सोशल: PMO को क्यों हटाना पड़ा सर छोटूराम पर किया ट्वीट
इसी महीने 31 अक्तूबर को पीएम मोदी सरदार बल्लभ भाई पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा का अनावरण करने वाले हैं.
रोहतक की जनसभा में छोटूराम के याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका कद और व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि सरदार पटेल ने छोटूराम के बारे में कहा था कि आज चौधरी छोटूराम जीवित होते तो पंजाब की चिंता हमें नहीं करनी पड़ती, छोटूराम जी संभाल लेते.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को हरियाणा के रोहतक ज़िले में किसान नेता सर छोटूराम की 64 फ़ुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया.
लेकिन उनकी इस रैली के दौरान पीएमओ द्वारा किये गए एक ट्वीट पर हरियाणा में काफ़ी बवाल हुआ.
प्रधानमंत्री के दफ़्तर (पीएमओ) ने नरेंद्र मोदी का बयान ट्वीट किया, "ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे किसानों की आवाज़, जाटों के मसीहा, रहबर-ए-आज़म, दीनबंधु सर छोटूराम जी की इतनी भव्य प्रतिमा का अनावरण करने का अवसर मिला."
हरियाणा में सोशल मीडिया पर इस बयान की काफ़ी निंदा की गई. लोगों ने प्रधानमंत्री पर जातिवाद फ़ैलाने के आरोप लगाए.
ट्विटर पर मोहम्मद सलीम बालियान ने लिखा, "रहबरे आज़म दीनबंधु चौधरी छोटूराम सिर्फ़ जाटों के मसीहा नहीं थे, बल्कि वे समस्त किसान व कमेरों के मसीहा थे. एक अज़ीम शख़्सियत को सिर्फ़ जाटों का मसीहा कहना, उनकी तौहीन करने वाली बात है."
सामाजिक कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी से जुड़े कुलदीप काद्यान ने ट्वीट किया, "मोदी जी सर छोटूराम जाटों के नहीं, बल्कि किसान क़ौम के मसीहा थे. ये सिर्फ़ हरियाणा को जातिवाद के नाम पर लड़वाने वालों की सोच हो सकती है. उनका चेहरा जनता के सामने आ गया है."
हरियाणा के पत्रकार महेंद्र सिंह ने फ़ेसबुक पर लिखा, "महापुरुष किसी जाति विशेष के नहीं होते. ये तो पीएम मोदी ख़ुद कह चुके हैं. फिर हरियाणा में नियम कैसे बदल गया. पीएमओ को ये बयान वापल लेना चाहिए."
हरियाणा के नारनौल से वास्ता रखने वाले ओम नारायण श्रेष्ठ ने लिखा, "यदि मोदी जी सर छोटूराम जी को केवल जाटों का मसीहा समझते हैं तो मेरा विचार है कि वो देश के करोड़ों ग़रीब किसान मजदूरों के नेता का कद छोटा कर रहे हैं."
कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी ट्वीट किया, "प्रधानमंत्री जी! इस ट्वीट में आपने दीनबंधु रहबरे आज़म सर छोटूराम को जाति के बंधन में बाँधने की कोशिश की है. ये आपकी संकीर्ण वोट बैंक की राजनीति का जीता जागता सबूत है. जो जाति-धर्म के विभाजन से बाहर नहीं आती."
लोगों की तीखी प्रतिक्रिया को देखते हुए पीएमओ को बुधवार सुबह ये ट्वीट हटाना पड़ा.
2019 का चुनाव प्रचार
कुछ लोग पीएम मोदी की रोहतक रैली को '2019 के चुनाव प्रचार की शुरुआत' भी कह रहे हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी पीएम मोदी ने हरियाणा से ही अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की थी.
रोहतक की रैली में पीएम मोदी ने लंबा भाषण दिया और अपनी सरकार की तमाम उपलब्धियाँ गिनवाईं.
इस रैली में नरेंद्र मोदी ने जनता के बीच एक सवाल रखा कि "सर छोटू राम जैसे महान व्यक्तित्व को एक क्षेत्र के दायरों में ही क्यों सीमित कर दिया गया?"
मोदी ने कहा, "चौधरी साहब को एक क्षेत्र तक सीमित करने से उनके क़द पर तो कोई फ़र्क नहीं पड़ा, लेकिन देश की अनेक पीढ़ियाँ उनके जीवन से सीख लेने से वंचित रह गईं."
लेकिन पीएमओ के ट्वीट में उनके इस बयान के मायने कुछ और ही नज़र आये थे.
नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में ये दावा किया था कि उनकी सरकार देश के लिए जान देने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मान बढ़ाने का काम कर रही है.
सर छोटूराम और सरदार पटेल
इसी महीने 31 अक्तूबर को पीएम मोदी सरदार बल्लभ भाई पटेल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा का अनावरण करने वाले हैं.
रोहतक की जनसभा में छोटूराम के याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका कद और व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि सरदार पटेल ने छोटूराम के बारे में कहा था कि आज चौधरी छोटूराम जीवित होते तो पंजाब की चिंता हमें नहीं करनी पड़ती, छोटूराम जी संभाल लेते.
इसे लेकर भी सोशल मीडिया पर कुछ लोग टिप्पणी कर रहे हैं.
ट्विटर यूज़र प्रिंस ने लिखा है, "सर छोटू राम तो जाट मसीहा हुए. सरदार पटेल की मूर्ति का अनावरण करेंगे तो उन्हें क्या पटेलों का मसीहा बताएंगे? रुपया तो यूँ ही बदनाम हो रहा है. असली गिरावट तो सोच में आ रही है."
https://twitter.com/PMOIndia/status/1049614004048412672
कौन थे सर छोटूराम?
हरियाणा के किसानों के बीच सर छोटूराम एक जाना-पहचाना नाम हैं.
सर छोटूराम हरियाणा के रोहतक ज़िले के गढ़ी साँपला गाँव के रहने वाले थे.
ब्रिटिशों के शासनकाल में उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. सर छोटूराम को नैतिक साहस की मिसाल माना जाता है.
ब्रिटिश राज में किसान उन्हें अपना मसीहा मानते थे. वे पंजाब राज्य के एक बहुत आदरणीय मंत्री थे और उन्होंने वहाँ के विकासमंत्री के तौर पर भी काम किया था.
ये पद उन्हें 1937 के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों के बाद मिला था.
सर छोटूराम भाई-भतीजावाद के सख़्त ख़िलाफ़ थे. उन्हें 'राव बहादुर' की उपाधि भी दी गई थी और लोग उन्हें 'दीनबंधु' भी कहा करते थे.