
चीन के भूटान में इमारत बनाने से क्या भारत को परेशान होना चाहिए?

साल 2017 से भारत और चीन के बीच डोकलाम पठार को लेकर सैन्य तनाव बना हुआ है.
डोकलाम पठार के भूटानी क्षेत्र में चीन के नई इमारतें बनाने के सबूतों के सामने आने से भारत असहज स्थिति में है. भारत चीन के निर्माण को इस क्षेत्र पर चीन के दावों के मज़बूत करने के तौर पर देखता है.
चीन की सेना की गतिविधियों पर नज़र रखने वाले एक वैश्विक शोधकर्ता ने ट्विटर पर 17 नवंबर को डोकलाम के पास भूटान और चीन के बीच विवादित क्षेत्र में चीन के निर्माण की सेटेलाइट तस्वीरें जारी की थीं.
दावा किया गया था कि चीन ने विवादित क्षेत्र में ये निर्माण कार्य साल 2020-21 में किया है.
चीन की 22457 किलोमीटर लंबी सीमा 14 देशों से लगी है लेकिन सिर्फ़ भारत और भूटान के साथ ही उसका सीमा विवाद है.
इस नई गतिविधि ने भारत को परेशान कर दिया है क्योंकि ये इलाक़ा डोकलाम में भारतीय क्षेत्र से लगा है. इस विवादित क्षेत्र में चीन के निर्माण कार्य को लेकर साल 2017 में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं और तब से ही दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है.
भारत के भू-राजनीतिक हित होंगे प्रभावित
भारत और चीन के बीच संबंध जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद और ख़राब हो गए थे. भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई इस हिंसक झड़प में कम से कम 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे. चीन ने भी बाद में अपने चार सैनिकों की मौत स्वीकार की थी.
भूटान.. भारत और चीन के बीच एक बफ़र क्षेत्र की तरह काम करता है. अब यहां चीन की गतविधियों ने एक बार फिर से भारत और चीन के बीच तनाव को बढ़ा दिया है.
भूटान और चीन के बीच 477 किलोमीटर लंबी सीमा है. ये देश भारत के लिए रणनीतिक रूप से इसलिए अहम है क्योंकि यह भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है) और चीन के बीच एक कवच के रूप में काम करता है. भारत सिलीगुड़ी कॉरिडोर के ज़रिए ही उत्तर-भारतीय राज्यों से सड़क मार्ग से जुड़ा है. ऐसे में इसकी सुरक्षा भारत के लिए बेहद अहम है.
पत्रिका आउटलुक में प्रकाशित एक लेख में विश्लेषक जजाति पटनायक और चंदन के. पांडा ने चिंता ज़ाहिर की है कि डोकलाम पठार में चीन की गतिविधियों के भारत के भू-राजनीतिक हितों पर गंभीर परीणाम हो सकते हैं.
भारत की विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने भी भूटान में चीन की गतिविधियों पर चिंता ज़ाहिर की है. पार्टी प्रवक्ता गौरव बल्लभ कहते हैं, "भूटान की ज़मीन पर चीन का निर्माण भारत के लिए बेहद चिंताजनक है क्योंकि हम भूटान की विदेश नीति में सलाह देते हैं और उसके सैन्यबलों को भी प्रशिक्षित करते हैं."
सीमा विवाद पर चीन-भूटान की वार्ता को लेकर चिंता

चीन और भूटान ने 14 अक्तूबर को सीमा विवाद को लेकर एक सहमति पत्र पर भी हस्ताक्षर किए हैं. भूटान और चीन साल 1984 से सीमा विवाद पर वार्ता कर रहे हैं.
भारत ने इस पर सावधानीपूर्वक प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि उसकी नज़र इस घटनाक्रम पर है.
भूटान और चीन के बीच सीधे राजनयिक संबंध नहीं हैं और दोनों ही दिल्ली में अपने दूतावासों के ज़रिए बात करते हैं. लेकिन समझौता ज्ञापन (एमओयू) को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रक्षा विश्लेषक कर्नल दानवीर सिंह ने ट्वीट किया, "क्या ये भूटान और चीन के बीच किसी सीमा विवाद समाधान का हिस्सा है? हमें इससे चिंतित होना चाहिए."
चार साल पहले डोकलाम में भारत और चीन के सैनिक 73 दिनों तक आमने-सामने रहे थे. ये सैन्य तनाव अभी तक समाप्त नहीं हुआ है. ऐसे में ये नया घटनाक्रम भारत की चिंताएं बढ़ाने वाला है.
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भारत के हिंदी भाषी अख़बार दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत इस समझौते पर नज़र रखे हुए था क्योंकि चीन ने 2017 में भूटान के रणनीतिक रूप से अहम डोकलाम क्षेत्र को क़ब्ज़ाने की कोशिश की थी."
हालांकि चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने 15 अक्तूबर को प्रकाशित एक लेख में 'भारत की संकीर्ण भू-राजनीतिक दृष्टि' की आलोचना करते हुए लिखा, "समझौते पर हस्ताक्षर करना दो स्वतंत्र देशों के बीच का विषय है. यदि भारत इस पर सवाल उठाता है तो इससे दुनिया यही देखेगी कि भारत अपने एक छोटे और कमज़ोर पड़ोसी देश की संप्रभुता को कमज़ोर कर रहा है."
लेकिन भूटान भारत के लिए इतना अहम है कि भारत को चीन और भूटान के रिश्तों पर नज़दीकी नज़र रखनी ही होगी. भारत के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के एक लेख में कहा गया है, "भूटान भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद अहम है क्योंकि ये देश सिलीगुड़ी कॉरिडोर से लगा है. यदि भूटान अपनी ज़मीन को लेकर कोई भी समझौता करता है तो इससे इस क्षेत्र में भारत की सुरक्षा प्रभावित होगी."
चीन का सीमा भूमि क़ानून सोच समझकर उठाया गया क़दम

भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद के बीच चीन ने सीमा पर स्थित भूमि को लेकर लैंड बॉर्डर लॉ पारित किए हैं. भारत इसके लिए भी बहुत तैयार नहीं था.
23 अक्तूबर को पारित ये क़ानून चीन की चौदह देशों से लगी 22 हज़ार किलोमीटर से लंबी सीमा को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से लाया गया है. ये क़ानून अगले साल जनवरी में लागू हो जाएंगे.
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भारत ने 'चीन के इस एकतरफ़ा निर्णय' पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए एक सख़्त बयान जारी किया और कहा कि भारत ये उम्मीद करता है कि चीन क़ानून की आड़ लेकर ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे भारत चीन सीमा पर परिस्थितियां प्रभावित हों.
विश्लेषक अनिर्बान भौमिक कहते हैं कि चीन के नए सीमा भूमि क़ानून दर्शाते हैं कि चीन चौदह देशों के साथ लगी अपनी सीमाओं के प्रबंधन को लेकर गंभीर है और भारत और भूटान के साथ सीमा विवाद को अपनी शर्तों पर सुलझाना चाहता है.
भारत और चीन के बीच सीमा पर जारी तनाव को ख़त्म करने के लिए दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ता भी चल रही है. ऐसे में इस नए क़ानून को पारित किए जाने से ये वार्ता भी प्रभावित हो सकती है.
अंग्रेज़ी अख़बार में एक सैन्य अधिकारी के हवाले से कहा गया है, "चल रहे तनाव के बीच आप कोई नया क़ानून क्यों पारित करेंगे? आप स्पष्ट रूप से एक संदेश भेज रहे हैं...अब जब उन्होंने क़ानून बना दिया है, तो ये समझौते के तहत समाधान कैसे निकालेगा? "
वहीं चीन के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत इस नए क़ानून पर ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया दे रहा है. ग्लोबल टाइम्स से बात करते हुए विश्लेषक क्वान शाओलियान ने कहा, "इन नए क़ानूनों को लेकर भारत का डर और इन्हें ज़रूरत से अधिक सामान्य करने से दोनों देशों की सीमा विवाद को लेकर वार्ता को झटका लग सकता है. "
भारत की सुरक्षा से समझौता?
भारत चीन के निर्माण करने की गतिविधियों और चीन के भारत के अरुणाचल (जिस पर चीन अपना दावा करता है) में घुसने की रिपोर्टों को अपनी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ के तौर पर देखता है.
विश्लेषक जजाति के. पटनायक लिखते हैं, "भूटान की मदद से चीन डोकलाम के इर्द-गिर्द के रणनीतिक इलाक़ों पर नियंत्रण करना चाहता है और इससे चीन अपनी सैन्य शक्ति को सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जो 60 किलोमीटर लंबा और 22 किलोमीटर चौड़ा है) की तरफ बढ़ा सकता है जिससे भारत के लिए सुरक्षा चिंताएं होंगी."
ये स्पष्ट नहीं है कि चीन भूटान की तरफ इसलिए हाथ बढ़ा रहा है कि भारत-भूटान के रिश्तों को प्रभावित कर सके.
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भूटान और चीन के बीच समझौते पर दस्तख़त होने के बाद ग्लोबल टाइम्स में विश्लेषकों के हवाले से कहा गया कि "इससे ये पता चलता है कि भूटान अपनी सीमा से जुड़े मामलों को स्वतंत्र रूप से संभालना चाहता है और भारत के 'चीन के ख़तरे' के दावों को खारिज करते हुए अपने पूर्वी भारत-चीन बॉर्डर पर ख़तरे को कम किया है."
चीन भूटान की तरफ बढ़ने पर काम कर रहा है ऐसे में भारत को अपनी सैन्य तैयारी को बढ़ाने के साथ-साथ अपने इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सहयोगी देश के लिए समर्थन और बढ़ाना होगा.
विश्लेषक चारू सुदन कस्तूरी कहती हैं, "भारत एक मज़बूत स्थिति से ही भूटान को चीन से वार्ता करने में मदद कर सकता है."
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