भगवा ध्वज पर शिवाजी की मुहर और स्टेज पर वीर सावरकर, क्या MNS ने शिवसेना के लिए खतरे की घंटी बजा दी?
नई दिल्ली- करीब डेढ़ दशक से मराठी मानुष की राजनीति कर रहे राज ठाकरे ने गुरुवार को न सिर्फ अपनी पार्टी का चोला बदल लिया, बल्कि अपनी विचारधारा में परिवर्तन के भी संकेत दिए हैं। शिवसेना के संस्थापक और उद्धव ठाकरे के पिता और अपने चाचा बाल ठाकरे की 94वीं जयंती के मौके पर उन्होंने अपने सियासी गुरु की राह पर चलते हुए हिंदुत्व की विचारधारा पर ही आगे बढ़ने की ओर इशारा किया है। राज ठाकरे पार्टी में यह बदलाव तब लाया है, जब शिवसेना पर उसकी विपक्षी बीजेपी सत्ता के लिए बाल ठाकरे को धोखा देने और हिंदुत्व से मुंह मोड़ने का आरोप लगा रही है। माना जा रहा है कि राज ठाकरे को लगता है कि वह शिवसेना की नीतियों में आए बदलाव का फायदा अपनी पार्टी के पक्ष में उठा सकते हैं। सवाल उठता है कि कहीं मनसे का ये कदम शिवसेना के लिए खतरे की घंटी तो नहीं है?
बाल ठाकरे की जयंती पर भगवा हुई मनसे
महाराष्ट्र की 14 साल पुरानी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गुरुवार को रंग-रूप बदल गया। 2006 में शिवसेना से निकलकर अलग पार्टी बनाने वाले उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई ने अपने चाचा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पिता बालासाहेब की जयंती के मौके पर अपनी पार्टी के झंडे को पूरी तरह भगवे रंग में तब्दील कर लिया है।आने वाले वक्त के लिए महाराष्ट्र की राजनीति में यह एक बहुत बड़े बदलाव की आहट मानी जा सकती है। मनसे ने सिर्फ अपनी पार्टी के ध्वज का रंग ही नहीं बदला है, उसपर मराठा सम्राट शिवाजी महाराज के प्रतीक चिन्ह (मुहर) को भी अपनी पार्टी के प्रतीक के तौर पर उकेरा है। बड़ा सवाल है कि इमेज मेकओवर की राज की यह कोशिश क्या महाराष्ट्र की राजनीति का भविष्य बदलने जा रही है?
मराठी मानुष से हिंदुत्व की विचारधारा की ओर!
अब तक शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे और उनकी पार्टी को प्रदेश में हिंदुत्व की विचारधारा का प्रतीक माना जाता था। लेकिन, जब से राज ठाकरे अपने चाचा के परिवार और पार्टी से अलग हुए थे उन्होंने आक्रामक राजनीति और मराठी मानुष को ही अपनी राजनीति का हथियार बनाया था और खुद को घोर हिंदूत्व की विचारधारा से अलग रखने की कोशिश की थी। यही वजह है कि तब मनसे के झंडे पर नीला, हरा और केसरिया बैंड होता था, जिसपर ट्रेन इंजन नजर आता था। लेकिन, 14 वर्षों की राजनीति के बावजूद उन्हें कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई। मौजूदा समय में प्रदेश की राजनीति में राज ठाकरे की पार्टी की ताकत का आकलन करें तो उसके पास 289 विधायकों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में महज एक विधायक है। लेकिन, अब राज ठाकरे की पार्टी ने सिर्फ अपना रंग ही नहीं बदला, उसने अपनी विचारधारा बदलकर हिंदुत्व की विचारधारा की ओर ले जाना का भी संकेत दे रही है। गुरुवार को मुंबई के गोरेगांव इलाके में हुई पार्टी के एक कार्यक्रम में शिवाजी महाराज की प्रतिमा के बगल में डॉक्टर अंबेडकर, सावित्रिबाई फुले और राज के दादा प्रबोधंकर ठाकरे के अलावा हिंदुत्व की विचारधारा के प्रतीक माने जाने वाले विनायक वीर दामोदर सावरकर की भी तस्वीर लगाई गई।
शिवसेना के लिए खतरे घंटी!
शिवाजी महाराज, विनायक दामोदर सावरकर और भगवा झंडा पर महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना अबतक अपना एकाधिकार मानती थी। लेकिन, जब से उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाया है, उस पर हिंदुत्व की विचारधारा को ठंडे बस्ते में डालने के आरोप लग रहे हैं। कई विवादास्पद मुद्दों पर पिछले कुछ समय में उसने ऐसी लाइन भी ली है, जिससे उसके विरोधियों को उसपर अपनी मूल विचारधारा से दूर जाने के आरोप लगाने का मौका मिला है। खासकर वीर सावरकर के मुद्दे पर कांग्रेस की वजह से उसकी स्थिति बहुत ही कमजोर नजर आई है। ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि शिवसेना की सोच में आए मूलभूत बदलाव को ही राज ठाकरे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिशों में जुट गए हैं। उनकी पार्टी की ओर से कहा भी जा रहा है कि इससे महाराष्ट्र में एक नई ऊर्जा और नया मोड़ आ गया है। कहीं न कहीं खतरे का अहसास शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भी है, जो इसकी काट में अयोध्या की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, ताकि उनपर सत्ता के लिए हिंदुत्व विरोधी विचारधारा वालों के सामने घुटने टेकने के आरोप लगाने वालों का मुंह बंद हो सके।
बेटे अमित ठाकरे की भी कराई राजनीति में एंट्री
राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को राजनीति में एंट्री कराने के लिए भी अपने चाचा की जयंती का ही मौका चुना है। इस मौके पर अमित की मां शर्मिला ठाकरे ने काफी भावुक होकर कहा है कि उन्हें सिर्फ नेता बनकर नहीं रहना चाहिए, बल्कि लोगों के हित के लिए काम करना चाहिए। अमित की राजनीति में यह एंट्री उनके चचेरे भाई और शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे के सियासत में कदम रखने के करीब एक दशक बाद हुई है। आदित्य को खुद उनके दादा ही राजनीति में लेकर आए थे। माना जा रहा है कि शुरुआत में अमित भी एमएनएस की यूथ विंग की ही अगुवाई करेंगे।
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