शिवसेना की भाजपा को चेतावनी, हमे अन्य विकल्प तलाशने पर मजबूर ना करें
नई दिल्ली। महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर भाजपा-शिवसेना में जारी तकरार खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ जहां शिवसेना प्रदेश में मुख्यमंत्री का पद अपने पास रखना चाहती है तो दूसरी तरफ भाजपा इस बात पर अडिग है कि वह प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी है, लिहाजा मुख्यमंत्री का पद भाजपा के पास ही होगा। इस बीच शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने भाजपा को चेतावनी दी है कि भाजपा हमे सरकार गठन के अन्य विकल्प तलाशने पर मजबूर ना करें। राउत ने कहा कि राजनीति में कोई भी संत नहीं होता है।
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भाजपा सबसे बड़ी पार्टी
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं। यहां 21 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे। 24 अक्टूबर को नतीजे सामने आने के बाद किसी भी दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो सका था। हालांकि भाजपा को कुल 105 सीटों पर जीत मिली थी और वह सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई थी। जबकि शिवसेना को कुल 56 सीटों पर जीत मिली थी। दरअसल शिवसेना चाहती है कि प्रदेश में ढाई साल तक शिवसेना का मुख्यमंत्री हो और ढाई साल तक भाजपा का।
कयासों का दौर जारी
लेकिन जिस तरह से भाजपा और शिवसेना के बीच तकरार जारी है, ऐसे में संजय राउत के बयान के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन को शिवसेना का साथ मिल सकता है। हालांकि अभी इस बाबत शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है। लेकिन संजय राउत मीडिया में बयान देकर लगातार भाजपा पर दबाव बना रहे हैं। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में राउत ने कहा कि हम भाजपा के साथ गठबंधन में विश्वास रखते हैं, लेकिन भाजपा हमे सरकार गठन के अन्य विकल्प तलाशने के लिए मजबूर ना करे।
50-50 फॉर्मूले पर अड़ी शिवसेना
गुरुवार को जब विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा हुई तो ठीक उसके बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा को 50-50 का पॉवर फॉर्मूला याद दिलाया था। जानकारी के अनुसार शनिवार को उद्धव ठाकरे ने अपने विधायकों को साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी ढाई वर्ष तक मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहती है। लेकिन अगर भाजपा इसके लिए राजी नहीं होती है तो अन्य विकल्पों पर चर्चा की जाएगी। लेकिन भाजपा के शीर्ष सूत्र का कहना है कि ठाकरे का यह प्रस्ताव पार्टी को कतई स्वीकार नहीं है। ऐसे में 50-50 का फॉर्मूला कतई स्वीकार नहीं है। यह तभी संभव था अगर भाजपा और शिवसेना दोनों ने बराबर सीटें जीती होती। लेकिन भाजपा को शिवसेना से दोगुनी सीटें मिली हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री का पद देने का सवाल ही नहीं उठता है।
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