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शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश यादव की साइकिल पर बैठने से इसलिए किया इनकार

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बेंगलुरू। चाचा शिवपाल यादव के लिए खिड़की, दरवाजा और रोशनदान खोलकर बैठे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल यादव ने अपना पता बदलने से फिलहाल इनकार कर दिया है, जिससे समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ शिवपाल यादव के सुलह होने की सारी अटकलों पर विराम लग गया है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी नामक अपनी नई ब्रांच खोल चुके शिवपाल ने यह भी कहा है कि 2020 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सपा से किसी तरह का कोई समझौता नहीं करेगी।

Shivpal

हालांकि भतीजे अखिलेश यादव को चाचा शिवपाल यादव से ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2019 में बुआ-बबुआ गठबंधन में ठगे से रह गए अखिलेश यादव को आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के लिए अपने पारंपरिक और वोटों की दरकार थी, जो माना जाता है कि शिवपाल यादव द्वारा नई पार्टी बनाने के बाद छिटककर अलग हो गए थे, जिसका नतीजा सपा को लोकसभा चुनाव में भोगना पड़ा था।

शिवपाल यादव ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन के लिए रास्ते खुले रखने के संकेत दिए है्ं, लेकिन समाजवादी पार्टी से किनारा कर लिया है। उनका कहना है कि सिर्फ समान विचारधारा वाली पार्टी से ही संयुक्त प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का मेल संभव है और ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव की मौजूदा समाजवादी पार्टी को शिवपाल यादव उक्त कैडर की पार्टी तक नहीं मानते हैं, जिससे उनकी पार्टी गठबंधन कर सके। शिवपाल की इस प्रतिक्रिया पर सपा सुप्रीमो का बयान आना अभी बाकी है, लेकिन सपा के लिए यह अच्छा संकेत तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है।

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इसी दौरान शिवपाल ने समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि सपा को कमजोर करने और तोड़ने के पीछे रामगोपाल यादव का षड्यंत्र था। सपा के फूट के लिए राम गोपाल यादव को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि सपा परिवार में एकता की पूरी गुंजाइश है, लेकिन कुछ लोग साजिश रचते हैं और वो नहीं चाहते कि परिवार और पार्टी में एकता रहे। उनके निशाने पर चचेरे भाई राम गोपाल यादव और अखिलेश यादव दोनों थे।

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गौरतलब है अखिलेश यादव ने चाचा राम गोपाल यादव के सहयोग से ही तत्कालीन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को सपा अध्यक्ष पद से हटाकर खुद सपा मुखिया बन बैठे थे। लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित किए गए समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधियों के राष्ट्रीय अधिवेशन में रामगोपाल यादव ने नेताजी मुलायम सिंह को पार्टी का मार्गदर्शक और उनकी जगह अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित किया था।

यही नहीं, इसी समय शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद और अमर सिंह को पार्टी से हटाने का भी प्रस्ताव भी ध्वनि मत से पास किया गया था, जिसके बाद मुलायम ने राम गोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी ने निष्कासित कर दिया था, जिसे कुछ घंटे में ही रद्द कर दिया गया।

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दरअसल, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी की करारी हार के बाद चाचा शिवपाल यादव से सुलह करने को राजी हो गए थे। उन्होंने बाकायदा बयान जारी कर कहा था कि चाचा शिवपाल यादव के लिए पार्टी का दरवाजा हमेशा के लिए खुला है। प्रस्ताव था कि अगर शिवपाल यादव अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा के साथ विलय करने को राजी हो जाएं, तब विधानसभा सदस्य के रूप में उन्हें अयोग्य करार दिए जाने की मांग वाली अर्जी वापस लिए जाने पर सपा विचार करेगी।

