ओ मुझे छोड़के जब तुम जाओगे, बड़ा पछताओगे, बड़ा पछताओगे...
बेंगलुरू। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 में एनडीए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ी शिवसेना की हालत ने न माया मिली न राम वाली कहावत का चरितार्थ कर दिया है। महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच राजनीतिक जंग सीएम की मैजिक कुर्सी को लेकर शुरू हुआ। 50-50 फार्मूले को लेकर बीजेपी को झुकाने की कोशिश कर रही थी, बीजेपी अंत तक उससे इनकार करती रही। दवाब की राजनीति में माहिर रही पार्टी यही वजह है कि अब पछता रही है।
बीजेपी और शिवसेना के बीच शुरू हुई शुरूआती रस्साकसी को देखकर लगा नहीं था कि बात इतनी बिगड़ जाएगी, क्योंकि दोनों दलों के बीच पिछले वर्ष 30 वर्षों से आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी चलती आ रही थी, लेकिन इस बार पुत्रमोह में फंसे शिवसेना प्रमुख उद्धव इतनी दूर निकल गए कि उनके हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता ही छिटक गई। शायद यही कारण है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के बाद शिवसेना पछता रही है।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा कर दिया। उद्धव ठाकरे कांग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील कपिल सिब्बल की मदद से राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुके हैं।
आरोप है कि राज्यपाल ने शिवसेना को सरकार गठन के लिए कम समय दिया जबकि बीजेपी को सरकार गठन के लिए अधिक वक्त मिला। दिलचस्प बात यह है कि एनसीपी को राज्यपाल द्वारा उतना ही वक्त दिया था, जिसकी मदद से शिवसेना महाराष्ट्र में सरकार बनाने का सपना बुन रही थी।
हैरत वाली बात यह है कि शिवसेना और एनसीपी के महाराष्ट्र में सरकार गठन में फेल होने के पीछे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी थी। सोनिया गांधी परस्पर विरोधी पार्टी शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर असमंजस में थी, क्योंकि पहले ही राजनीतिक जमीन खो चुकी कांग्रेस पार्टी को सत्ता में वापसी की कुंजी दिखती है।
तो वो है सेकुलरिज्म जबकि शिवसेना की पहचान कट्टर हिंदूवादी पार्टी के रूप में होती है। सोनिया गांधी का डर स्वाभाविक था। शायद यही कारण था कि वो शिवसेना की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में शामिल होने से अंत तक कतराती रहीं।
एनसीपी नेता अजीत पवार ने बाकायदा जारी एक बयान में इसको स्वीकार करते हुए कह चुके हैं कि महाराष्ट्र में एनसीपी सरकार गठन का प्रस्ताव राज्यपाल के सामने इसलिए पेश नहीं कर पाई, क्योंकि कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी गठबंधन में शामिल होने को लेकर कंफ्यूज हैं। शिवसेना भी अच्छी तरह से जानती है कि कांग्रेस और शिवसेना का एक नाव पर सवारी असंभव है।
लेकिन बीजेपी से रार ठान चुके शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की जिद थी कि वो बीजेपी के बिना भी महाराष्ट्र में सरकार गठन करके दिखा देंगे। यह अलग बात है कि उद्धव ठाकरे चारो खाने चित्त हो गए और उन्हें सत्ता का न ही आम खाने का मिला और न हीं ओढ़ने का लबादा ही मिला।
ऐसा माना जा रहा है कि शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे सत्ता को नजदीक से ज्यादा देखकर पछता रहे हैं और उनके पछतावे की बानगी उनके हालिया बयान से लगाया जा सकता है जब उद्धव ठाकरे कहते पाए जाते है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश के बाद भी बीजेपी उन्हें संपर्क साधने की कोशिश कर रही है।
जबकि सच्चाई यह है कि बीजेपी ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से सरकार गठन करने से इनकार के बाद बैठकर चुपचाप महाराष्ट्र का तमाशा देखने में व्यस्त थी, क्योंकि बीजेपी को पहले ही आभास था कि कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन में शिवसेना फिट नहीं होगी और वही हुआ भी।
