सियाचिन डे- आज ही के दिन 35 वर्ष पहले सियाचिन पर लहराया था तिरंगा
श्रीनगर। 13 अप्रैल दो वजहों से हमेशा भारत के इतिहास का अभिन्न हिस्सा रहेगी। पहली वजह है 100 वर्ष पहले हुआ जालियांवाला बाग गोलीकांड और दूसरी वजह है 35 वर्ष पहले जम्मू कश्मीर के सियाचिन में भारतीय सेना को मिली फतह। 20,000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ कर तिरंगा फहराया था। वह भी बैसाखी का दिन था और हर बैसाखी पर सेना के इसी जज्बे और जोश को सलाम करने के मकसद से सियाचिन दिवस मनाया जाता है।
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जवानों को किया याद
शनिवार को सियाचिन में स्थित सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर की सियाचिन वॉरियर्स ने सियाचिन दिवस पारंपरिक तौर पर मनाया। हर वर्ष उन तमाम ऑफिसर्स और जवानों का सम्मान इस दिन पर किया जाता है जो सफलतापूर्वक सियाचिन में तैनात रहकर दुश्मन के हर खतरे को देश से दूर रखे हुए हैं। इस मौके पर ब्रिगेडियर भूपेश हाडा ने सियाचिन वॉर मेमोरियल पर शहीद जवानों की बहादुरी और उनके जज्बे को श्रद्धांजलि दी। आज ही के दिन यानी 13 अप्रैल 1984 को इंडियन आर्मी ने बिलाफोंड ला और दूसरी अहम पोस्ट्स को ऑपरेशन मेघदूत के तहत दुश्मन से सुरक्षित किया था। सियाचिन दुनिया का हाइएस्ट वॉरजोन है और यहां पर हर पल सेना के जवान तैनात रहते हैं।
क्या हुआ था 35 वर्ष पहले
वर्ष 1984 में पाक ने 33,000 वर्ग किमी तक फैले इस इलाके पर कब्जे की कोशिश की और अपने सैनिकों को भेजना शुरू कर दिया। इसके बाद भारत की सरकार नींद से जागी और फिर इंडियन आर्मी ने पाक सैनिकों को खदेड़ने के लिए 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत लांच किया। सियाचिन में लड़ाई के लिए सभी जरूरी सामान पाकिस्तान ने बहुत पहले ही यूरोप से मंगाया लिया था। वहीं भारत के सैनिकों को ऑपरेशन की रात से एक दिन पहले यानी 12 अप्रैल को स्पेशलाइज्ड यूनिफॉर्म और सारा जरूरी सामान मिला था।
कश्मीर से ज्यादा है इसकी अहमियत
सियाचिन, भारत के लिए कश्मीर से ज्यादा अहमियत रखता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सियाचिन ने वर्ष 1984 के बाद से यहां पर कई घुसपैठ और कब्जे की कोशिशों को महसूस किया है। उनका मानना है जब तक पीओके में आतंकी कैंप्स चल रहे हैं तब तक भारत सियाचिन को सिर्फ कुछ लोगों की मन की शांति के लिए कुर्बान नहीं कर सकता है। न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि चीन की नजरें भी हर पल सियाचिन पर रहती हैं। कश्मीर से अलग सियाचिन भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले तीन दशकों से जंग का मैदान बना हुआ है। यहां पर सेनाओं का तैनात रखने के मकसद से अब तक दोनों देश करीब 600 अरब रुपए से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत इस जगह पर एक दिन में करीब 10 करोड़ रुपए खर्च करता है।
आज तक तैनात हैं 3,000 सैनिक
ऑपरेशन मेघदूत के तहत पाकिस्तानी सेना को खदेड़ का सियाचिन के सेला पास, बेलाफोंडला और ग्योंगला पास को कब्जे से वापस लेना था। सियाचिन की ऊंचाई भारत की तरफ से जहां कहीं ज्यादा है तो वहीं पाक की तरफ से यह काफी कम है। इसलिए ऑपरेशन मेघदूत की सफलता को आज तक भारतीय सेना के लिए एक मिसाल करार दिया जाता है। वर्ष 2003 में पाकिस्तान ने भारत से सीजफायर संधि की। इसके बाद से ही यहां पर शांति है। लेकिन इंडियन आर्मी ने किसी भी मुश्किल स्थिति से निबटने के लिए यहां पर अपने 3,000 सैनिकों को तैनात कर रखा है।
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