मालूम हो, वरिष्ठ सपा नेता और नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी ने 13 सितंबर को विधानसभा अध्यक्ष को शिवपाल के खिलाफ अर्जी दी थी। शिवपाल सदन में सपा के विधायक हैं, फिर भी अपनी अलग पार्टी चला रहे हैं और अगर सपा ने शिवपाल के खिलाफ अर्जी विधानसभा अध्यक्ष के पास भेज दी गई, तो शिवपाल की विधानसभा की सदस्यता खतरे में आ जाएगी।

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इससे पहले, चाचा शिवपाल यादव को मनाने को कोशिश करते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा था कि सपा के दरवाजे सबके लिए खुले हैं, परिवार एक है, कोई अलग नहीं है। हमारे ऊपर आरोप लगते हैं, लेकिन परिवार में कोई फूट नहीं है। यहां पर लोकतंत्र है। हमारा परिवार अलग नहीं है, जो जिस विचारधारा में जाना चाहे जाए और जो वापस आना चाहता है आए। यहां सबके लिए दरवाजे खुले हैं, जो आना चाहे, उसे शामिल कर लेंगे।

लेकिन शिवपाल यादव ने भतीजे का ऑफर को ठुकराकर सपा में सुलह की उन कवायदों को सिरे से खारिज करके साफ कर दिया है कि वो किसी भी कीमत पर सपा में वापस नहीं लौटेंगे और न ही सपा से गठबंधन कर चुनाव में उतरेंगे, क्योंकि उनका मानना है कि सपा और प्रसपालो की विचारधारा ही एक समान नहीं है।

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शिवपाल यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े भाई मुलायम सिंह से अपने संबंधों के बारे में खुल कर कहा कि वह पहले भी नेता जी के साथ थे और आज भी साथ हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए लंबे समय तक मुलायम सिंह यादव के साथ काम किया और काफी संघर्ष के बाद पार्टी खड़ी की थी, लेकिन यह नहीं सोचा था कि पार्टी में आज यह हाल हो जाएगा।

जनवरी, वर्ष 2017 में जब अखिलेश यादव की बतौर सपा प्रमख के रूप में ताजपोशी हुई थी उस समय शिवपाल यादव के पास यूपी प्रदेश अध्यक्ष की कमान थी, लेकिन सपा मुखिया बनने के बाद ही शिवपाल यादव से यूपी की कमान छीन ली गई थी, जिसके कुछ महीने बाद शिवपाल ने अपनी पार्टी बनाने की घोषणा कर दी थी।

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उल्लेखनीय वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में तीन महीने पुरानी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने कुल 120 कैंडीडेट उतारे थे, जिसमें 50 केवल उत्तर प्रदेश में उतारे थे। हालांकि चुनाव परिणाम आया तो प्रसपा का कोई भी कैंडीडेट चुनाव में जीत नहीं दर्ज कर सका, लेकिन प्रसपा के मुखिया शिवपाल सिंह यादव और उनके कैंडीडेट इसलिए खुश थे कि फिरोजाबाद जैसी सीट में सपा को हराने में प्रसपा ने बड़ा योगदान किया।

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फिरोजाबाद सीट में सपा की हार प्रसपा के कारण हुई थी, क्योंकि फिरोजाबाद में सपा जितने वोट से हारी थी उसके तीन गुना वोट प्रसपा के खाते में आए थे। यही हाल सुल्तानपुर में भी देखने को मिला जहां बसपा प्रत्याशी की हार और प्रसपा को मिले वोटों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं था। प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव फिरोजाबाद से सीट निकालने में भले ही सफल नहीं हुए, लेकिन वो इस बात से आश्वस्त थे कि तीन महीने पुरानी उनकी पार्टी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था।

यह भी पढ़ें-अखिलेश यादव के, 'क्या भाई चाचा?' को 'हां भाई भतीजा' बोल पाएंगे शिवपाल यादव

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English summary
Samajwadi chief Akhilesh yadav tried to reconciliation of uncle Shivpal yadav after failure of SP-BSP alliance in General election 2019 but after denying of shivpal yadav all speculation end return of shivpal in sp.
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