उल्लेखनीय है बीजेपी और शिवसेना पिछले तीन दशकों से साथ-साथ महाराष्ट्र में चुनाव लड़ती आई हैं और पिछले तीन वर्षों में दोनों दलों से महाराष्ट्र में एक-एक मुख्यमंत्री ने पूरे पांच वर्ष तक शासन किए है। वर्ष 1995 में शिवसेना और बीजेपी ने पहली बार महाराष्ट्र की सत्ता में शामिल हुईं और चुनाव नतीजों में नंबर वन पार्टी रही शिवसेना के उम्मीदवार को मुख्यमंत्री चुना गया।
वर्ष 1995 में शिवसेना कैडर से मुख्यमंत्री बने मनोहर जोशी जब मुख्यमंत्री बनाए गए तो बीजेपी से गोपीनाथ मुंडे को डिप्टी सीएम बनाया गया था। वर्ष 1995 से 1999 तक शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की सरकार बिना रोक टोक और बाधा के चली, लेकिन वर्ष 2014 में बीजेपी नंबर पार्टी बनकर उभरी तो शिवसेना वह बड़प्पन नहीं दिखा पाई।
वर्ष 2014 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना दोनों अलग-अलग चुनाव में उतरी थीं। बीजेपी ने अकेले दम पर 122 सीट जीतकर महाराष्ट्र में नंबर वन पार्टी के रूप में उभरी जबकि शिवसेना को 284 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर भी महज 62 उम्मीदवारों को विधानसभा में पहुंचा सकी थी। बीजेपी से अलग होकर शिवसेना को अपनी हैसियत का अंदाजा लग चुका था।
शायद यही कारण था कि शिवसेना ने एक बार बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र सरकार में शामिल हुई, लेकिन सरकार में शामिल होने पहले और सरकार में शामिल होने के बाद शिवसेना ने एक भी ऐसा मौका कभी नहीं छोड़ा जब उसने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए संयमित होकर बयान दिया हो। बावजूद इसके बीजेपी ने शिवसेना से मिले खट्टे-मीठे अनुभवों को ताख पर रखकर पूरे पांच वर्ष तक महाराष्ट्र में गठबंधन का कार्यकाल पूरा किया।
बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की कार्य कुशलता और नेतृत्व क्षमता को इसका श्रेय देने में कोई बुराई नहीं है। गठबंधन धर्म का पालन करना और सहयोगी दलों को उससे इतर विचारधारों के बावजूद साथ लेकर चलना आसान नहीं है, लेकिन देवेंद्र फडणवीस ने यह करके दिखा दिया था। यही कारण था कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं का वरदहश्त फडणवीस को हासिल था। और हासिल भी क्यों नहीं होता।
लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में महाराष्ट्र में बीजेपी को लगातार 23-23 सीटें जितवाने में देवेंद्र फडणवीस की बड़ी भूमिका थी। फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी महाराष्ट्र में शिखर पर न केवल लोकसभा चुनाव में रही बल्कि 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी नंबर वन पार्टी बनकर उभरी।
शिवसेना अभी सुप्रीम कोर्ट में राज्यपाल के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई का इंतजार कर रही है, लेकिन वह भी जानती है कि वह अब हारी लड़ाई फिर हारने के लिए ही लड़ रही है। फर्ज कीजिए शिवसेना को महाराष्ट्र में सरकार गठन के लिए एक और मौका मिल जाता है। सबसे बड़ा सवाल है कि शिवसेना 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 145 सीटों का जुगाड़ कैसे करेगी।
कांग्रेस 54 सीट और शिवसेना 56 मिलाकर 110 सीट हो रहे हैं। निर्दलीय विधायकों से भी शिवसेना का काम बनने वाला नहीं हैं। केवल कांग्रेस ही उसका बेड़ा पार लगा सकती है, लेकिन सोनिया गांधी की चुप्पी देखकर लगता नहीं है कि महाराष्ट्र सरकार गठन के किसी भी फार्मूले पर कांग्रेस शामिल होने की कोशिश करेगी।
माना जा रहा है कि शिवसेना की दुर्गति के लिए शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे की जिद और अहम जिम्मेदार रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र की जनता को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी और शिवसेना की संयुक्त गठबंधन को जनादेश दिया था।
लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के स्वार्थ और पुत्रमोह ने जनादेश को मखौल उड़ा दिया। हालांकि शिवसेना चीफ अभी भी महाराष्ट्र में सरकार का गठन नहीं कर पाने के लिए बीजेपी और राज्यपाल को दोषी ठहरा रही है, लेकिन सच्चाई उसे भी पता है कि मौजूदा दौर में शिवसेना का अकेले दम पर महाराष्ट्र में सरकार बना पाना नामुमकिन है।
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