6 साल पहले भारत दौरे पर आए थे जिनपिंग और लद्दाख में दाखिल हो गए थे चीनी सैनिक, जानिए कैसे सुलझा था वह संकट
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर जारी तनाव को पूरे एक माह हो चुके हैं। आज दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल मसले को सुलझाने के लिए लद्दाख के चुशुल में मुलाकात करने वाले हैं। छह साल पहले भी लद्दाख में ऐसे ही हालात बने थे। उस समय एक तरफ तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पहली भारत यात्रा पर आए थे तो लद्दाख में भारतीय और चीनी जवान आपस में भिड़ रहे थे। जानिए कैसे भारत ने उस समय इस टकराव को खत्म करने में सफलता हासिल की थी।
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नाटकीय ढंग से हुई सारी घटना
सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कार्यकाल संभाले हुए करीब पांच माह पूरे हो चुके थे। उसी समय चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग पहली भारत यात्रा पर अहमदाबाद पहुंचे थे। दोनों नेता साबरमती रिवर फ्रंट पर थे तो हजारों मील दूर चीन की राजधानी बीजिंग में कूटनीतिक स्तर पर प्रयास जारी थे कि लद्दाख में जारी टकराव को खत्म किया जा सके। बड़े ही नाटकीय ढंग से सामने आए इस घटनाक्रम में हजारों चीनी सैनिक लद्दाख के चुमार क्षेत्र में दाखिल हो गए थे। यह जगह लद्दाख के दक्षिण में है तिब्बत से सटी हुई है।
लद्दाख के चुमार में थी घुसपैठ
लद्दाख का चुमार भी मुश्किल पर्वतीय क्षेत्र है। 16,000 से 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जगह पर तापमान बहुत कम रहता है और बर्फ सी हवाएं स्थितियां और दुष्कर कर देती हैं। इस इलाके में यह वह हिस्सा है जहां पर एलएसी तक सड़क का निर्माण हुआ है। इसके अलावा यहां पर एक बड़ा सा नाला भी है और यह एक तेज मोड़ पर स्थित है। करीब 30 मीटर ऊंचे इस नाले के दूसरी तरफ चीनी सड़क है। लेकिन वहां पर मोड़ इतने तेज हैं कि चीनी सैनिक एलएसी क्रॉस कर अपने वाहनों से भारतीय क्षेत्र में दाखिल नहीं हो पाते हैं।
LAC में दाखिल चीनी सैनिक
चीनी सैनिक अपनी गाड़ियों से इसी नाले तक आते हैं जो नक्शे में 30R के तौर पर चिन्हित है। यहां से वह गश्त के लिए या तो घोड़े का प्रयोग करते हैं या फिर पैदल आते हैं। अक्सर भारतीय जवान उन्हें गश्त के दौरान उनकी सीमा तक रुकने की चेतावनी देते हैं और इसकी वजह से मजबूरन उन्हें बैनर ड्रिल के बाद वापस लौटना पड़ता है। इस इलाके में उस वर्ष इसी वजह से चीनी अतिक्रमण हुआ था। उस समय नॉर्दन आर्मी कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डीएस हुड्डा ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि भारत की तरफ जो मैप्स हैं उनमें एलएसी को स्पष्ट तौर पर चिन्हित किया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं चीन की तरफ भी कुछ हिस्सों को बिंदुओ के तौर पर रेखा से चिन्हित किया गया है।
भारतीय सीमा में सड़क निर्माण
तनाव बढ़ता गया और इस दौरान चीनी सैनिक अपने साथ निर्माण कार्यों के लिए कुछ जरूरी उपकरण भी ले आए। सितंबर के दूसरे हफ्ते में 30R के इलाके में सड़क बनाने के लिए वह खुदाई करने लगे। उस दौरान भारत के कंपनी कमांडर ने इसका विरोध किया और बलपूर्वक चीनी जवानों को रोकने की कोशिश। यहीं से संकट बढ़ता गया। चीनी जवान चुमार के पश्चिम में बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए और तब तक चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग भारत पहुंच चुके थे। टकराव एलएसी पर करीब 10 किलोमीटर तक फैल चुका था। इसी दौरान भारतीय सेना ने फैसला किया कि यहां पर एक लद्दाख डिविजन की एक आरक्षित ब्रिगेड को तैनात किया जाएगा। इस ब्रिगेड को आमतौर पर गर्मियों में होने वाली एक्सरसाइज के लिए रखा जाता है। इससे चुमार में चीनी जवानों को तेजी से रोकने में मदद मिलती
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दो हफ्तों बाद सुलझा संकट
बीजिंग में राजनयिक स्तर पर वार्ता जारी थी और तत्कालीन भारतीय राजदूत अशोक कांठा वार्ता की अगुवाई कर रहे थे। वह लगातार चीनी पक्ष को जोर दे रहे थे कि इलाके में यथास्थिति को बहाल किया जाए। इसके बाद चीनी अधिकारी इस बात पर राजी हुए कि 30R पर होने वाले सड़क निर्माण कार्य को बंद किया जाएगा। स्थानीय कमांडर्स भी इस बात पर सहमति बनी कि दोनों पक्षों की तरफ से कुछ हफ्तों तक गश्त नहीं होगी। इसके बाद अगले दो हफ्तों के अंदर दोनों देशों की सेनाएं पीछे चली गईं और करीब दो साल बाद चुमार में भारत-चीन की सेनाओं ने फिर से गश्त शुरू की।