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हार्ट सर्जरी के बिना इस सिंगल मदर की बेटी मरने को है मजबूर

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नई दिल्ली। बेटी को जन्‍म देने की वजह से अंकिता को उसके ससुराल वालों और पति‍ ने छोड़ दिया था। परिस्थिति और ज़्यादा तब खराब हुई जब उसे पता चला कि अपनी बेटी की हार्ट सर्जरी के लिए उसे बहुत सारे पैसों का इंतज़ाम अकेले ही करना पड़ेगा।

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वो जिस समाज में रहती है वहां पर बेटी के पैदा होने पर पति का छोड़ना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। उसके ससुराल वाले उसकी बिल्कुल भी चिंता नहीं करते हैं। वो खुद को बिल्कुल अकेला महसूस करती है। अपने परिवार को इस बदनामी से बचाने के लिए वो सालों तक इस दर्द को पीती रही और किसी से कुछ नहीं कहा।

शादी के पहले दिन से ही अंकिता के साथ घरेलू उत्‍पीड़न शुरु हो गया था। शादी का रिश्‍ता तो जैसे उसकी ज़िंदगी में तूफान लेकर आया था लेकिन फिर भी उसने इस मुश्किल घड़ी में उम्‍मीद का दामन नहीं छोड़ा। वो हालात के बेहतर होने का इंतज़ार करती रही और इस उम्‍मीद में ज़िंदा रही कि एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। जब वो गर्भवती हुई तो उसे लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ये सब बस उसकी गलतफहमी थी।

अंकिता बताती है कि उनके ससुराल वाले उसके मां बनने की खबर से बहुत ज़्यादा खुश थे लेकिन उसे क्‍या पता था कि ये खुशी भी उसकी ज़िंदगी में ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाएगी। वो 5 महीने की गर्भवती थी जब उसे एक रूटीन स्‍कैन के दौरान पता चला कि उसकी बच्‍ची को कों‍गेनाइटल ह्रदय रोग है।

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उसके पति और परिवार ने तब भी उसका साथ दिया और वो सब बच्‍चे की ज़िंदगी की जंग में उसके साथ खड़े थे। लेकिन जब अंकिता ने एक बेटी को जन्‍म दिया तो उसके परिवार का व्‍यवहार पूरी तरह से बदल गया और अब ये सपना और भी भयंकर हकीकत का रूप ले चुका था। वो अंकिता के बेटी को जन्‍म देने की वजह से नाखुश थे। उसकी बेटी अपराजिता बीमार ही पैदा हुई थी और उसे बहुत महंगे इलाज की ज़रूरत थी।

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वो मेरी बेटी है और उसके लिए मैं पूरी दुनिया से लड़ सकती हूं। अपनी बेटी को रखने और उसे पालने की वजह से मेरे ससुराल वालों और पति ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया। उनके मुताबिक मेरा जुर्म माफ किए जाने के लायक नहीं और बिना सोचे-समझे मुझे घर से निकाल दिया गया। अब मुझे उसे अकेले ही बड़ा करना होगा। अपनी बेटी की ज़िंदगी के लिए मुझे खुद हिम्‍मत से काम लेना होगा।

अंकिता ये सब सहने के बाद अपने पिता के घर रहने लगी। उसे बार-बार अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते थे। अपनी बच्‍ची की जान बचाने के लिए वो 1 लाख रुपए तक खर्च कर चुकी थी। उसे याद भी नहीं है कि उसकी बच्‍ची ने कितने दिन उसकी गोद से दूर आईसीयू में बिताए हैं। उसकी बच्‍ची की जान बचाने का खर्चा बहुत ही ज़्यादा था। उसके माता-पिता बहुत बूढ़े हैं और वो तो उनकी बहुत शुक्रगुज़ार है कि उन्‍होंने उसे अपने घर में जगह दी। वो उनसे पैसे मांगने के बारे में सोच भी नहीं सकती है।

इस दौरान अपराजिता की हालत और ज़्यादा खराब हो गई है। उसे सांस लेने में भी दिक्‍कत हो रही है। उसमें रोने तक की जान नहीं बची। खाने में भी उसे मुश्किल हो रही है। डॉक्‍टरों का कहना है कि अब बस ओपन हार्ट सर्जरी से ही उसकी बच्‍ची की जान बच सकती है।

अंकिता की बेटी की सर्जरी का खर्चा 3.5 लाख रुपए का है। सिंगल मदर होने के नाते अपनी बच्‍ची को बचाने के लिए वो हर संभव कोशिश कर रही है। अंकिता कहती है कि अब वो अपनी ज़िंदगी को अपनी बेटी के बिना सोच भी नहीं सकती है। कई बार अस्‍पताल के कॉरिडोर में ही वो फूट-फूट कर रो चुकी है और आते-जाते अजनबियों का दिल भी उसको देखकर पसीज जाता है।

अब अपर‍ाजिता की किस्‍मत आपके हाथों में है। मैं उम्‍मीद करती हूं कि आपके दिल में मेरी बेटी की ज़िंदगी के लिए थोड़ी सी दया भावना होगी। आपकी छोटी सी मदद भी उस नन्‍ही सी जान को उस‍की ज़िंदगी के करीब लेकर जा सकती है। तो चलिए एक साथ मिलकर मानवता के लिए अंकिता की बच्‍ची की जान बचाने में उसकी मदद करते हैं।

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