'Super 30' के असली हीरो आनंद कुमार को ब्रेन ट्यूमर, बॉयोपिक को लेकर कही इमोशनल बात
मुंबई। सुपरस्टार ऋतिक रोशन की फिल्म 'सुपर 30' बॉक्स ऑफिस पर दस्तक देने को पूरी तरह से तैयार है, फिल्म के ट्रेलर को बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं, जिससे उम्मीद की जा रही है कि विकास बहल के निर्देशन बनी ये फिल्म लोगों को जरूर पसंद आएगी लेकिन इस बीच एक खबर ने सबको दुखी कर दिया है, दरअसल 'सुपर 30' के संस्थापक आनंद कुमार ने बारे में पता चला है कि वो ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं, आपको बता दें कि फिल्म 'सुपर 30' शिक्षक आनंद कुमार की लाइफ पर ही बनी है।
आनंद कुमार ने खुद अपनी बीमारी का किया खुलासा
आनंद कुमार ने खुद अपनी बीमारी का खुलासा एक इंटरव्यू में किया है, उन्होंने कहा कि कुछ वक्त पहले मुझे सुनने में दिक्कत हो रही थी, पहले तो मुझे लगा कि छोटी-मोटी परेशानी है, जो कि ठीक हो जाएगी, लेकिन जब परेशानी ज्यादा होने लगी तो मैंने जाकर डॉक्टर से जांच कराई तो मुझे पता चला कि बीमारी कान में नहीं बल्कि दिमाग में हैं, मैं एक गंभीर बीमारी का शिकार हूं, जो नर्व कान को ब्रेन से जोड़ती है, वहां पर ट्यूमर है, फिलहाल मेरा इलाज चल रहा है।
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बॉयोपिक को लेकर कही इमोशनल बात
इंटरव्यू में भावुक होते हुए आनंद ने कहा कि इसलिए मैंने अपनी बायॉपिक के लिए 'हां' की थी , आनंद ने कहा कि मैं चाहता था कि मैं अपने जीते जी अपनी जर्नी को पर्दे पर देखूं और इसलिए मैंने फिल्म के लिए हां कर दिया, आनंद ने एक्टर ऋतिक के काम की तारीफ करते हुए कहा कि वो बेमिसाल सितारे हैं।
बिहार की सुपर-30 कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार
गौरतलब है कि बिहार की सुपर-30 कोचिंग के संस्थापक आनंद कुमार का जन्म पटना में हुआ और इनके पिता डाक विभाग में चिठ्ठी छांटने का काम करते थे। बंधी हुई आमदनी की वजह से चलने वाले घऱ में जन्मे इस बच्चे को बहुत जल्द आर्थिक अभाव और महंगी पढ़ाई का मोल समझ आ गया था। सरकारी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने वाले आनंद कुमार को शुरू से ही गणित में काफी रूचि थी। उन्होंने भी वैज्ञानिक और इंजीनियर बनने का सपना देखा था, ग्रेजुएशन के दौरान उन्होंने नंबर थ्योरी में पेपर सब्मिट किए जो मैथेमेटिकल स्पेक्ट्रम और मैथेमेटिकल गैजेट में पब्लिश हुए।
क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय
इसके बाद उन्हें क्रैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए बुलावा भी आया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उनका सपना पूरा नहीं हो सका, बस इसी दुख को उन्होंने अपनी ताकत बनाकर प्रण किया कि वो देश के गरीब बच्चों का भविष्य संवारेंगे।
आनंद की प्रगति में पैसा बना बाधा
23 अगस्त, 1994 को हार्ट अटैक के चलते पिता का निधन हो गया लेकिन इसी बीच 23 अगस्त, 1994 को हार्ट अटैक के चलते पिता का निधन हो गया, उनके पिता डाक विभाग में थे, इसलिए उन्हें अपने पिता की जगह डाक विभाग में नौकरी मिल रही थी लेकिन उन्होंने इस नौकरी को ना करने का फैसला किया। पिता के निधन के बाद पूरा घर गरीबी की चपेट में आ गया, घर चलाने के लिए आनंद की मां ने घर में पापड़ बनाना शुरू किया जिसे कि आनंद और उनके भाई घर-घर बांटा करते थे।
'रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स' नाम से कोचिंग खोली
इसके कुछ समय बाद हालात को सुधारने के लिए आनंद ने अपने ही घर में 'रामानुजम स्कूल ऑफ मैथेमेटिक्स' नाम से कोचिंग खोली, जिसमें शुरू-शुरू में दो विद्यार्थी आए, जिनसे आनंद ने 500 रूपए फीस ली थी, इसी दौरान उनके पास एक ऐसा छात्र आया, जिसने कहा कि वह ट्यूशन तो पढ़ना चाहता है लेकिन उसके पास पैसे नहीं हैं, उस छात्र में आनंद को अपनी छवि दिखी और उसके बाद से वो उसे पढ़ाने में जुट गए, दिन-रात की मेहनत के चलते वो छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ।
2002 में हुई सुपर 30 की स्थापना
बस यहीं से उनके दिमाग में सुपर 30 का ख्याल आया और उन्होंने 2002 में सुपर 30 की स्थापना की, जिसमें उन गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता है, जो कि आर्थिक तंगी की वजह से आईआईटी जैसे संस्थान में जाने की तैयारी नहीं कर पाते हैं। संस्थान का खर्चा आनंद खुद अपने पैसों से चलाते हैं और इस बारे में वह कहते हैं कि सुपर 30 को बड़ा करने के लिए पैसे नहीं चाहिए, हां आपके सपने जरूर चाहिए।