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जानिए क्‍यों Indian Army के सिख सैनिकों से डरता है चीन, एक सदी पुरानी है कहानी

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नई दिल्‍ली। पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) ने लद्दाख में लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर पंजाबी म्‍यूजिक बजाना शुरू कर दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं यहां पर तैनात जवानों को हिंदी में इंडियन आर्मी के खिलाफ लाउडस्‍पीकर पर भड़काया जा रहा है। पीएलए का यह प्रपोगेंडा नया नहीं है और साल 1962 के युद्ध में भी इसी तरह से भारतीय फौज का मनोबल कमजोर करने के लिए उसने यही रणनीति अपनाई थी। असलियत यह है कि लद्दाख के कई सेक्‍टर्स में उसी पंजाब रेजीमेंट के बहादुर जाबांज तैनात हैं जिन्‍होंने 15 जून में गलवान घाटी हिंसा में चीन की कमर तोड़ी थी।

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चुशुल में रखा है चीन का लॉफिंग बुद्धा

चुशुल में रखा है चीन का लॉफिंग बुद्धा

चीन की पीएलए ने उन्‍हीं बिंदुओं पर लाउडस्‍पीकर लगाए हैं जहां पर भारत के साथ टकराव जारी है। रेजांग ला से लेकर रेकिन ला तक इस समय इंडियन आर्मी और चीनी जवान आमने-सामने हैं। जो लोग इस जगह से वाकिफ हैं उन्‍हें पता है कि चुशुल के ब्रिगेड हेडक्‍वार्टर के मेस पर आज भी सोने की लॉफिंग बुद्धा की एक मूर्ति रखी हुई है। कहते हैं इस मूर्ति को एक सदी पहले सिख रेजीमेंट के जवानों ने ही जब्‍त किया था। उस समय सिख सैनिक आठ देशों के उस मिशन का हिस्‍सा थे जिसमें चीन की बॉक्‍सर रेबिलियन को खत्‍म करना था। यह संगठन युवा किसानों और मजदूरों का संगठन था जिसे विदेशी प्रभाव को खत्‍म करने के मकसद से तैयार किया गया था। ब्रिटिश आर्मी ने उस समय सिख और पंजाब रेजीमेंट्स की मदद बाकी रेजीमेंट्स के साथ ली थी।

भारत से गए थे 8,000 जवान

भारत से गए थे 8,000 जवान

सेनाएं बीजिंग में दाखिल हुईं और इसके बाद बॉक्‍सर के लड़ाकों ने विदेशी जवानों को धमकाया। इसके बाद उन्‍होंने करीब 400 विदेशियों को बंधक बनाकर बीजिंग स्थित फॉरेल लिगेशन क्‍वार्टर में रखा। 55 दिनों तक चले संघर्ष के लिए 20,000 जवान बीजिंग में दाखिल हुए थे। करीब 8,000 जवानों ब्रिटिश आर्मी के साथ थे और ये भारत से गए थे। इनमें से ज्‍यादातर सिख और पंजाब रेजीमेंट के थे। कहते हैं कि जीत के बाद ब्रिटिश आर्मी लूटपाट में लग गई, फ्रांस और रूस के जवानों ने वहां पर नागरिकों की हत्‍या कर तो कुछ महिलाओं का बलात्‍कार भी किया।

1962 में भी बजे थे लाउडस्‍पीकर

1962 में भी बजे थे लाउडस्‍पीकर

चुशुल के आर्मी मेस में लॉफिंग बुद्धा रखा हुआ है उन सामानों में शामिल था जिसे जवान अपने साथ लेकर आए थे। अपनी किताब इंडियाज चाइना वॉर में ऑस्‍ट्रेलिया के जर्नलिस्‍ट नेवेली मैक्‍सवेल ने लिखा है कि चीनी नेतृत्‍व ने अपने साथ हुए उस बर्ताव को ही देश को आगे बढ़ाने वाले आंदोलन के तौर पर जारी रखा। मैक्‍सवेल मानते हैं कि चीन ने इसी सोच के साथ 1962 की जंग भारत के खिलाफ लड़ी थी। विशेषज्ञों की मानें तो यही वजह है कि पीएलए पंजाबी या फिर सिख सैनिकों को मनोवैज्ञानिक तौर पर कमजोर करने के लिए ऐसे ऑपरेशन को अंजाम देती है।

गलवान में भी सिख सैनिकों ने चटाई धूल

गलवान में भी सिख सैनिकों ने चटाई धूल

15 जून को गलवान घाटी में जो संघर्ष हुआ था उसमें पंजाब की घातक प्‍लाटून के चार जवान भी शामिल थे। इंडियन आर्मी के पूर्व चीफ की मानें तो पीएलए ने सन् 1962 में हुए टकराव के दौरान एलएसी के पूर्वी और पश्चिमी सेक्‍टर्स पर इसी तरह की रणनीति अपनाई थी। इसके अलावा सन् 1967 में सिक्किम के नाथू ला में हुए टकराव में भी चीन ने यही किया था। उनका कहना है कि भारतीय जवानों को धोखे के बारे में मालूम चल गया था।

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English summary
Sikh Soldiers in Ladakh always a big threat for China and its army.
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