सोशल: एक साल का तैमूर आख़िर जिम में करेगा क्या-क्या ?
एक साल कुछ महीने के तैमूर जिम जाने लगे हैं और फ़िट रहने के लिए वर्कआउट करने लगे हैं.
तैमूर अली ख़ान जिम जाने लगे हैं...
ख़बर पढ़कर पहले तो लगा कि तैमूर, मम्मी करीना कपूर के साथ जाते होंगे. मम्मी जिम में वर्कआउट करती होंगी और तैमूर नैनी आंटी के साथ वेटिंग ज़ोन में इंतज़ार करते होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है.
एक साल कुछ महीने के तैमूर जिम जाने लगे हैं और फ़िट रहने के लिए वर्कआउट करने लगे हैं.
रविवार को मुंबई के बांद्रा (पश्चिम) में तैमूर एक जिम के बाहर नज़र आए. जिम के बाहर नैनी के साथ उनकी तस्वीरें एकाएक वायरल हो गईं.
बहुत से लोगों के लिए तो एक बड़ा सवाल ये भी था कि 'क्या एक साल के बच्चे के लिए भी जिम होता है? एक बच्चा जो ढंग से खड़ा भी नहीं हो पाता है, आख़िर वर्कआउट कैसे करता होगा? '
इन्हीं सवालों को जानने के लिए जब हमने उस जिम की डायरेक्टर और हेड ऑफ़ ऑपरेशन मोनिया मेहरा से बात की.
''ये फिटनेस सेंटर/ जिम ख़ासतौर पर बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. बहुत से लोगों को लगता है कि ये प्लेस्कूल है, लेकिन ऐसा नहीं है. यह एक फ़िटनेस सेंटर है जो बच्चों के संपूर्ण विकास को प्रोत्साहित करता है.''
यहां 6 सप्ताह से लेकर 10 साल तक के बच्चे आते हैं. सुबह 10 से दोपहर एक बजे तक खुलने वाले इस जिम में हर सेशन एक घंटे का होता है.
तीन महीने के कोर्स के लिए 18 हज़ार फ़ीस देनी होती है. अगर किसी ने सालभर की मेंबरशिप ली है तो उसे 56 हज़ार रुपये जमा कराने होंगे.
जिम में क्या-क्या करते हैं बच्चे?
मोनिया बताती हैं कि यहां बच्चे को मसल्स पुल, जिम्नास्टिक, टम्बलिंग, फॉरवर्ड रोल, बैकवर्ड रोल और बैलेंसिंग सिखाई जाती है.
''देखिए, पुराने समय में बच्चों की मालिश की जाती थी ताकि उनकी मांसपेशियों का सही विकास हो सके. यहां हम बच्चे के संपूर्ण विकास पर ध्यान देते हैं. सिर्फ़ मांसपेशियों का विकास ज़रूरी नहीं है, बच्चे का हर अंग सही शेप में बढ़े ये ज़रूरी है.''
''यहां हम ये सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे पूरी तरह सुरक्षित रहें. यहां कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे बच्चे को चोट लग जाए. ऐसे में बच्चा वर्कआउट करता है और सेफ़ भी रहता है.''
मोनिया कहती हैं, ''पता नहीं लोगों को ये अजीब क्यों लग रहा है? वर्कआउट की ज़रूरत तो हर किसी को होती है. बच्चों को भी. अमूमन घरों में बच्चों को सिर्फ़ खाना खिलाया जाता है और उसके बाद या तो उन्हें सुला दिया जाता है या फिर यूं ही खेलने के लिए छोड़ दिया जाता है. इससे बच्चे की एनर्जी बर्न नहीं होती और वो चिड़चिड़ा हो जाता है.''
''वर्कआउट से बच्चे की एनर्जी बर्न होती है जिससे वो पॉज़ीटिव रहता है.''
दावा
इस जिम की आधिकारिक वेबसाइट पर दावा किया गया है कि 30 से ज़्यादा देशों में उनकी सौ से अधिक शाखाएं हैं. भारत में मुंबई के अलावा अहमदाबाद में भी इसकी एक ब्रांच है. आम दिनों में जहां वर्कआउट पर फ़ोकस रहता है वहीं वीकेंड पर डांस-म्यूज़िक क्लास, गेम्स और सोशल स्किल्स पर ध्यान दिया जाता है.
एक ओर जहां मोनिया मानती हैं कि ये जिम बच्चे के 'इंडिविजुअल ग्रोथ' को प्रमोट करता है वहीं चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट इसमें कुछ बातें और जोड़ती हैं.
