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आतंकवाद से निपटने में मोदी को मनमोहन से मजबूत बताने पर शीला को सफाई क्यों देनी पड़ी?

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नई दिल्ली- दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष और तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई को लेकर एक बयान देने के कुछ ही देर बाद सफाई देनी पड़ गई। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के माहौल में जब बीजेपी और कांग्रेस में जबर्दस्त जुबानी जंग छिड़ी हुई है, उसमें बुजुर्ग कांग्रेसी नेता का यूपीए सरकार के खिलाफ दिया गया कोई भी बयान पार्टी की मिट्टी पलीद कर सकता था। क्योंकि, बीजेपी जिसे चुनावी मुद्दा बना रही है, उसका समर्थन अगर कांग्रेस की कोई वरिष्ठ नेता कर दे, तो पार्टी की सारी रणनीति ही धाराशाही हो सकती है।

माना था कि मोदी ज्यादा मजबूत पीएम हैं

माना था कि मोदी ज्यादा मजबूत पीएम हैं

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी ने जब आतंकवाद पर कार्रवाई के बारे में शीला से पूछा था कि मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में मुंबई हमलों के जवाब में वैसी कार्रवाई नहीं की, जैसी कि बालाकोट के बाद नरेंद्र मोदी ने की है। इसके जवाब में शीला ने उनसे सहमति जताते हुए कहा था कि शायद, वो मोदी जितने मजबूत या पक्के इरादों वाले नहीं थे, लेकिन ऐसा भी महसूस किया जा रहा है कि वो ये सब राजनीति के लिए कर रहे हैं। वीर संघवी ने उनके इंटरव्यू का जो मूल अंश जारी किया है, उसमें शीला को यही कहते हुए दिखाया गया है। लेकिन, बाद में ट्विटर के जरिए शीला को यह कहकर सफाई देनी पड़ी कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि मैंने तो ये कहा था कि कुछ लोगों को लगता होगा कि आतंकवाद पर मोदी ज्यादा मजबूत हैं।

दिल्ली में ही घिरने का डर था

दरअसल शीला के बयान को बीजेपी ने हाथों-हाथ लेने में देरी नहीं की। सीधे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें ये कहकर धन्यवाद दिया कि जिस सच्चाई को पूरा देश जानता है उसे मानने के लिए पहले कांग्रेस कभी तैयार नहीं हुई थी। इससे पहले शीला के बयान आने के फौरन बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के बहाने उन्हें ही निशाने पर लेना शुरू कर दिया था। मनीष सिसोदिया ने कह दिया कि वो तो पहले से ही कह रहे थे कि कांग्रेस मोदी को दोबारा पीएम बनाने के लिए काम कर रही है। फिर मुख्यमंत्री केजरीवाल भी इस अभियान में कूद पड़े। उन्होंने यहां तक कह दिया कि भाजपा और कांग्रेस का गठबंधन आज सामने आ गया।

केंद्रीय नेतृत्व का दबाव?

केंद्रीय नेतृत्व का दबाव?

शीला दीक्षित भले ही अपने बयान को गोल-गोल घुमाने की कोशिश कर रही हों, लेकिन उन्होंने बीजेपी और आम आदमी पार्टी को गलत समय में एक अच्छा सियासी मुद्दा थमा दिया है। बीजेपी इसे अपनी जीत के रूप में पेश करेगी और आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ अबतक तालमेल नहीं हो पाने की भड़ास निकालेगी। क्योंकि, उसे लगता है कि अगर दिल्ली में तालमेल नहीं हुआ, तो यह शीला दीक्षित के कारण ही होगा। क्योंकि, वही 'आप' के साथ तालमेल की मुखर विरोधी हैं। इसलिए ऐसा लग रहा है कि पार्टी नेतृत्व के दबाव में शीला को अपना सुर बदलना पड़ रहा है। क्योंकि, दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों के लिए आम आदमी पार्टी से बातचीत के द्वार अभी भी पूरी तरह से बंद नहीं हुए हैं। पार्टी अभी भी बूथ लेबल कार्यकर्ताओं से रायशुमारी के बहाने तालमेल का विकल्प खुला रख रही है,जबकि प्रदेश नेतृत्व इसे सिरे से खारिज कर चुका है।

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English summary
Sheila Dikshit said modi is strong on Combat Terrorism than manmohan and then taken u turn
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