शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ इसलिए की भाजपा ने "सर्जीकल स्ट्राइक"
नई दिल्ली। जिस तरह चुनाव में नए लोगों को टिकट मिलना आम बात होती है, उसी तरह पुराने लोगों के टिकट कटने को भी सामान्य प्रक्रिया ही कहा जा सकता है। लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनको लेकर कई बार संबंधित व्यक्ति खुद ही मुखर हो उठता है, कई बार संबंधित पार्टी के भीतर सुगबुगाहट होती है, तो कई बार पार्टी से इतर लोग अपने-अपने तरीके से राय रखते हैं। चुनाव के दौरान इससे शायद ही कोई पार्टीअछूती रहती हो। हर दल को कमोबेश इन हालात से गुजरना ही होता है।
कई बार इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है, तो कई बार फायदा भी हो जाता है। यह स्थिति तब ज्यादा समस्या पैदा करने वाली होती है, जब गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना होता है।गठबंधन की वजह से ही कई नेताओं को सीटें छोड़ने, तो कई को बदलने को मजबूर होना पड़ता है। इन कारणों से ही कई नेता और पार्टियां खासी चर्चा में आ जाते हैं। वर्तमान चुनाव में अभी गठबंधनों को अंतिम रूप दिया जा रहा है और प्रत्याशियों का ऐलान किया जा रहा है। इस बीच वैसे तो कई प्रत्याशियों को लेकर बातें की जा रही हैं, लेकिन सत्ताधारी पार्टी भाजपा के दो नेताओं के टिकट कटने को लेकर कुछ ज्यादा ही बातें की जा रही हैं। ध्यान देने की बात है कि यह बातें पार्टी के भीतर एकदम नहीं हो रही हैं, जबकि पार्टी कतार से बाहर लोग बहुत सारी बातें कर रहे हैं।
भगत सिंह कोश्यारी से लेकर शाहनवाज हुसैन तक
इसमें पहला नाम था लालकृष्ण आडवाणी का और अब दूसरा नाम शामिल हो गया है शत्रुघन सिन्हा का। वैसे भगत सिंह कोश्यारी से लेकर शाहनवाज हुसैन तक और भी कई नाम हैं जिन्हें टिकट नहीं दिया गया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में सभी निवर्तमान सांसदों को टिकट न दिए जाने की भी चर्चाएं हैं। हालांकि इन सबके पीछे कोई कारण प्रमुख नहीं माना जा सकता। इस तरह के हर अलग-अलग मामले में पार्टी की अपनी राय हो सकती है, लेकिन लोग हैं कि मानने को तैयार नहीं।
वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं सिन्हा
फिलहाल ताजा मामला शत्रुघन सिन्हा का है। शत्रुघन सिन्हा पटना साहिब सीट से भाजपा सांसद रहे हैं। वह बीते 2009 और 2014 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। राज्यसभा के सदस्य और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके सिन्हा के बारे में एक तथ्य यह भी है कि वह कभी फिल्म अभिनेता और कांग्रेस प्रत्याशी राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़े थे और हार गए थे। लेकिन आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि वह पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र में काफी लोकप्रिय रहे हैं।
सिन्हा की जगह प्रसाद
इसीलिए इस सीट पर वह खुद की दावेदारी भी जताते रहे हैं। लेकिन फिलहाल भाजपा ने उनकी जगह पर इस सीट से पार्टी के वरिष्ट नेता और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रविशंकर प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है। वैसे अगर देखा जाए तो यह दोनों ही फैसले अप्रत्याशित नहीं हैं क्योंकि इसकी संभावना बहुत पहले से जताई जा रही थी कि 2019 के चुनाव में सिन्हा की जगह प्रसाद को उम्मीदवार बनाया जा सकता है और वही हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर सिन्हा के बगावती तेवर
अपने अलहदा विचारों के लिए जाने जाने वाले शत्रुघन सिन्हा के बारे में बीते पांच सालों से इस तरह का अनुमान लगाया जा रहा था कि भाजपा में अब उनका भविष्य बहुत दिनों का नहीं है। यह भी माना जाने लगा था कि भाजपा को उस मौके की तलाश है जब उन्हें स्पष्ट कर दिया जाए कि उनके बारे में फैसला क्या है। अब शायद टिकट काटकर यह बता दिया गया है कि वे अपना रास्ता तलाश सकते हैं। दरअसल, सिन्हा ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बगावती तेवर अख्तियार कर रखा था। कभी आडवाणी खेमे के माने जाने वाले शत्रुघन सिन्हा ने पिछले चार-पांच वर्षों में शायद ही कोई ऐसा मौका रहा हो जब पार्टी लाइन से इतर अथवा मोदी के फैसलों के खिलाफ सार्वजनिक आलोचना न की हो। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक और सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर एयर स्ट्राइक तक हर मुद्दे पर उन्होंने खिलाफत का रुख अख्तियार किए रखा। भाजपा के विरोध में खड़े हुए यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ तो खड़े ही हुए, विपक्ष के साथ भी गलबहियां की और उनके मंचों का उपयोग किया। इस तरह के किसी भी नेता-कार्यकर्ता को कोई पार्टी कब तक और क्यों बरदाश्त करती रहेगी। भाजपा ने भी वही किया जो ऐसे किसी व्यक्ति के बारे में
यशवंत सिन्हा की तरह अपना रास्ता तय कर लेते
इसी तरह का फैसला करती। इसलिए कहा जा सकता है कि सिन्हा के साथ वही हुआ जो होना ही था। इतने लंबे समय तक भाजपा ने उन्हें झेला, यह कोई कम बड़ी बात नहींकही जा सकती। शायद भाजपा को यह भी इंतजार रहा हो कि शत्रुघन सिन्हा खुद यशवंत सिन्हा की तरह अपना रास्ता तय कर लेते जो उन्होंने नहीं किया। शायद वह इसका इंतजार कर रहे थे कि भाजपा ही उनके बारे में तय करे जिसको लेकर वह कई बार सार्वजनिक तौर पर कह भी चुके थे।
शत्रुघन सिन्हा अपने किस्म के अलग नेता
अब कहा जा रहा है कि वह कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। वैसे शत्रुघन सिन्हा अपने किस्म के अलग नेता हैं जिनके राजद नेता लालू प्रसाद यादव से लेकर जदयू नेता नीतीश कुमार तक से अच्छे संबंध रहे हैं। आप नेता अरविंद केजरीवाल से लेकर ममता बनर्जी के साथ भी उनके संबंध ठीक रहे हैं। वह अक्सर कहा भी करते थे कि किसी पार्टी में होना एक बात है। अन्य नेताओं के साथ संबंध होने में कुछ भी नया नहीं है। ऐसा होता है और होना भी चाहिए। ऐसे में यह पक्के तौर पर कह पाना मुश्किल है कि वह फिलहाल क्या करेंगे। लेकिन यह माना जा सकता है कि वह एक बार फिर पटना साहिब से प्रत्याशी हो सकते हैं। अभी देखने की बात यह है कि वह अपना भविष्य का रास्ता कहां से तय करते हैं। इस बारे में किसी अटकलबाजी से ज्यादा बेहतर होगा कि उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार किया जाए और देखा जाए कि वह क्या करते हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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