बच्चों की साइकोलॉजी पर काम करने वाली डॉ. अनुजा कपूर मानती हैं कि ये एक अच्छी पहल है.
''आजकल मां-बाप बच्चों को बिज़ी रखने के लिए उनके हाथ में मोबाइल दे देते हैं. उन्हें चाहरदीवारी में बंद कर दिया जाता है. सालभर का बच्चा वीडियो गेम खेलना जान जाता है, इससे बेहतर तो यही है कि वो वर्कआउट करे.''
डॉ. अनुजा मानती हैं कि भले ही ये कॉन्सेप्ट वेस्टर्न हो, लेकिन यहां के लिहाज़ से भी नुकसानदेह नहीं.
''आजकल बच्चों को पैदा होते ही गैजेट्स दे दिए जाते हैं. बच्चे बाहर नहीं जाते, उनका कोई सोशल सर्किल नहीं रह जाता. नतीजा ये होता है कि वो क्रिमिनल एक्टिविटी में पड़ जाते हैं.''
सतर्कता ज़रूरी
हालांकि डॉ. अनुजा इस डर से भी इनकार नहीं करती हैं कि ऐसी जगहों पर ज़्यादा से ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है.
''कई बार बड़े बच्चे, अपने से छोटों को चोट पहुंचा सकते हैं. आजकल तो चाकू मार देना, यौन उत्पीड़न जैसे मामले भी सामने आने लगे हैं. ऐसे में बच्चों पर नज़र रखा जाना बहुत ज़रूरी है. साथ ही ये भी ख़्याल रखने की ज़रूरत है कि किसी भी चीज़ की 'अति' न हो.''
डॉ. अनुजा कहती हैं कि ये एक अच्छी पहल है, लेकिन एक छोटी सी चूक भी ख़तरनाक साबित हो सकती है.
वहीं तीन साल की बेटी की मां ज्योति मानती हैं कि इस तरह के फ़िटनेस सेंटर सिर्फ़ पैसे कमाने का ज़रिया हैं.
''बच्चे की जितनी अच्छी देखभाल घर पर हो सकती है, उतनी कहीं और नहीं हो सकती. मेरी तीन साल की बेटी है. उसके पास कलर बुक्स हैं, स्टोरी बुक्स हैं. मैं कोशिश करती हूं कि ज़्यादा से ज़्यादा समय उसके साथ बिताऊं. वो रोज़ शाम को पार्क में खेलने जाती है. मुझे नहीं लगता कि इससे ज़्यादा की उसे ज़रूरत है. उसके कई दोस्त हैं तो ऐसा भी नहीं है कि उसकी सोशल ग्रोथ नहीं हो रही.''
''बच्चों को ऐसे फ़िटनेस सेंटर भेजना, उन पर दबाव डालने जैसा है. अगर आप बच्चे को घर पर समय दे सकते हैं तो इससे बेहतर कुछ भी नहीं.''
बच्चों के डॉक्टर क्या कहते हैं?
इस बारे में हमने सर गंगाराम अस्पताल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट कनव आनंद से भी बात की.
कनव मानते हैं कि वर्कआउट करने में कोई बुराई नहीं है. बस इस बात का ख़्याल रखना बहुत ज़रूरी है कि वर्कआउट बच्चे की उम्र के हिसाब से हो. अगर एक छोटे बच्चे से हेवी वर्कआउट कराया जाए तो इससे फ़ायदा होने की जगह नुकसान ही होगा.
''वर्कआउट प्रतिबंधित नहीं है. मालिश भी तो एक तरह का वर्कआउट ही है. वर्कआउट के फ़ायदे भी हैं और थोड़ी सी लापरवाही से नुकसान भी हो सकते हैं.''
डॉ. आनंद कहते हैं कि 'अगर फ़ायदों की बात की जाए तो वर्कआउट से बच्चे को बैलेंस करने, को-ऑर्डिनेशन करने और मोटापे से दूर रहने में मदद मिलती है.'
वहीं नुकसान की बात करें तो अगर वर्कआउट बच्चे की उम्र के अनुपात में नहीं है तो बच्चे को बोन-इंजरी हो सकती है क्योंकि बच्चों की हड्डियां बहुत मुलायम होती हैं.
इसके अलावा मांस-पोशियों में भी खिंचाव आ सकता है. ऐसे में ये सुनिश्चित करना ज़रूरी हो जाता है कि बच्चा जो भी एक्सरसाइज़ करे वो उसकी उम्र के हिसाब से ही हो.
डॉ. आनंद कहते हैं कि बच्चों के लिए एक घंटे का वर्कआउट सही है, लेकिन भारी वर्कआउट बिल्कुल नहीं.