अखिलेश नहीं, लेकिन शिवपाल ने किया इस मुद्दे पर पीएम मोदी का समर्थन
अखिलेश नहीं, लेकिन शिवपाल ने किया इस मुद्दे पर पीएम मोदी का समर्थन
नई दिल्ली। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि वो अब समाजवादी पार्टी का हिस्सा नहीं बनेंगे। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को महज 5 सीटें मिलने और गठबंधन से बसपा सुप्रीमो मायावती के अलग होने के बाद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव इस कोशिश में थे कि शिवपाल और अखिलेश फिर से साथ आ जाएं। गुरुवार को यूपी के मैनपुरी पहुंचे शिवपाल यादव ने कहा कि समाजवादी पार्टी अपने कर्मों की वजह से लोकसभा चुनाव हारी है और उनकी पार्टी किसी भी कीमत पर सपा में विलय नहीं करेगी। इस दौरान शिवपाल यादव ने उस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया, जिसे लेकर अखिलेश यादव असहमत हैं।
मोदी के प्रस्ताव पर बोले शिवपाल, मैं इसका पक्षधर
मैनुपरी में मीडिया से बात करते हुए शिवपाल यादव ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए कहा, 'देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ ही होने चाहिएं। मैं इसका पक्षधर हूं, लेकिन इसपर पूरी तरह विचार-विमर्थ होना चाहिए। हालांकि मेरी राय है कि विधानसभा और लोकसभा के अलावा बाकी अन्य चुनाव अलग-अलग हो होने चाहिएं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होंगे तो देश का भी फायदा होगा।' आपको बता दें कि वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर बुधवार को संसद भवन में सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में समाजवादी पार्टी की तरफ से कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ था।
ये भी पढ़ें- लोकसभा स्पीकर को मिलती है इतनी सैलरी और साथ में ये सुविधाएं
'सपा अपने कर्मों की वजह से हारी'
शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा, 'समाजवादी पार्टी के कर्म अगर सही होते तो उसका इतना बुरा हाल नहीं होता। सपा अपने कर्मों की वजह से हारी है। मुझे बताने की जरूरत नहीं है कि समाजवादी पार्टी क्यों हारी, उस पार्टी के लोग जानते हैं कि हार की वजह क्या है। हमारी पार्टी अब 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई है। हम जल्दी ही अपनी पार्टी का सदस्यता अभियान भी शुरू करने वाले हैं। सपा में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के विलय का सवाल ही नहीं उठता है। भविष्य में सपा से कोई गठबंधन होगा या नहीं, इसका फैसला हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता करेंगे। हमारे ऊपर नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के आशीर्वाद का हाथ है।'
मुलायम की कोशिशों को झटका
गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली हार के बाद से ही अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच सुलह कराने की कोशिशों में जुटे हुए थे। परिवार में सुलह कराने के लिए मुलायम सिंह यादव ने दिल्ली से लेकर अपने पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के सैफई तक में बेटे अखिलेश यादव और भाई शिवपाल यादव को अलग-अलग बिठाकर कई दौर की बैठकें भी की। दरअसल, मुलायम सिंह का मानना है कि शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अलग चुनाव लड़ने की वजह से यूपी में यादव वोटों का विभाजन हुआ और जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ा।
सपा के लिए क्या है शिवपाल की अहमियत
मुलायम सिंह यादव इसलिए भी सपा में शिवपाल की वापसी चाहते हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी अपने 3 मजबूत गढ़ों में हारी है। इनमें से एक कन्नौज लोकसभा सीट भी है, जहां डिंपल यादव को भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रत पाठक ने 12353 वोटों से हराया है। सुब्रत पाठक को 563087 और डिंपल यादव को 550734 वोट मिले। इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव ने इसी सीट पर सुब्रत पाठक को 19907 वोटों के अंतर से हराया था और इस जीत में सबसे बड़ा योगदान अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव का था। दरअसल कन्नौज सीट पर हर चुनाव में मैनेजमेंट संभालने की जिम्मेदारी शिवपाल यादव को ही मिलती थी। शिवपाल यादव ना केवल जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं से लगातार संवाद बनाए रखते थे, बल्कि उनकी समस्याओं को सुनकर उनका तुरंत समाधान भी कराते थे। 2014 में भी शिवपाल यादव ने ही कन्नौज सीट पर मैनेजमेंट संभाला था और इसी की बदौलत मोदी लहर के बावजूद डिंपल यादव ने यहां जीत दर्ज की।
ये भी पढ़ें- कौन हैं BJP के वो 3 दिग्गज नेता, जिन्हें संसदीय कार्यकारिणी में नहीं मिली जगह