महाराष्ट्र में लगातार सिकुड़ते जनाधार के चलते बीजेपी से अलग हुई शिवसेना!
बेंगलुरू। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी लगातार बेहतर कर रही है और चुनाव दर चुनाव बीजेपी के जनाधार में उत्तरोत्तर सुधार होता आ रहा है जबकि शिवसेना का मराठा वोटरों पर असर कम हुआ है। पिछले 30 वर्षो के आंकड़ों पर गौर करने पर पता चलता है कि महाराष्ट्र में वर्ष 1966 चुनाव में बीजेपी का जनाधार नगण्य था। वर्ष 1990 में पहली बार बीजेपी और शिवेसना में गठबंधन हुआ। बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर लड़ी शिवसेना 183 और बीजेपी 104 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था।
वर्ष 1990 विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 में से 42 सीट जीत गई और 183 सीटों पर लड़कर शिवसेना महज 52 सीट जीत सकी थी। बीजेपी ने पहले ही चुनाव में शिवसेना को सीटों पर जीत के औसत में पछाड़ दिया था और बीजेपी की बढ़त का क्रम जो वर्ष 1990 से शुरू हुआ वह क्रम 2019 तक अब तक जारी है, जो शिवसेना की डर का बड़ा कारण बना है।
एक मराठी दल का जनाधार मराठा लैंड यानी महाराष्ट्र में सिकुड़ना शिवसेना के लिए अस्तित्व का सवाल बन चुका है। यही कारण था कि वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी से अलग रास्ता चुना और अकेले दम पर चुनाव में उतरी, लेकिन शिवसेना को इसका नुकसान हुआ और 284 सीटों पर लड़कर भी शिवसेना महज 62 सीटों पर सिकुड़ गई।
वहीं, बीजेपी ने 260 सीटों पर लड़कर 122 सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की थी। शिवसेना भले ही चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हो गई, लेकिन पूरे पांच वर्ष महाराष्ट्र सरकार की पार्टनर रहते हुए भी लगातार बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी करती रही।
मोदी लहर का ही असर था कि शिवसेना की हिम्मत नहीं हुई कि वह बीजेपी से अलग होकर वर्ष 2019 विधानसभा चुनाव में उतरे, लेकिन 2019 विधानसभा चुनाव में साथ होकर भी जब शिवसेना की सीटों की संख्या में गिरावट दर्ज हुई तो शिवसेना का माथा ठनक गया, क्योंकि एनडीए शीट शेयरिंग फार्मूले के तहत 124 सीटों पर लड़ी शिवसेना महज 56 सीटों पर सिमट चुकी थी।
हालांकि इस बार बीजेपी को भी नुकसान हुआ था, जिसे 162 सीटों पर लड़कर महज 105 सीटों पर जीत मिली थी। बीजेपी का ग्राफ गिरा तो शिवसेना को जैसे मन मांगी मुराद मिल गई, क्योंकि बीजेपी का ग्राफ नीचे गिरने के बाद से ही शिवसेना ने तय कर लिया था कि अब वह बीजेपी के साथ गठबंधन करके चुनाव नहीं लड़ेगी। इसीलिए शिवसेना जबरन 50-50 फार्मूले का राग अलाप दिया, जिसे बीजेपी ने सिरे से खारिज कर दिया।
शिवसेना के पास यही मौका था कि वह बीजेपी के महाराष्ट्र में बढ़ते जनाधार पर ब्रेक लगा पाए, क्योंकि निकट भविष्य में शिवसेना को बड़ा झटका मिलने का एहसास हो चुका है। महाराष्ट्र की क्षेत्रिय पार्टी शिवसेना का जनाधार प्रखर हिंदुत्व और मराठी अस्मिता है, लेकिन महाराष्ट्र में लगातार बीजेपी का बढ़ता जनाधार उसके अस्तित्व को मिटाती जा रहीं थी।
चूंकि बीजेपी और शिवसेना की राजनीतिक विचारधारा कमोबेश एक है इसलिए शिवसेना चाहकर भी क्षेत्रीय मुद्दों को उभार नहीं पा रही थी। शिवसेना को पता चल चुका है कि बीजेपी के साथ बनी रहेगी तो भविष्य में उसका अलग अस्तित्व मिटना तय है। यह एहसास शिवसेना को वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव नतीजों से हो गया था तभी तो एनडीए गठबंधन में रहते हुए भी शिवसेना महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ लगातार विपक्ष की तरह रवैया अपनाती आई थी।
गौरतलब है पिछले 2014 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना अकेले-अकेले चुनाव में उतरे थे और बीजेपी ने 260 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और उसके 122 उम्मीदवार ही चुनाव जीते थे और 260 सीटों पर बीजेपी की जीत औसत महज 47 फीसदी था। अगर 2019 विधानसभा चुनाव बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग लड़ते तो बीजेपी अकेले ही बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाती।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में बीजेपी ने कुल 260 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और अगर बीजेपी 2019 विधानसभा चुनाव में भी 260 सीटों पर उम्मीदवार उतारती तो मौजूदा 65 फीसदी जीत के औसत के लिहाज से बीजेपी 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 169 सीट आराम से जीत सकती थी।
