अलग अदालत रोक पाएगी अपराधी नेताओं को?
आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र से आते है. दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश और तीसरे नंबर पर बिहार है.
जिन सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले चल रहे हैं उनके ट्रायल के लिए क्यों बने स्पेशल कोर्ट? संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में ये सवाल समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रावल ने उठाया है.
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने हलफ़नामा दायर कर आपराधिक मामलों में शामिल सांसदों और विधायकों के मामले के जल्द निपटारा करने के लिए विशेष अदालत बनाने की बात कही थी.
राज्यसभा में बहस के दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने केन्द्र सरकार के इसी हलफ़नामे का ज़िक्र किया है.
उनके मुताबिक सरकार को अदालतों के सामने झुकना नहीं चाहिए. संविधान की धारा 14 का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा संविधान कि इस धारा के मुताबिक हम सब एक समान है और संविधान के धारा 15 के मुताबिक जाति के आधार पर भी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता.
उनके मुताबिक, "मैं सांसद और विधायक को भी एक अलग जाति मानता हूं. तो फिर किस आधार पर केन्द्र सरकार अपराधी सांसदों और विधायकों के लिए अलग अदालत बना सकती है? इसके लिए पहले संविधान संशोधन की जरूरत होगी."
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नरेश अग्रवाल ने अपनी बात के पीछे एक तर्क भी रखा. उन्होंने पूछा कि जब आतंकवादियों के लिए देश में अलग अदालत नहीं है तो फिर सांसदों और विधायकों के लिए क्यों?
राज्यसभा में चुनाव के दौरान दायर हलफ़नामे के मुताबिक नरेश अग्रवाल पर कोई भी आपराधिक मुक़दमा नहीं चल रहा है.
मामला अदालत कैसे पहुंचा?
इस पूरे मामले पर बीबीसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय से बात की.
अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक, "नेताओं को स्पेशल स्टेटस चाहिए तो फिर स्पेशल कोर्ट क्यों नहीं."
उनका कहना है कि देश भर में कुल विधायकों और सांसदों के 1500 से ज़्यादा आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. इसमें लालू यादव, मधु कोड़ा, सुरेश कलमाड़ी जैसे पूर्व सांसदों और विधायकों के नाम और मुक़दमे शामिल नहीं है.
अपने दावे को पुख़्ता करने के लिए अश्विनी उपाध्याय ने एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म की रिपोर्ट भी याचिका के साथ लगाई है. अश्विनी कहते हैं, "मैंने इसलिए कोर्ट से गुहार लगाई थी कि इन मामलों के निपटारे के लिए स्पेशल कोर्ट बनाया जाए."
संसद के शीत सत्र पर माहौल गर्म
केन्द्र सरकार का पक्ष
पूरे मामले पर कोर्ट में पक्ष रखते हुए केन्द्र सरकार ने हलफ़नामा दायर किया है. केन्द्र के हलफ़नामे के मुताबिक अपराधी नेताओं के मुक़दमों के निपटारे के लिए 12 स्पेशल अदलात बनाई जाएगी जो फास्ट ट्रैक कोर्ट की तर्ज पर काम करेगी.
सरकार ने सभी 1581 मामलों के निपटारे के लिए एक साल का समय भी निर्धारित किया है और कहा है कि स्पेशल अदालत बनाने में किसी क़ानून प्रक्रिया की ज़रूरत नहीं है.
आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद
एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में लोकसभा में चुन कर आए 542 सांसदों में से 185 सांसदों के नाम आपराधिक मुकदमा है. यानी देश के 34 फीसदी सांसद अपराधिक रिकॉर्ड के हैं.
इसी रिपोर्ट के मुताबिक 185 में से 112 सांसदों पर तो गंभीर आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं.
हालांकि साल 2009 के लोकसभा में आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसदों की संख्या 158 थी, जो इस बार के मुक़ाबले थोड़ा कम है.
राज्यों की बात करें तो आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसद सबसे ज़्यादा महाराष्ट्र से आते हैं. दूसरे और तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश और तीसरे नंबर पर बिहार राज्य है जहां आपराधिक रिकॉर्ड के नेता ज़्यादा हैं.
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