट्स मंजूर नहीं है.
लेकिन पढ़ाई पर ज़ोर देने के बावजूद उनका परिवार अपने सीमित संसाधनों के साथ उनके साथ खड़ा था.
सोनाली के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते थे और उनकी शारीरिक रूप से अक्षम मां खाने-पीने की छोटी-सी एक दुकान चलाती थी.
आख़िरकार सारी बाधाओं को पार करते हुए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कई प्रतिस्पर्धाओं में जीत भी हासिल की.
आसान नहीं थी राह
सोनाली विष्णु शिंगेट का जन्म 27 मई 1995 को मुंबई के लोअर परेल में हुआ था. उन्होंने महर्षि दयानंद कॉलेज से पढ़ाई की है.
वो बचपन से क्रिकेट खेलना पसंद करती थीं लेकिन उनका परिवार आर्थिक तंगी की वजह से उनके इस शौक को पूरा नहीं कर सकता था.
बाद में कॉलेज के दिनों में उन्होंने कबड्डी में दिलचस्पी लेना शुरू किया. तब उन्होंने इसे लेकर कोई गंभीर योजना नहीं बना रखी थी.
कॉलेज के दिनों में उन्होंने राजेश पाडावे से ट्रेनिंग लेना शुरू किया. राजेश स्थानीय शिव शक्ति महिला संघ क्लब के कोच हैं.
उन्होंने सोनाली को अपना जूता और किट दिया. सोनाली ने ट्रेनिंग में खूब पसीना बहाया और कभी भी कोई कोताही नहीं बरती.
अपनी सफलता के पीछे सोनामी अपने परिवार के साथ-साथ, अपने कोचों और गौरी वाडेकर और सुवर्णा बारटक्के जैसे सीनियर खिलाड़ियों की भूमिका गिनवाना नहीं भूलती.
कुछ सालों के अंदर सोनाली ने वेस्टर्न रेलवे ज्वाइन कर लिया था जहाँ कोच गौतमी अरोस्कर ने उन्हें उनका खेल निखारने में मदद की.
अहम पड़ाव
साल 2018 में हुआ फेडरेशन कप टूर्नामेंट सोनाली शिंगेट की ज़िंदगी का एक अहम पड़ाव साबित हुआ. वो इस टूर्नामेंट में जीतने वाली इंडियन रेलवे टीम का हिस्सा थीं. इंडियन रेलवे की टीम ने हिमाचल प्रदेश की टीम को हराया था.
इससे पहले 65वें राष्ट्रीय कबड्डी चैम्पियनशिप में हिमाचल प्रदेश की टीम ने इंडियन रेलवे की टीम को हराया था.
सोनाली के लिए यह जीत उनके करियर में एक अहम मोड़ लेकर आया. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कोचिंग कैम्प के लिए चुन लिया गया. इसके बाद फिर जकार्ता में होने वाले 18वें एशियाई खेलों के लिए भारतीय टीम में उनका चयन हुआ.
जकार्ता में जिस भारतीय टीम ने रजत पदक जीता वो उस टीम का हिस्सा थीं. इसके अलावा 2019 में काठमांडु में हुए दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम की भी वो सदस्य थीं. इसने सोनाली की उपलब्धियों को एक नई पहचान दी.
महाराष्ट्र सरकार ने 2019 में उन्हें राज्य का सबसे बड़ा खेल सम्मान शिव छत्रपति देकर सम्मानित किया.
इसके अगले साल 2020 में उन्हें 67वीं राष्ट्रीय कबड्डी चैम्पियनशिप में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया गया.
सोनाली कड़ी मेहनत कर राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेना चाहती हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती हैं.
वो कहती हैं कि जैसे पुरुषों के लिए प्रो कबड्डी लीग आयोजित किया जाता है, वैसे ही भारत में महिला कबड्डी को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोफ़ेशनल लीग के आयोजन की ज़रूरत है.
(यह लेख बीबीसी को ईमेल के ज़रिए सोनाली विष्णु शिंगेट के भेजे जवाबों पर आधारित है.)