ध्यान दीजिए, 2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने कुल 283 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और शिवसेना की जीत का औसत करीब 22 फीसदी रहा था और उसके सिर्फ 62 उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इस बार एनडीए सहयोगी शिवसेना के 124 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन उसके 56 उम्मीदवार चुनकर आए। बीजेपी के साथ गठबंधन में उतरी शिवसेना को बीजेपी के साथ का फायदा मिला।
पिछले विधानसभा की तुलना में सीटों पर उसकी जीत के औसत में जर्बदस्त इजाफा हुआ जबकि पिछले चुनाव में शिवसेना का सीटों पर जीत का औसत महज 22 फीसदी था। शिवसेना को यह बात तब अधिक समझ में आती जब वह 2019 विधानसभा चुनाव में भी अकेले चुनाव मैदान में उतरती, तो संभव है शिवसेना की सीटों की संख्या घटकर 40-45 सीट होती।
दोनों दल वर्ष 1995 में आधिकारिक पार्टनर के रूप में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मैदान में उतरी। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए शीट शेयरिंग फार्मूले के तहत 1995 विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 सीट और बीजेपी 105 सीट पर मैदान में उतरी। शिवसेना ने 183 सीटों पर लड़कर 73 सीटों पर विजयी रही थी जबकि बीजेपी 105 सीटों पर लड़कर 52 सीटों पर मैदान मार लिया था, जो वर्ष 1990 की तुलना में 10 सीटें अधिक थी।
बीजेपी बिना न नुकर के मनोहर जोशी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार में शामिल हुई। मनोहर जोशी के नेतृत्व में बनी महाराष्ट्र की पहली गैर कांग्रेस गठबंधन सरकार में बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन सरकार पूरे पांच वर्ष तक बिना किसी अवरोध के चली।
उल्लेखनीय है शिवसेना ने वर्ष 1990 से पूर्व महाराष्ट्र नगर निगम चुनावों में व्यस्त रहती थी और एनडीए शीट शेयरिंग फार्मूले के बाद पहली बार उसने विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई थी। वर्ष 1990 में बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर विधानसभा चुनाव लड़ी शिवसेना को एनडीए शीट शेयरिंग के तहत 183 सीट और बीजेपी को 104 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी थी।
इस चुनाव में बीजेपी को 42 और शिवसेना को 52 सीटें मिली थीं। बीजपी शिवसेना की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन शिवसेना ने 183 सीटों पर लड़कर महज 52 सीट जीत पाई जबकि बीजेपी 104 सीटों पर लड़कर 42 सीटों जीत दर्ज की थी।
इस चुनाव मे बीजेपी की जीत का औसत शिवसेना से बेहतर था, लेकिन फिर भी शिवसेना ने बीजेपी की जीत को छोटा करते हुए खुद को बीजेपी को जबरन बड़ा भाई घोषित कर लिया जबकि वर्ष 1990 विधानसभा चुनाव में भी सीटों पर शिवसेना की जीत का औसत बीजेपी की तुलना में खराब थी।
बीजेपी 104 सीटों पर लड़कर 42 सीटों पर विजयी रही थी। इस चुनाव में बीजेपी की जीत का औसत करीब 42 फीसदी थी जबकि शिवसेना 183 सीटों पर लड़कर 52 सीटें जीती थी और उसकी जीत का औसत बीजेपी से पूरे 10 फीसदी कम थी यानी कि महज 32 फीसदी थी।
वर्ष 1995 में दोनों दलों ने एक साथ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे। इस बार एनडीए सीट शेयरिंग फार्मूले के तहत बीजेपी को एक सीट ज्यादा मिली, जिससे बीजेपी 105 और शिवसेना खुद 183 सीट पर चुनाव लड़ी। चुनाव नतीजे आए तो शिवसेना के होश फाख्ता थे। बीजेपी और शिवसेना ने वर्ष 1995 विधानसभा चुनाव में मिलकर पहली बार महाराष्ट्र में सरकार जरूर बनाई, लेकिन शिवसेना को उसके बड़े भाई होने का मुगालता दूर नहीं हुआ।
माना जा रहा है कि वर्ष 1995 में चला रहा आ रहा शिवसेना का यह भ्रम ही महाराष्ट्र में दोनों दलों के बीच का मुख्य झगड़ा है। हालांकि वर्ष 1999 के विधानसभा चुनाव में एनडीए शीट शेयरिंग के तहत बीजेपी को 117 सीट और शिवसेना 161 सीटों पर चुनाव लड़ाया गया था। बीजेपी का जनाधार महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ रहा था और उसने 1999 विधानसभा चुनाव में 117 में से 56 सीट निकालने में कामयाब रही जबकि शिवेसना ने 69 सीटों पर सिमट गई थी।
यहां एक बात साफ हो गई थी कि बीजेपी का तेजी से उभार की ओर बढ़ रही थी और शिवसेना तेजी से ह्रास हो रहा था। वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 163 सीटों पर और बीजेपी 111 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया गया। इस चुनाव में भी शिवसेना को और बड़ा झटका लगा और 163 सीटों पर लड़कर वह महज 62 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी और बीजेपी को 54 सीटों पर जीत दर्ज की। एक ओर जहां बीजेपी ने तेजी पकड़ी हुई थी दूसरी ओर शिवेसना महाराष्ट्र में पिछड़ चुकी थी।
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