क्या मसूद अजहर पर चीन के रवैये के बाद भारत के पास जवाहर लाल नेहरू की विदेश नीति का ही विकल्प बचता है?
नई दिल्ली- जैश ए मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने में चीन ने जिस तरह से अड़ंगा लगाया है, उसके बाद एक मत ये भी है कि अब जवाहर लाल नेहरू के तरह की विदेश नीति पर भारत को पुनर्विचार करना चाहिए। इसके पक्ष में तर्क ये है कि आज ऐसे आतंकियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भी पूरी तरह से सक्षम नहीं हो पा रहा है।
नेहरूवादी विदेश नीति क्या है?
द प्रिंट की एक लेख के जरिए ये विचार दिया गया है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर को बैन कराने की कोशिशें छोड़कर नेहरूवादी विदेश नीति पर फिर से विचार करना चाहिए। 1950 के शुरुआती दशकों में नेहरू ने अपनी वैश्विक छवि से भारत को एक अलग पहचान देने की कोशिश की थी। उन्हें इंटरनेशनल इंस्टीट्यूशनलिज्म में भरोसा था, जिसके माध्यम से वह दुनिया के ज्यादा शांतिपूर्ण बनाना चाहते थे। एक तरह से देखें तो उनकी विदेश नीति बहुत ही सूक्ष्म वैश्विक सोच से पैदा हुई थी। देश के हित में क्या है, उन्हें अच्छे से पता था। चाहे वह कश्मीर के मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण हो या गुटनिरपेक्ष आंदोलन की ओर उनका झुकाव। गौरतलब है कि बाद में इसपर सवाल भी उठते रहे हैं।
लेख में कहा गया है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का प्रयास काफी समय से होता रहा है। लेकिन, यह मुद्दा अब निर्रथक लगता है। क्योंकि, यूएनएसी का रोल आज शांति मिशन और किसी गैर-मित्र के खिलाफ प्रस्ताव पास करने के अलावा ज्यादा कुछ नहीं रहा है। आज कई वैश्विक शक्तियां बनकर उभरी हैं, जिससे यूएनएससी का कोई खास महत्त्व नहीं है। इसलिए, पुलवामा हमले के बाद भारत के जितने भी कूटनीतिक प्रयास हुए हैं, उससे कोई ठोस हल नहीं निकल पा रहा है। पाकिस्तान को कूटनीतिक तौर पूरी तरह से अलग-थलग कर देना आज की तारीख में लगभग नामुमिकन की तरह है। ऐसी स्थिति में भारत सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बन भी जाय तो उससे कोई फायदा नहीं मिलने वाला।
भारत की 'महान' सभ्यता पर जोर बेअसर
पिछले कुछ साल में भारतीय विदेश नीति भारतीय सभ्यता को महान बताने की सोच पर आधारित रही है। इसके पीछे की यह सोच रही है कि भारत को सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता मिल सकती है। लेख में कहा गया है कि बीजेपी की सोच के आधार पर स्कूली किताबों में भारत की महान सभ्यता पर जोर देने के विचारों से स्थिति और खराब हो गई है। कुल मिलाकर लेख का भाव यह है कि भारत को वैश्विक स्थिति पर व्यवहारिक सोच रखना जरूरी है, जो कि मौजूदा विदेश नीति में नजर नहीं आता।
चीन मॉडल
लेख में बताने की कोशिश हुई है कि चीन की विदेश नीति और भारत की मौजूदा विदेश नीति के विश्लेषण से इसका परिणाम दिख जाता है। चीन ने अपनी ताकत से अपनी पुरानी प्रतिष्ठा कायम की है। चीन को यह सफलता तब मिलनी शुरू हुई जब 1970 के आखिरी वर्षों में उसने नई विदेश नीति को अपनाया। इसका मूल सिद्धांत है- 'अपनी ताकत को गुप्त रखो और समय का सदुपयोग करो।' चार दशकों में ही चीन विश्व का बड़ा आर्थिक और सैन्य ताकत बन चुका है। वर्तमान समय में भारतीय विदेश नीति में यही सोच का अभाव रहा है।
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