2012 में ही राजनीति से संन्यास लेना चाहती थीं शीला दीक्षित, लेकिन इस घटना की वजह से रुक गईं
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली को विकास का चेहरा दिखाने वाली शीला दीक्षित अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन राजधानी में उनके द्वारा किए गए विकास कार्य सदैव उनकी याद दिलाते रहेंगे। शीला दीक्षित 2012 में ही राजनीति से संन्यास लेना चाहती थीं। लेकिन उसी साल दिल्ली में देश को झकझोर देने वाले निर्भया रेप केस के चलते उन्होंने अपना फैसला बदल दिया था। शीला दीक्षित की 2012 की सर्दियों में दूसरी एंजियाप्लास्टी हुई थी और उनका परिवार चाहता था कि वह राजनीति छोड़ दें लेकिन तब 16 दिसम्बर सामूहिक बलात्कार के बाद उनका फैसला बदल गया।
शीला दीक्षित की 2012 की सर्दियों में दूसरी एंजियाप्लास्टी हुई थी
शीला दीक्षित ने पिछले वर्ष प्रकाशित अपनी जीवनी सिटीजन दिल्ली: माई टाइम्स, माई लाइफ में जिंदगी से जुड़े कई अहम बातें बताई थीं। उन्होंने बताया कि, थकान और सांस लेने में परेशानी की शिकायत करने के बाद चिकित्सकों ने इस बात की पुष्टि की कि मेरी दाहिनी धमनी में 90 प्रतिशत रुकावट है और जिसके बाद एंजियाप्लास्टी हुई थी। उन्होंने बताया कि, मेरे परिवार ने मुझसे कहा था कि मुझे अपनी स्वास्थ्य चिंताओं को अन्य चीजों से ऊपर रखना होगा।
मेरे इस्तीफे का निर्णय लगभग तय था
उन्होंने बताया कि, जिसके के मेरे इस्तीफे का निर्णय लगभग तय था। क्योंकि विधानसभा चुनाव में एक वर्ष का समय था और पार्टी को एक विकल्प खोजने का पर्याप्त समय था। लेकिन जैसे ही उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ और वह पद छोड़ने के अपने निर्णय से पार्टी आलाकमान को अवगत करने वाली थीं, देश में 16 दिसम्बर 2012 को एक लड़की से चलती बस में सामूहिक बलात्कार की घटना हो गई।
इस वक्त पद छोड़ना युद्धभूमि को छोड़ने जैसा था
उन्होंने बताया कि, निर्भया हादसे के बाद मैं बंधन में थी। मेरे परिवार ने उस वक्त मेरे तनाव को देखा था। उन्होंने कहा कि जितना जल्दी हो सके, मुझे पद छोड़ देना चाहिए। मुझे लगा कि इस वक्त पद छोड़ना युद्धभूमि को छोड़ने जैसा था। केंद्र इस मामले में सीधा दोषारोपण नहीं चाहता था। मैं जानती थी कि इस मामले में विपक्ष मेरी सरकार पर आरोप लगाएगा। किसी को तो जिम्मेदारी लेनी थी, इसलिए इसे मैंने अपने ऊपर लेने का फैसला किया।
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