ये क्या कर दिया मोदी जी, अब कहां जाए मजदूर
नई दिल्ली। श्रमेव जयते क्या वाकई श्रमिकों की जय करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रमेव जयते कार्यक्रम की शुरुआत करके देशभर के श्रमिकों के पीएफ अकाउंट को ऑनलाइन करने का ऐलान किया है। लेकिन हाल में श्रम कानूनों में संशोधनों पर नजर डाले तो यह कतई श्रमिकों की जय करते नहीं दिख रहे हैं। श्रम कानूनों में जिन संशोधनों को सरकार ने हड़बड़ी में लागू किया वह सब नब्बे के दशक से ही कंपनियों और कारखानों में होता रहा है, जिसे अबतक अवैध माना जाता रहा था। नए संशोधनों के बाद ये सभी कानूनी घोषित कर दिए गये हैं।
क्या होगा नुकसान
-
श्रम
विभाग
द्वारा
बनाए
गये
नये
प्रावधानों
के
अनुसार
अब
-
कारखानों
में
अधिक
से
अधिक
प्रशिक्षु
अथवा
ट्रेनी
श्रमिक
रखे
जा
सकेंगे,
जिन्हें
न्यूनतम
वेतन
से
30
प्रतिशत
कम
वेतन
मिलेगा
-
फ़ैक्ट्रीज़
संशोधन
बिल
में
फ़ैक्ट्रियों
में
कर्मचारियों
की
संख्या
को
बढ़ाने
का
पूरा
अधिकार
राज्यों
को
दिया
गया
है।
-
इससे
पहले
यह
अधिकार
केंद्र
के
पास
था।
-
काम
के
घंटे
को
नौ
से
बढ़ाकर
12
घंटे
कर
दिया
गया
है,
पहले
काम
की
अवधि
आठ
घंटे
थी।
-
ओवरटाइम
को
बढ़ा
कर
प्रति
तिमाही
100
घंटे
कर
दिया
गया
है,
कुछ
मामलों
में
इसे
125
घंटे
तक
बढ़ा
दिया
गया
है
जोकि
पहले
अधिकतम
50
घंटे
था।
- औद्योगिक विवाद मामले में केस दर्ज करने का अधिकार लेबर इंस्पेक्टर की बजाए राज्य सरकार को दे दिया गया है।
अप्रेंटिसेज़ संशोधन बिल 2014 के मुताबिक, कंपनियां पहले की अपेक्षा अधिक से अधिक प्रशिक्षु कर्मचारी रख सकेंगी। इससे पहले कंपनियां कुछ निश्चित प्रतिशत में ही प्रशिक्षु कर्मचारी रख सकती थीं। इस नियम के बाद कम पैसे में मजदूरी करने वाले मिलते जाएंगे और पुराने लोगों की छुट्टी होने की संभावना बढ़ जायेगी। प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पूरी तरह आउटसोर्स करने की अनुमति दे दी गई है।
इन संशोधनों को इतनी हड़बड़ी में पारित किया गया कि इन पर बहुत चर्चा नहीं हो पाई। इन संशोधनों का लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने चर्चा के दौरान विरोध भी किया था। उन्होंने कहा था कि इन संशोधनों के बारे में कोई नहीं जानता। कई ट्रेडयूनियन संगठनों ने भी इसका विरोध किया था बावजूद इसके इन कानूनों को पास कर दिया गया है। खड़गे ने कहा कि इन संशोधनों से सारे फायदे कंपनियों और कारखानों को होंगे।